Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

प्रॉपर्टी डीलरों को सदस्यता, पत्रकारों की बेदख़ली… यह है प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का सच!

कल दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की वोटिंग है। मुझे एक संजीदा पत्रकार मानते हुए लोगबाग मुझे भी अप्रोच कर रहे हैं कि मैं उनके पैनल को वोट करूं। मगर मैं करूं तो कैसे, मेरा वोट ही कहां है? आज तक मुझे प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने यह जवाब नहीं दिया कि मुझे इस क्लब का सदस्य नहीं बनाने के पीछे उनका तर्क क्या है। क्या मैं उनके मानकों को पूरा नहीं करता? पिछले 33 साल से मैं पत्रकार हूं और वह भी श्रमजीवी। इंडियन एक्सप्रेस समूह में बीस साल रहा। 12 साल अमर उजाला में और पिछले 17 वर्षों से मान्यताप्राप्त पत्रकार हूं तथा आज भी यह मान्यता है। क्लब के मानकों के अनुरूप मेरी नियमित मासिक आय जो पहले दो लाख के करीब थी अब रिटायर होने के बाद घट अवश्य गई लेकिन पत्रकारीय पेशे से ही मुझे 50 हजार रुपये मासिक की आय तो आज भी है।

<p><img class=" size-full wp-image-15527" src="http://www.bhadas4media.com/wp-content/uploads/2014/08/images_abc_news2_shambhunathshuklaji.jpg" alt="" width="829" height="259" /></p> <p>कल दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की वोटिंग है। मुझे एक संजीदा पत्रकार मानते हुए लोगबाग मुझे भी अप्रोच कर रहे हैं कि मैं उनके पैनल को वोट करूं। मगर मैं करूं तो कैसे, मेरा वोट ही कहां है? आज तक मुझे प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने यह जवाब नहीं दिया कि मुझे इस क्लब का सदस्य नहीं बनाने के पीछे उनका तर्क क्या है। क्या मैं उनके मानकों को पूरा नहीं करता? पिछले 33 साल से मैं पत्रकार हूं और वह भी श्रमजीवी। इंडियन एक्सप्रेस समूह में बीस साल रहा। 12 साल अमर उजाला में और पिछले 17 वर्षों से मान्यताप्राप्त पत्रकार हूं तथा आज भी यह मान्यता है। क्लब के मानकों के अनुरूप मेरी नियमित मासिक आय जो पहले दो लाख के करीब थी अब रिटायर होने के बाद घट अवश्य गई लेकिन पत्रकारीय पेशे से ही मुझे 50 हजार रुपये मासिक की आय तो आज भी है।</p>

कल दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की वोटिंग है। मुझे एक संजीदा पत्रकार मानते हुए लोगबाग मुझे भी अप्रोच कर रहे हैं कि मैं उनके पैनल को वोट करूं। मगर मैं करूं तो कैसे, मेरा वोट ही कहां है? आज तक मुझे प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने यह जवाब नहीं दिया कि मुझे इस क्लब का सदस्य नहीं बनाने के पीछे उनका तर्क क्या है। क्या मैं उनके मानकों को पूरा नहीं करता? पिछले 33 साल से मैं पत्रकार हूं और वह भी श्रमजीवी। इंडियन एक्सप्रेस समूह में बीस साल रहा। 12 साल अमर उजाला में और पिछले 17 वर्षों से मान्यताप्राप्त पत्रकार हूं तथा आज भी यह मान्यता है। क्लब के मानकों के अनुरूप मेरी नियमित मासिक आय जो पहले दो लाख के करीब थी अब रिटायर होने के बाद घट अवश्य गई लेकिन पत्रकारीय पेशे से ही मुझे 50 हजार रुपये मासिक की आय तो आज भी है।

