चीन रेडियो के द्वारा हिंदी पाठकों के लिए दिल्ली से सेतु संबंध नामक पत्रिका प्रकाशित की जाती है..उसके बारे में किसी श्रोता ने एक गलती पकड़ कर चीन रेडियो को मेल की है..इस पत्रिका के संपादक चीन रेडियो में काम कर रहे अखिल पाराशर हैं..दिल्ली से उनके परिवार के लोग ही इसे प्रकाशित करते हैं..इस पत्र में श्रोता और पत्र भेजने वाले का नाम जानबूझकर काट दिया गया है..क्य़ोंकि श्रोता को मॉनीटरिंग के नाम पर पैसा मिलता है…
विषय : किसके हित के लिए सेतु संबंध मैग्ज़ीन?
माननीय महोदय /महोदया ,
सी आर आई के एक शुभ चिंतक के रूप में आप लोगों का ध्यान आकर्षित करने हेतु मैं इस पत्र आपके पास भेज रहा हूं । सबसे पहले मैं यह बोलना चाहूंगा कि अभी तक सेतु संबंध पत्रिका श्रोता वाटिका मैगज़ीन का विकल्प नहीं बन पाया और हमारे दिल छूने में व्यर्थ भी हुआ । जब चाइना से श्रोता वाटिका मैगज़ीन हमारे पास आते थे तब उस में सी आर आई तथा चीन का सुगंध था । लेकिन अखिल पाराशर जी के संपादकत्व के तहत प्रकाशित सेतु संबंध मैगज़ीन से वह खुशबू नहीं मिलता है । श्रोता वाटिका मैगज़ीन सी आर आई हिंदी सर्विस का दर्पण था पर सेतु संबंध मैगज़ीन मोदी सरकार का दर्पण बन गया जिसका जिम्मेदारी निभाती है सी आर आई के हिंदी विभाग की वित्तीय सहायता के तहत पत्रिका का एडिटर अखिल पाराशर जी !!!
श्रोता वाटिका मैगज़ीन में हम श्रोताओं का भागीदारी था लेकिन सेतु संबंध मैगज़ीन अखिल पाराशर जी का भाईभतीजावाद (Nepotism) के आदर्श जगह बन गया । ताज्जुब की बात यह है कि पत्रिका एडिटर अखिल पाराशर जी खुद दूसरे लेखकों का लेख को कॉपी करके पत्रिका में प्रकाश करते है जो बेहद शर्मनाक काम है यह कैसा पत्रकारिता? जिस पत्रिका के साथ सी आर आई के हिंदी विभाग का नाम जुड़ा हुआ है और उस पत्रिका का एडिटर दूसरे लेखकों का आर्टिकल को कॉपी करते है और सी आर आई के हिंदी विभाग का नाम मिट्टी में मिला रहे है और यह कलंक लगानेवाला लोग को सी आर आई ने एडिटर की पद पर बहाल रखा है ! मैं सिर्फ आप के विचार के लिए दो उदाहरण पेश कर रहा हूं।
(1) सेतु संबंध मैगज़ीन मई -जुलाई 2016 अंक में अखिल पाराशर जी का लेख “माओथाई” चीन की राष्ट्रीय शराब” बहुत पहले बीबीसी हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार एस.डी. गुप्ता ने “एपेक की बैठक में चीन की मतोई वाइन” शीर्षक प्रतिवेदन 13 नवंबर 2014 को प्रकाशित किया था।
lINKS : http://www.bbc.com/hindi/international/2014/11/141111_china_wine_moutai_vr
सी आर आई हिंदी विभाग ने भी चीन की राष्ट्रीय शराब मो थाई को लेकर 2010-02-10 तारीख में “विश्व मेले के बारे में कुछ जानकारी” शीर्षक एक समाचार प्रकाशित की है।
link : http://hindi.cri.cn/521/2010/02/10/1s105740.htm
अखिल पाराशर जी ने सिर्फ इन दोनों लेख को कुछ अदल बदल करके “माओथाई” चीन की राष्ट्रीय शराब शीर्षक देकर अपने नाम पर प्रकाशित किया जो एक प्रकार pastiche यानी नक़ली चीज़ है।
(2 ) और एक लेख जो पिछले साल 11 जुलाई को एबीपी न्यूज स्पेशल में “चीन में कैसे आया विकास का रामराज्य” नाम से प्रकाशित हुआ ,वह भी अखिल पाराशर जी ने सेतु संबंध मैगज़ीन के नवम्बर -जनवरी 2016 अंक में अपने नाम पर प्रकाशित किया जिसका शीर्षक है -“चीन कैसे चला विकास की राह पर” । क्या बात है!
Links : http://abpnews.abplive.in/india-news/ramrajya-episode-7-china-has-ramrajya-in-terms-of-development-and-india-needs-to-learn-from-it-72213/
MUST READ | एबीपी न्यूज स्पेशल | चीन में कैसे आया विकास का ‘रामराज्य’
By: admin | Last Updated: Saturday, 11 July 2015 5:21 PM
सी आर आई हिंदी विभाग ने इस नकलनवीस /नकली रिपोर्टर तथा लेखक को सेतु संबंध पत्रिका की एडिटर की पद में बहाल रखा है !!!
सच कहु तो सेतु संबंध मैगज़ीन एक पोलिटिकल प्रोपोगंडा /Political propaganda बन गया है । इस पत्रिका का कवर पेज में नरेंद्र मोदी का फोटो रहते है । इस पत्रिका को हम ना कई लोगों को दे पाते है ना कई जगह पर प्रचार भी कर सकते है । जब कोई लोगों को इस पत्रिका दिखाता हूं तब उन्होंने बोलता है कि क्या आप मोदी का प्रचार करने के लिए आया है ? क्या आप बीजेपी का समर्थक है । लेकिन श्रोता वाटिका मैगज़ीन को लेकर हमें इस तरह का मुसीबतों का सामना नहीं करना पड़ता था । लोग देखते थे की यह मैगज़ीन चाइना से आया है।
सेतु संबंध मैगज़ीन में ना कई श्रोताओं का भागीदारी है और ना कई सी आर आई का खबर प्रकाशित होता है । भारत में रहकर भारत का राजनीतिक समाचार सेतु संबंध मैगज़ीन में पढ़ने का कई ज़रूरत नहीं है !इस पत्रिका को अविलम्ब बंध करना चाहिए । मैं अखिल पाराशर जी का विरोध नहीं करता हूं पर जो काम उनका नहीं है ,उस काम पर उनको दायित्व देने का मायना क्या है ? पत्रिका की एडिटर और मैनेजिंग एडिटर -इन दोनों पद में सी आर आई हिंदी विभाग की विशेषज्ञ तथा वरिष्ठ पत्रकार या रिपोर्टरों को दायित्व देना चाहिए और सी आर आई हिंदी विभाग का एक आदर्श मुखपत्र बनाना चाहिए।
और एक बात है कि एक रेडियो प्रेजेंटर की सबसे बड़ी गुणवत्ता है उनकी आवाज । लेकिन एक भारतीय हिंदी भाषी प्रेजेंटर होने के नाते अखिल पाराशर जी का आवाज और उच्चारण साफ नहीं आते है । उनका आवाज और उच्चारण लगता है Below the grade of a radio presenter.
(एक वरिष्ठ पत्रकार ने भड़ास के पास यह सारा मैटर भेजा है. उन्होंने सब कुछ गोपनीय रखने का अनुरोध किया हुआ है.)