सामाजिक कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर ने राज्य सरकार से पीयूष श्रीवास्तव का हटा कर राकेश सिंह को एसपी संभल के पद पर तैनात किये जाने से सम्बंधित दस्तावेज़ सार्वजनिक करने की मांग की है. उन्होंने प्रमुख सचिव गृह को भेजे अपने पत्र में आरोपित किया है कि यूपी में आईएएस और आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का धंधा चलने की बात कही जाती है. हाल में एसपी संभल के पद पर तैनाती इसका ज्वलंत उदाहरण है.
पीयूष श्रीवास्तव जो 18 जनवरी 2014 को तैनात हुए, उन्हें मात्र पांच महीने बाद मंत्री इकबाल मसूद पर मुक़दमा दर्ज होने के बाद अगले दिन ही हटा दिया गया. उनकी जगह महीने भर पहले ही 26 मई 2014 को एसपी फिरोजाबाद के पद पर निलंबित किये गए राकेश सिंह को तैनात किया गया.
डॉ ठाकुर ने आरोपित किया कि यद्यपि कहने को ट्रांसफर सिविल सेवा बोर्ड की संस्तुति पर होती है पर वास्तव में वह राजनैतिक आकाओं की कठपुतली बन गयी है. अतः उन्होंने पारदर्शिता के दृष्टिगत पीयूष श्रीवास्तव के एसपी संभल के पद पर तैनाती, राकेश सिंह के एसपी फिरोजाबाद पद पर नियुक्ति, निलंबन और निलंबन के समापन और अब एसपी संभल की तैनाती से सम्बंधित राज्य सरकार और सिविल सेवा बोर्ड के सभी आदेशों, मीटिंग की आख्याओं और पत्रावलियों को सार्वजनिक किये जाने की मांग की है.
सेवा में,
प्रमुख सचिव (गृह),
उत्तर प्रदेश शासन,
लखनऊ।
विषय- एसपी संभल पद से श्री पीयूष श्रीवास्तव का हटाना और श्री राकेश सिंह को तैनात करना
महोदय,
यह बात तो सार्वजनिक चर्चाओं में कही जा रही है कि उत्तर प्रदेश में आईएएस और आईपीएस अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का धंधा चल रहा है. जो बातें कही जाती हैं वे तरह-तरह की हैं, कभी पैसे पर, कभी गलत काम से साथ नहीं देने पर, कभी रसूखदार नेताओं के तलवे ना चाटने पर, कभी सत्ता पक्ष का अहित कर देने पर आदि. मैं इन तमाम ट्रांसफर में एक ख़ास ट्रांसफर की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहती हूँ. मैं इस ट्रांसफर से जुड़े दोनों अफसरों का संक्षेप में विवरण प्रस्तुत करती हूँ.
श्री पीयूष श्रीवास्तव को 18 जनवरी 2014 के आदेश द्वारा एसपी संभल के पद पर तैनात किया गया. इस तरह आज उनकी तैनाती के लगभग पांच महीने हुए थे. इसके विपरीत श्री राकेश सिंह 26 मई 2014 को एसपी फिरोजाबाद के पद पर निलंबित किये गए थे. वजह बतायी गयी थी एक समाजवादी पार्टी नेता विनय यादव की दिनदहाड़े हत्या. इस तरह श्री सिंह के कर्तव्यपालन में पूरी तरह असफल होने के कारण निलंबित हुए अभी एक महीना ही बीता है.
बृहस्पतिवार (26 जून 2014) को संभल के एक अधिवक्ता श्री नूतन विजय ने राज्य सरकार के एक मंत्री श्री इकबाल मसूद के खिलाफ डकैती और आगजनी का मुक़दमा लिखवाया. उस समय श्री श्रीवास्तव एसपी संभल थे. 27 जून को एक दिन के तफ्तीश में ही स्थानीय पुलिस ने वह मुक़दमा गलत पा लिया और उसे ख़ारिज कर दिया जबकि बाकी मुकदमे सालों लंबित रहते हैं और उनमे कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाता. इसके साथ ही राज्य सरकार ने मात्र पांच माह पहले संभल के लिए उपयुक्त पाए जाने पर तैनात किये गए श्री पीयूष श्रीवास्तव को सम्भल के एसपी पद के लिए उसी समय अनुपयुक्त पा लिया जब यह मुक़दमा दर्ज हुआ और रातोंरात उन्हें ट्रांसफर करने के आदेश भी पारित कर दिए.
यह तो एक पहलू है. दूसरा पहलू यह है कि श्री श्रीवास्तव की जगह जिसे एसपी संभल पद के लिए उपयुक्त समझा गया वे हैं श्री राकेश सिंह, वही अफसर जो एक माह पहले एसपी फिरोजाबाद के रूप में अक्षम पाए जाने पर निलंबित किये गए थे. जाहिर है कि यह सब माखौल के सिवाय कुछ नहीं दीखता. पांच माह में ऐसा क्या हो गया कि श्री श्रीवास्तव को सम्भल से हटाना पड़ा. एक माह में ऐसा क्या हो गया कि निलंबित किये गए श्री राकेश सिंह फिरोजाबाद में पूर्णतय अक्षम पाए गए पर एक माह बाद ही संभल के लिए उपयुक्त हो गए. तीसरी बात यह कि यह सब मंत्रीजी पर मुकदमे के बाद ही क्यों हुआ?
