आँखों में पल रहे सपनों ने इन्हें चमक दी और ये सितारे बन गए, आज ये सितारे मां बाप की आँखों के तारे हैं …..और शायद आगे भी रहेंगे क्योंकि मां बाप तो आखिर मां बाप हैं …जी आपने सही पहचाना मै उन्हीं सितारों की बात कर रहा जिन्होंने आई.ए.एस. की परीक्षा में टॉप कर अपने सपनों को एक आयाम देने की कोशिश में अपने घर परिवार और इलाके का नाम रोशन कर दिया…खास बात ये कि इस परीक्षा के टॉप फाइव में चार लड़कियां हैं।
टॉपर इरा सिंघल, डा.रेणुराज, निधि गुप्ता, वंदना राव, सहर्ष भगत। इनके जैसे और भी कई। ये सब आई.ए.एस. बन गए। ये सब देश की सेवा करना चाहते हैं। इन्होने देश सेवा का व्रत लिया है। कुछ समय और ट्रेनिंग के बाद ये कसम लेंगे देश सेवा की और फिर लग जायेंगे देश सेवा में। ये सोच, ये सपने, ये देश सेवा का व्रत आने वाले इनके कार्यकाल में ताउम्र इनके जेहन में जिन्दा रहे, यही देश और देशवासियों के लिए बेहतर होगा और देश इनका ऋणी रहेगा क्योंकि अखबारों और पत्र पत्रिकाओं में छपी इन सितारों की फोटो अभी आगे आने वाले जाने कितने नए सितारों के लिए प्रेरणास्रोत होगी। जाहिर है इन सितारों की आँखों में सपने पलेंगे जिन्हें वो सच में बदलने को आतुर होंगे परिवार समाज और देश की खातिर।
अगर यही सपने इनकी आँखों में बने रहें तब तो बेहतर है वरना देश तो छोडिये प्रदेश में ही इतने सितारें हैं कि इनकी चमक के आगे सारे सितारे फीके पड़ जाएँ। जी हाँ ये हमारी आपकी आँखों के तारे सितारे न सही हमारी सरकार की आँखों के तारे तो हैं ही। बड़ी लम्बी लिस्ट है इन सितारों की। फिलहाल चंद सितारे आपकी खिदमत में पेश करता हूँ। प्रदीप शुक्ला,राजीव कुमार, सदाकांत, महेश गुप्ता, राकेश बहादुर, संजीव सरन, मोहिंदर सिंह, के.धनलक्ष्मी, यादव सिंह, अरुण मिश्रा। इनके सपने क्या वाकई यही थे जो इन्होने किया या इनपर जो आरोप लगे। वाकई अगर यही सपना था इनका तो ऐसे सपनों से डर लगता है। जी इसमें एन.आर.एच.एम. वाले भी हैं और नोयडा प्लाट आवंटन वाले भी, इसमें यू,पी.एस.आई.डी.सी. वाले भी हैं और भर्ती घोटाले वाले भी, इतनी छोटी सी लिस्ट में सजायाफ्ता वाले भी हैं और बचकर निकलने वाले भी…..पर कसम से आप इनके कारनामों को बताकर इन्हें बदनाम मत करिए।
ये सारे घपले घोटाले,जेल जाना फिर निकलना..फिर अच्छी जगह पोस्ट हो जाना….फिर खिलखिलाते हुए सीना तानकर इन सारे आरोपों प्रत्यारोपों का सामना करना ये सारी बातें इनके कांधो पर टंगे सितारे के माफिक हैं जिनकी चमक ही है जो इन्हें सरकार की आँखों का तारा और सितारा बनाती है। कुछ लोगों को भ्रम होगा कि नेता देश को चलाते हैं न जी ये ब्यूरोक्रेट्स ही हैं जो नेताओं की सोंच को परवान चढ़ाते हैं और फिर दोनों मिल के पकवान खाते हैं। और इस तरह इनका आपस में चोली दामन का साथ हो जाता है। फिर तो चाहे चोली फटे या दामन से बदबू आये, इनका साथ नहीं छूटता। फिर तो टूट जाती हैं सारी कसमें, बदल जाते हैं सारे सपने। फिर एक नया सिलसिला चल पड़ता है। तोड़े जाते हैं गवाह, मिटाए जाते हैं सबूत, जाने कितनी महत्वपूर्ण जानों की कोई कीमत नहीं रहती। मर जाते हैं इनके एहसास। इनके चेहरों पर कभी दिखने वाली खुबसूरत सपनों की लालिमा एक बेशर्म वैश्या के रंगीन ओंठों सरीखी लगने लगती है। जो उन्हीं लोगों को आकर्षित करती हैं जिन्हें उसकी तलाश होती है।
इन सितारों के ऐसे सपनों से डर लगता है। दुआ तो हमेशा ये रहेगी कि इन सितारों की चमक कभी फीकी न हो। इनके सपने कभी इनकी आँखों में धुंधले न हों। पर काश ऐसा हो। किसने सपनों को बचाए रखा, किसके सपने लम्बे अरसे तक जीवित रहे, कौन कितने लम्बे समय तक अपने सपनों के साथ संवेदनशील रहा, यही पैमाना होना चाहिए एक सितारे की चमक का वरना इस आसमान में कितने सितारे हैं जो टिमटिमाते दिखते हैं और कितने हैं जो मौजूद तो हैं पर अपनी चमक खो चुके हैं। इन सितारों के ऐसे सपनों से डर लगता है!
अमेठी के इलेक्ट्रानिक मीडिया पत्रकार दिनकर श्रीवास्तव से संपर्क : 9919122033
anuj mishra
July 13, 2015 at 3:58 pm
bahut achha dinkar bhai