


Lakshmi Pratap Singh : 4 साल मोदी की आर्थिक नीतियों की तरीफ करने वाले ZeeNews के मालिक सुभाष चंद्रा की कम्पनी डूब रही है। सार्वजनिक रुप से अपने निवेशकों से पत्र लिख कर माफी मांगी है। अब लंका लुटने के बाद, Zee Entertainment को बेच रहे हैं ताकि ब्याज और कर्जा चुका सकें। इसी ZeeGroup के समाचार चैनल ZeeNews पर सरकार की गलत आर्थिक नीतियों की लीपा पोती की जाती थी। सुधीर चौधरी और रोहित सरदाना तो जैसे भाजपा के प्रवक्ता थे, जो नोटों में चिप की झूठी खबर से नोटबन्दी में मरने वालों से ध्यान हटा रहे थे। 4 साल मोदी की पकौड़ानोमिक्स दुनिया को बताते-2 लगता है खुद भी एप्लायी कर ली। सुधीर चौधरी अब बोलो सब ठीक हैॉ?
SK Yadav : ज़ी न्यूज़ के संस्थापक और मालिक सुभाष चंद्रा ने क्यों सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है. सुभाष चंद्रा के एक पत्र से ज़ाहिर है कि उनकी कंपनी पर वित्तीय संकट मंडरा रहा है. सरकार के इतने क़रीब होने के बाद भी सुभाष चंद्रा लोन नहीं दे पा रहे हैं तो समझ सकते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था कितनी नाज़ुक हालत में है. इनके चैनलों पर मोदी के बिज़नेस मंत्रों की कितनी तारीफ़ें हुई हैं और उन्हीं तारीफ़ों के बीच उनका बिज़नेस लड़खड़ा गया.
Vijay Shanker Singh : सरकार ज़ी ग्रुप पर नज़र रखे. सरकार पहले ज़ी (zee) के मालिक सुभाष चंद्रा का पासपोर्ट ज़ब्त करे। भरोसा कुछ नहीं। यह वे लोग है जो भारत माता की जय और वंदे मातरम बोलते हुए, चार्टर्ड प्लेन से अचानक पलायन कर जाते है और फिर सागरपार से सुभाषित पढ़ने लगते है। विजय माल्या का अचानक पलायन याद है न?
जाते वक्त अरुण जेटली से मिलकर, माल्या के ही शब्दों में कहें तो, वे वित्तमंत्री को बताकर लंदन गये थे। संसद के सेंट्रल हाल में दोनों मिले थे। जब पत्रकारों ने वित्तमंत्री को इस मुद्दे पर घेरा तो याद कीजिये, लजाते हुये उन्होंने कहा भी था, हाँ वे कुछ कह तो रहे थे पर मैंने सुना नहीं। यही कहा कि अपनी बात बैंकों से कहिये। खैर विजय माल्या तो अब आ ही रहे हैं वापस। अरुण जेटली को अब भी देखें। अमेरिका में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं पर चिंता उन्हें चंदा कोचर की सता रही है।
कह रहे हैं सीबीआई को उनके मामले में अधिक सख्ती, उन्हीं के शब्दों में इन्वेस्टिगेटिव ऐडवेंचरिज़्म से बचना चाहिए। 34 साल की नौकरी में इन्वेस्टिगेशन का यह प्रकार तो पहली बार सुना, जबकि ट्रेनिंग में मुरादाबाद और हैदराबाद दोनों जगह गया था। उनका ताज़ा ब्लॉग पढिये तो यह प्रसंग पता लग जायेगा। कमाल की अंग्रेजी लिखते हैं वे। हम जैसे भोजपुरी बेल्ट के लोग जो यूपी कॉलेज में पढ़े हैं उनकी अंग्रेज़ी के हिज्जे से ही आतंकित हो जाते हैं।
यहीं पर अंग्रेज़ी के मास्टर साहब की नसीहत याद आती है कि, अंग्रेजी अखबार का एडिटोरियल पढ़ा करो। पढ़ने में ठीक ठाक था तो पढ़ भी लेते था पर कहाँ जेटली जी की अंग्रेजी कहां मेरी। अरुण जेटली, ज़िंदगी भर तो कॉरपोरेट की वकालत किये। और हम लोग जब वे वित्तमंत्री बने थे, तो पांच साल से यह उम्मीद उनसे पाल बैठे रहे, कि, जनहितकारी, पीपुल्स फ्रेंडली बजट वे पेश करेंगे। पर दुर्भाग्य देखिये, वे बीमार हो गए। फिलहाल वे जल्दी स्वस्थ हों और वापस आये, यही कामना है।
चुनाव में उन्हें ही जनता को उपलब्धियां बतानी भी है। बात भी सही है। उपलब्धियां भी कम थोड़े ही हैं। हम, वी द पीपुल हैं। बांग्ला कवि सुकांत भट्टाचार्य के शब्दों में ‘ हम सब तो सीढियां हैं !’ तो सरकार कुछ तो कार्पोरेटी बाजीगरी से सबक ले और ज़ी ग्रुप में जो कुछ भी घट रहा है उस पर नज़र रखे। हम आप को होम सिकनेस अक्सर होती रहती है, पर इस कॉरपोरेटी जमात को कोई व्याधि नहीं व्यापती, सिवाय हाही के।
सोशल मीडिया पर सक्रिय लक्ष्मी प्रताप सिंह, एसके यादव और विजय प्रताप सिंह की एफबी वॉल से.
पूरे प्रकरण को समझने के लिए रवीश कुमार का ये विश्लेषण पढ़ें….
One comment on “क्या सुभाष चंद्रा भी दिवालिया होने की तरफ बढ़ चले हैं?”
Sir tonk ka project band hone s hamari bhi halat ho gai h ki ham ghar bhi nahi ja pa rahe h lebber roj ghar k chakar laga rahi h ham kya kare samajh nahi a raha jinse pase liy the vah bhi ghar a rahe h ham kya javab de