आप अवगत होंगे कि मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा टीएसआर सुब्रमनियम बनाम भारत सरकार में दिए आदेश के क्रम में भारत सरकार ने 28 जनवरी को आईएएस तथा आईपीएस कैडर नियमावली में संशोधन करते हुए हर अफसर को दो साल से पहले एक स्थान से हटाने पर रोक लगा दी. यह भी कहा कि कोई भी ट्रांसफर एक उच्चस्तरीय सिविल सेवा बोर्ड की संस्तुति पर ही होगा. यह भी कहा गया कि यदि दो साल से पहले ट्रांसफर किया गया तो सम्बंधित अफसर को भी अपनी बात कहने का अवसर मिलेगा.
जहां तक मैं समझ पा रही हूँ इन मामलों में इसमें से किसी भी बार का पालन नहीं किया गया है. मैं नहीं समझती कि कोई भी वाजिब और अपनी प्रतिष्ठा के प्रति सजग उच्चस्तरीय बोर्ड इतनी गैर-जिम्मेदार होगी कि एक माह पहले जिसे निलंबित करने की संस्तुति की हो, उसे एक माह बाद ही दुसरे जगह पर एसपी बनाने की संस्तुति कर दे. साथ ही मैं नहीं समझती कि कोई भी जिम्मेदार बोर्ड किसी अफसर को पांच माह में हटाने की राय बिना प्रक्रिया के पालन किये मनमर्जी से दे देगी. लेकिन जैसा मैंने सुना है यूपी में जो सिविल सेवा बोर्ड ट्रांसफर और पोस्टिंग में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की भावना पैदा करने और उन्हें सुनिश्चित करने को बनी है वह स्वयं ही राज्य सरकार की कठपुतली है और शासन में बैठे ताकतवर लोगों के इशारों पर पूरी तरह नाचती है. मैंने यह भी सुना है कि यूपी में ट्रांसफर पहले हो जाते हैं और यह कथित बोर्ड सरकार के इशारों पर बाद में उस पर कोई भी वांछित उलटी-सीधी सहमति दे देती है. कष्ट का विषय है कि कहने को इस बोर्ड में राज्य के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव जैसे बड़े और जिम्मेदार अधिकारी लगाए गए हैं पर वे राजनैतिक आकाओं के गुलाम की तरह आचरण कर रहे हैं.
यदि मेरी बात गलत है और मेरे द्वारा लगाए गए आरोप बेबुनियादी हैं तो मैं यह निवेदन करुँगी कि पहले श्री पियूष श्रीवास्तव के एसपी संभल के पद पर तैनाती, फिर श्री राकेश सिंह के एसपी फिरोजाबाद पद पर नियुक्ति, बाद में निलंबन और उसके बाद उनके निलंबन के समापन और श्री श्रीवास्तव के एसपी संभल से हटाये जाने और श्री सिंह के एसपी संभल बनाए जाने से सम्बंधित राज्य सरकार और सिविल सेवा बोर्ड के सभी आदेशों, मीटिंग की आख्याओं और पत्रावलियों को सार्वजनिक किया जाए. मैं निवेदन करुँगी कि यदि वास्तव में बोर्ड और राज्य सरकार ने क़ानून के हिसाब से सही काम किया है तो इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने में राज्य सरकार को किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
वैसे मैं अलग से आरटीआई के तहत इन सभी प्रकरणों से जुड़े अभिलेख मांग रही हूँ पर साथ ही इस पत्र के माध्यम से यह भी मांग करती हूँ कि पूरे राज्य सरकार की प्रतिष्ठा और उसकी निष्पक्षता पर उठे सवालों के दृष्टिगत ये सारे अभिलेख मुझे प्रदान करने के अलावा सार्वजनिक भी किये जाएँ ताकि प्रथमद्रष्टया इन कार्यों से राज्य सरकार की निष्पक्षता पर जो गहरे सवाल खड़े हुए हैं, यदि वे गलत हैं तो दूर हो सकें. निवेदन करुँगी कि यदि ऐसा तत्काल नहीं किया गया तो मैं आगे व्यापक जनहित में न्यायिक कार्यवाही करने को बाध्य होउंगी.
पत्र संख्या- NT/Sambhal/01
दिनांक- 28/06/2014
भवदीया,
(डॉ नूतन ठाकुर)
5/426, विराम खंड,
गोमतीनगर, लखनऊ
# 94155-34525
प्रतिलिपि पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश, लखनऊ को कृपया आवश्यक कार्यवाही हेतु