चूंकि मैं शराब नहीं पीता इसलिए मेरा कोई उधारखाता प्रेस क्लब में नहीं चलेगा और न ही कोई बकाया होगा। नियमित उनका चंदा चुकाऊँगा ही। और उलटे उनके पदाधिकारियों की शराब का खर्च भी यदा-कदा वहन कर लिया करूंगा। मैने तीन-तीन सौ रुपये देकर आवेदन किया, सारे कागजात जमा किए मगर मुझे दिल्ली के प्रेस क्लब का सदस्य नहीं बनाया गया जबकि इसी बीच प्रापर्टी डीलरों, सत्ता के दलालों और फर्जी पत्रकारों को सदस्य बनाया गया। मैने पूछने की कोशिश भी की पर प्रेस क्लब के पदाधिकारी अपने को विशेष सुविधा प्राप्त होने का दावा करते रहे और मेरी जिज्ञासा ठंडे बस्ते डालते रहे। हालांकि इस प्रेस क्लब को तमाम सरकारी सुविधाएं मिली हुई हैं। दिल्ली के सबसे प्राइम लोकेशन में इतनी शानदार जगह और मद्य, मांस व मदिरा पर अथाह छूट। यह सब लेकर भी पदाधिकारीगण सदस्य किसको बनाते हैं इस पर कभी बहस होनी चाहिए और इसका उचित जवाब मिलना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रेस क्लब को एक्साइज में छूट वाली शराब दी जाए। जमीन दी जाए और प्रेस क्लब परिसर में रेलवे रिजर्वेशन काउंटर हो, ये सुविधाएं क्यों जब वहां पर पत्रकारों का ही प्रवेश निषेध हो।  मज़े की बात जब मैने शिकायत दर्ज की तो एक सज्जन ने कहा कि फॉर्म जमा करते वक्त आपने बताया क्यों नहीं? मैने कहा क्यों बताता। मैं क्यों कोई सिफारिश लगवाऊं, क्या मैं फर्जी पत्रकार हूं और फिर जब फॉर्म में सब लिखवा ही लिया था तब सिफारिश क्यों? प्रॉपर्टी डीलरों को तो सदस्यता और पत्रकारों की बेदख़ली, यह है प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का सच॥

अमर उजाला समेत कई अखबारों में संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार शम्भूनाथ शुक्ल की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….

Advertisement. Scroll to continue reading.

Harshvardhan Tripathi सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपको प्रेस क्लब की सदस्यता नहीं मिली। ये प्रेस क्लब के पदाधिकारियों का मानसिक दिवालियापन दिखाता है। सच यही प्रेस क्लब की सदस्यता के लिए पदाधिकारियों से जुगाड़ लगाना ही होता है। इतना ही नहीं 7500 से ज्यादा सदस्यों वाले प्रेस क्लब के चुनाव में बमुश्किल 1500 लोग मत डालते हैं। लोगों को मताधिकार का महत्व समझाने वाले पत्रकार मत डालने नहीं आते। सुनते हैं प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने इधर अच्छी कमाई की है। इसीलिए सिर्फ अपने लोगों को सदस्यता, अपने लोगों का चुनाव।

Pramod Bramhbhatt प्रेस क्लब आफ इंडिया अप्रजातांत्रिक हो गया है। वहां साढ़े 12 हजार रुपए के साथ एक प्रेस क्लब सदस्य की अनुशंसा पर प्रेस वार्ता की पात्रता है यानि बिना अप्रोच और पैसे के कोई आदमी अपनी बात भी मीडिया के सामने नहीं रख सकता है। जबकि इससे तो बेहतर राज्यों के प्रेस क्लब हैं जहां हर व्यक्ति मात्र कुछ सैकड़े में प्रेस जगत के सामने अपनी बात रख सकता है। शुक्ल जी जब गाय इतनी दुधारू होगी तो राजनीति तो लाजमी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Sudesh Ranjan प्रेस क्लब को अपने सभी सदस्यों की लिस्ट सार्वजनिक करनी चाहिए और उन्हें बताना चाहिए कि पॉपर्टी डीलरों और गैर पत्रकारों को सदस्यता कैसे दी गई? एक सफाई अभियान वहां भी चलाया जाए।

