विवेक सत्य मित्रम-
मेरे कई जानने वाले लल्लनटॉप के प्रशंसक हैं। पर लल्लनटॉप के इस लल्ला की भाषा सुनकर कतई नहीं लगता कि ये किसी भी एंगल से पत्रकार है। सेलिब्रिटीज़ को स्टूडियो में बुलाकर तुम-तुम के लहज़े में बात करके नए ज़माने का ये सो कॉल्ड एडिटर पता नहीं क्या जताना चाहता है। ऐसा लगता है कि सब इसके ‘चड्ढी बडी’ हैं।


एक मदारी के तौर पर इसके टैलेंट पर कोई शक नहीं। इसने मज़मा बढ़िया लगा लिया है डुगडुगी बजाकर पर इसे थोड़ी तमीज़ सीखने की ज़रूरत है जो इसके आस-पास वाले इसे नहीं बताएँगे जिन्हें इससे नौकरी चाहिए या जो इसकी गुड बुक में रहना चाहते हैं। अपुन को क्या है। जब ये चूज़ा था और उड़ने के लिए फड़फड़ा रहा था तब तक हम निकल लिए थे इस कुंए से। इसलिए मुझे लगा कि मैं ही इस कूपमंडूक को बता दूं कि इसे थोड़ा ज़मीन पर आ जाना चाहिए और पत्रकार कहलाने का शौक है तो पत्रकार वाली भाषा सीखनी चाहिए। थोड़ी डिसेंसी लाओ बे। तुम्हें तो अपना जूनियर कहते हुए भी शर्म आती है।
सुनो लल्ला! तुम अपने पर्सनल स्पेस में किससे कैसे बात करते हो, नोबडीज बिजनेस। लेकिन कैमरे पर तो थोड़ी रेस्पेक्ट दे दो। तापसी पन्नु तुम्हारी मौसेरी बहन या तुम्हारे साथ सेल्फ़ी खिंचवाने की चाह रखने वाली कोई फैन/कूलर/ एसी नहीं है। तुम्हारे जैसे दर्जनों लोग बिछे रहते हैं उसके इंटरव्यू के लिए। उसके साथ दिखने से तुम्हारी औक़ात का मीटर ऊपर नीचे होता है, उसकी सेहत पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उससे बदतमीज़ी करके तुम ये दिखाना चाहते हो कि “देखो मैं तो कुछ नहीं समझता ऐसे लोगों को” या “मैं तो कितना बड़ा पत्रकार हूं”! रजत शर्मा जैसे वरिष्ठ पत्रकार भी अपने से तिहाई उम्र के लोगों का इंटरव्यू लेते हुए भी अदब/ सम्मान की मर्यादा नहीं लांघते। ऐसा लगता है कि ये ख़ुद को उनसे भी बड़ा मानता है।
तुम्हारी औक़ात सिर्फ़ उस प्लेटफ़ॉर्म पर बने रहने तक है जिसकी पहुंच करोड़ों लोगों तक है। तुम्हारी अपनी कोई निजी औकात नहीं है कि तुम किसी को भी कुछ भी बकने लगो। वैसे भी तुम जिस जमात के फ़ेवरिट हो, उनकी पसंद-नापसंद इतनी तेज़ी से बदलती है कि तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि कौन सा लल्लनटॉप और कौन सा लल्ला। इसलिए उड़ो कम लल्ला। ठीक से समझ लो। तुम पत्रकार नहीं हो, एंटरटेनर हो, हिंदी में विदूषक कहते हैं तुम्हारे जैसों को। इसलिए थोड़ा अकड़ कम करो। औक़ात में रहो। और पत्रकारिता में आने वाली नई जमात को ये संदेश मत दो कि पत्रकार गुंडे/ मवालियों की भाषा बोलते हैं! पत्रकारिता की एक मर्यादा है। और सब तो वैसे ही ख़त्म है। कम से कम भाषा की मर्यादा तो रखो।
कम ऑन डूड। डिजिटल रेवोल्यूशन के दौर में वक्त बदलते देर नहीं लगती। शोहरत बड़ी फ्लुइड होती है मित्र। थोड़ी तमीज़ सीखो। अपने लिए ना सही उनके लिए जो तुम्हें पत्रकार मानते हैं। खामखा सुबह-सुबह इतना खून जलाना पड़ा। छी।
(PS: ये लल्ला आईआईएमसी में मेरा जूनियर है। पर ये किसी को अपना सीनियर मानता नहीं। न्यूज़रूम में कइयों से इसने बदतमीज़ी की है जिसकी रिपोर्ट मेरे पास है। इसकी नज़र में इससे काबिल इस ब्रह्मांड में कोई और है ही नहीं। आज सुबह-सुबह इसका ये वीडियो दिख गया और अपुन को लगा कि इसको बताना ज़रूरी है कि वो एक मसखरा है जिसे अपने पत्रकार होने का भ्रम है। लेकिन भ्रम है तो कम से कम पत्रकार वाली भाषा में तो बात करे। मेरी भाषा क्रोध और फ़्रस्ट्रेशन से उपजी है वरना थोड़ी इज़्ज़त दे सकता था इसे। अपनी भाषा के लिए क्षमा।)
Comments on “लल्लनटॉप वाले सौरभ द्विवेदी को रजत शर्मा से विनम्रता सीखने की ज़रूरत है!”
सौरभ की भाषा के चलते ही अब लोग लल्लनटाप देखने से कतराने लगे हैं। अभी नहीं कुछ दिन बाद जरूर इनको पता चल जायेगा, जब इनका गुरूर बिखर जायेगा। खैर, छोडिए ऐसे अमर्यादित लोग कभी प्रखर पत्रकार हो ही नहीं सकते। कहते हैं ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़कर और लेता तो चमड़ी उधेड़ कर।
लल्लन टॉप पर कोई निगेटिव टिप्पणी करने बच रहा हूं। आपके आकलन से सहमत कैसे हो जाऊं? सबसे बढ़िया आपकी सलाह “खैर छोड़िए!”
अंतिम लाइन बेहद बढ़िया। परम सत्य।
सबसे पहले आपके नाम की तारीफ। विवेक। सत्य। मित्रम। नाम के तीनों शब्दों का बहुत मार्मिक अर्थ। वाह। लेकिन क्रोध का ज्वालामुखी! अब आपकी टिप्पणी का ज़िक्र।
भाषा संयम आलोचक को भी उतना ही चाहिए। मैने कई बरस आईआईएमसी में पढ़ाया। इग्नू का पाठ्यक्रम भी लिखा। अनेक विश्वविद्यालयों का परीक्षक हूं। आईएएस, आईपीएस, इंजीनियरों, मेडिकल सुपर स्पेशलिस्टों और पैरा मिलिट्री अफसरों को पढ़ाता हूं। लेकिन आप सबसे ही कुछ ना कुछ बेशक हर बार सीखता हूं।
आपका गुस्सा जायज़ बेशक होगा। तरीका कुछ खल गया। वैसे ना तो सौरभ से मैं कभी मिला और ना आपसे भेंट हुई। मुझे नई पीढ़ी (मैं अब 68 का होने लगा) से बहुत प्रेम है। आपके बाद वाली तो आपसे भी प्यारी लगती है। हमारे बीच दो पीढ़ियों का अंतर होगा। आपको इस नाते निश्छल आशीष।
रजत शर्मा बेमिसाल हैं। मेरी उनसे तबसे दोस्ती है जब वे जनार्दन ठाकुर के शोध प्रमुख और उभरते हुए लेखक थे। बाद में हम बिछड़ गए। वे मुंबई जाकर ऑनलुकर के संपादक हो गए। चंद्रास्वामी और अदनान खशोगी के हथियार सौदों की खाल उधेड़ दी। तेज़ी से उन्नति और समृद्धि पाई। उनकी शालीनता और विनम्रता में कभी रत्ती भर कमी नहीं आई।
रजत से विनम्रता ही नहीं, आत्म संयम भी सीखना चाहिए। उनसे आवेश पर नियंत्रण रखना भी सीखना चाहिए। उनसे शब्दों का चयन और उनका उपयोग भी सीखना चाहिए। मेरा छोटा और गुरु भाई यशवंत महाराणा प्रताप की तरह दूसरों की बला अपने सर लेने की ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर का महारथी।
आप बेशक बहुत भावुक, अच्छे, निर्भय, परिणामों की परवाह किये बिना मोर्चा लेने वाले। अत्यंत प्रतिभावान व्यक्ति होंगे। आपको जानूंगा तो आपकी खूबियां गिनाऊंगा। लेकिन अभी (बड़ा होकर भी इसके लिए बिना शर्त माफी मांग लेता हूं) आपको यह सीखना होगा कि किसी प्रतिद्वंदी के साथ सार्वजनिक मंचों पर किस प्रोटोकाल का पालन करना चाहिए। राजनेता यही करते हैं।
पत्रकारिता, ग्लैमर जगत और राजनीति में एक सिद्धांत खूब चलता है। कोई भी आपका हमेशा शत्रु या मित्र नहीं होता। हमें वस्तुस्थिति के हिसाब से चलना चाहिए। कभी फिर मिल कर बैठना हुआ तो क्या सौरभ की आंख में आंख डाल कर कह सकेंगे। हम दोनों आईआईएमसी के पौधे हैं। भाई हैं। मित्र हैं। यार मेरे क्रोध को भूल जा।
होना तो यही चाहिए।
सौरभ से तकलीफ हो। तो उसे इग्नोर कीजिए। लेकिन विवेक के सत्य और मित्रता के साथ नो कंप्रोमाइज। अगर सौरभ ने इस मामले में लक्ष्म रेखा लांघी है। तो उसका हाल लिखिए।
सौरभ से मेरी दो तीन बार फोन पर बात हुई है। बस इससे ज्यादा कुछ नहीं। उसकी शैली अनोखी और भदेसी है। लल्लन टॉप की यूएसपी है। ऐसा ना होता तो इंडिया टुडे ग्रुप उसे क्यों खोपड़ी पर चढ़ाता।
फिल्मी दुनिया में हर कलाकार की मिमिक्री खूब होती है। राजेश खन्ना का मोटर गाड़ियों के वाईपर जैसा अंदाज़। याद कीजिए अमिताभ बच्चन का “हांए”, धर्मेंद्र का हाथों में कटोरा तथा शशि कपूर का दो नावों में बारी बारी बैलेंस करके उछलने जैसा अटपटा डांस अंदाज़। ये सब एटिट्यूड हैं। पर्सनेलिटी सिग्नेचर हैं। आपको उनसे कोई तकलीफ नहीं होगी।
एक बार फिर, सच्चे और निष्कपट मन से आपको आशीष। ईश्वर आपकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करें। मेरी कोई बात बुरी लगी हो, तो यशवंत से मेरा नंबर लेकर मुझे उमर का लिहाज किए बिना खरी खोटी सुनाइए।
अनंत शुभकामनाएं।
Really this person is nonsense. I am also From IIMC pass out 1998 batch,.it reflects his immaturity.
सही कहा। जनाब Dwivedi धीरे-धीरे जमीन छोड़ने लगे हैं। हास्य व्यंग्य चलते रहें, लेकिन प्रस्तुतिकरण में गभीरता हो। विनोद दुआ की तरह। ताजा केस में फेसबुक पर देखा हूं कि, लल्लनजी ने अनावश्यक रूप से एक खबर पोर्टल का हवाला देकर स्वरा भास्कर के प्रेग्नेंट होने और फिर खंडन करने की पोस्ट डाली। ये सरोगेट विज्ञापन की तरह है। वैसे आप-हम कर भी क्या सकते हैं?
विनोद दुआ कोन?
अच्छा वो दरबारी,,,
सौरभ द्विवेदी और द लल्लन टॉप आज विश्वसनीयता के मापदंड पर सभी ऑनलाइन मीडिया प्लेटफार्म या रिपोर्टर्स में प्रथम स्थान पर है, भाषा जैसी भी हो पर उनके दर्शकों को पसंद है, सायद बात को सीधे तरीके से बिना लाग लपेट अक्कढ़पन से पूछना उनकी यूएसपी है।
सौरभ जैसा बनो उसकी औकात यहां लिखने वाले से ज्यादा है. अपने स्थान विशेष में फोड़ा का ऑपरेशन कराओ, सौरभ ने तुम जैसों को नौकरी पर रखा है… भाषा की बात मत करो tapsi कहीं की प्रधानमंत्री नहीं हैं…
अरे सर आजकल नए जमाने में दोस्ताना बातचीत ऐसे ही होती है और सौरभ और तापसी की पुरानी मित्रता है 3साल पुराने एक इंटरव्यू में बोलीं हैं तापसी की मैसेज में बात होती है तो आजकल ये थोड़ा कॉमन है, सीनियर बस होने से कुछ नहीं होता कुछ करना भी पड़ता है बाकी भाषा आपका परिचय दे रही है