सौमित
Sharad Gupta : आज सुबह इस खबर को पढ़कर जो धक्का लगा, क़ाबिले बयान नहीं है। मैं Saumit Sinh को जानता था। शायद हम फ़ेसबुक पर ही मिले थे। वह लखनऊ का रहने वाला था। नौकरी मुंबई में कर रहा था। मिडडे, डीएनए जैसे कई अख़बारों में काम किया। फिर एक वेबसाइट शुरू की Mumbaiwalla. बड़ा अचरज हुआ। तीस साल की उम्र में किसी मीडिया संस्थान की नियमित आय वाली नौकरी छोड़कर अनिश्चित आय और भविष्य वाला अपना काम शुरू करना पत्रकारों के लिए किसी बड़े जोखिम से कम नहीं होता।
लेकिन उसने यह जोखिम उठाया। कुछ अच्छी ख़बरें ब्रेक कीं। उसकी एक खबर उसकी वेब साइट से साभार लेकर मैंने भी दैनिक भास्कर की संडे जैकेट पर छापी थी। वही हुआ जिसकी आशंका थी। वेबसाइट चली नहीं। कई मुकदमे हुए। सौमित ने नौकरी खोजनी शुरू की। दिल्ली शिफ़्ट हो गया। यहीं हमारी पहली मुलाकात हुई। लेकिन रेग्यूलर काम से ब्रेक सीवी में धब्बा माना जाता है। अनुभव और प्रतिभा से ज्यादा कद्र सीवी में लिखे शब्दों की होती है। अख़बार में छपा है – वह दो साल से बेराजगार था। वह डिप्रेशन का शिकार था। दवाइयाँ ले रहा था।
सौमित तीन-चार महीने पहले मुझे प्रेस क्लब में मिला था। अजीब सी बातें कर रहा था। सभी के प्रति अजीब सा ज़हर भरा था उसके मन में। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन ऐसा क़दम उठाएगा, कभी कल्पना भी न थी। इस प्रकरण से एक बात समझ आती है – यह हाल उनका है जो ‘सिस्टम’ से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। सरवाइवल के लिए अख़बार या टीवी चैनल का मुँह ताकते हैं। अगर सौमित ने भी अपने संबंधों को इस्तेमाल कर कॉरपोरेट्स/बिज़नेस घरानों के काम कराने शुरू कर किए होते तो वह दौलत से खेल रहा होता। सत्ता के गलियारों में सैकड़ों उसे सलाम ठोक रहे होते। कहीं कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन का हेड होता। काश…. काश…हम इस सिस्टम में बदलाव ला सकते।
वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता की एफबी वॉल से.