Sanjaya Kumar Singh जब आप सदस्य नहीं बन पाए तो मुझे कौन पूछता। हर जगह चुनाव लड़ने वाले वोटर भी बनाते हैं (कुछ तो फर्जी भी) पर अपना प्रेस क्लब इन सब लफड़ों से ऊपर है। वोट मांगे जाते हैं लेकिन वोटर बनाने पर किसी का ध्यान नहीं है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Sunil Yadav सर LUCKNOW प्रेस क्‍लब भी ऐसा ही है, यहां दिल्‍ली से भी अधिक जंगलराज है , इसके कारण ज्‍यादातर पत्रकार वहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में जाने से परहेज करते हैं

Suresh Sharma ईमानदारी से काम करने वाले कस्बाई अंचल से लेकर राष्ट़ीय स्तर तक के पत्रकार इस पीड़ा के शिकार है

Advertisement. Scroll to continue reading.

Sunil Mishra पत्रकारीय नैतिकता के मानक पूरे होने से भी आप इनकी नजर में पत्रकार नही हैं तो ये दोष आपका कतई नही।

Yogendra Sharma इसका तात्पर्य यह है कि प्रेस क्लब की सदस्यता के लिए चाटुकार होना ज़रूरी है। ऐसे जगह आप अपनी मर्ज़ी से नहीं लिख सकते। यानि की एक गुलाम पत्रकार। हो सकता है मेरी ये धारणा गलत हो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Narendra Tomar वहां एक ताकतवर कोकस का साम्राज्य है जो बहुत खास पहचान / सिफारिश के बिना दाखिल नहीं होने देते हैं ।

Kumar Atul चंडीगढ का भी बुरा हाल है । वहां भी मीडियाकर्मी कम माफिया ज्यादा काबिज हैं । वहां तो बकायदा कारपोरेट मेम्बर बनाने का चलन है । लाखों की फीस है। जाहिर है टुटपुजिये मीडियाकर्मियो की जगह उन्हीं का राज है । दिल्ली प्रेस क्लब से कई गुना बड़ा है । स्वीमिंग पूल और लान टेनिस कोर्ट भी है । अय्याशियो के लिए और क्या चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Shravan Shukla आजकल फिल्म सिटी में प्रचारकों की बाढ़ आई हुई है। न्यूजरूम में घुस ही जाते हैं। अपन तो पहले ही हाथ जोड़ लेते हैं कि भैया हम सदस्य नहीं। उसके बाद ऐसे भागते हैं, जैसे पहचाना ही नहीं। पहले ऐसे बोलते हैं,जैसे लंगोटिया यार जमाने बाद मिले हों। हालांकि अधिकतर परिचित ही होते हैं।

Shashi Kant Rai यही हाल पत्रकारिता की भी है सर। पत्रकारिता से अब जनसरोकार और मिशनरी भाव हट सा गया है।बिजनेश हाबी है।मिशन की जगह कमीशन ने ले लिया है। दिल्ली प्रेस क्लब दलालों का अडडा सा बन गया है। जहा शाम होते होते शराब की नदियां बहनी शुरू हो जाती हैं जो देर रात तक चलती हैं। केवल कमीशन वाली पत्रकारिता करने वालों का ही बोलबाला है।मिशनरी पत्रकार तो मजदूरों से भी बदतर जीने को मजबूर हैं। मीडिया घराने खूब फल फूल रहे हैं। काला धंधा को सफेद कर रहे हैं मीडिया की आड में। ऐसे में पत्रकारिता और पत्रकार दोनों पर संकट आ पडा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Devendra Yadav अभिजात्य-कुलीन और श्रमजीवी पत्रकारिता में यही एक मौलिक भेद है।क्लब के सदस्य आप जैसे बौद्धिक पत्रकार जनों को एक खतरे के रूप में देखते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement