तिहाड़ जेल में रहकर सहारा के चेयरमैन सुब्रत राय ने एक किताब लिखी है, ‘ट्रुथ’ नाम से. इस किताब के जरिए सुब्रत राय ने खुद को और सहारा को सच्चा बताया है. साथ ही अप्रत्यक्ष तरीके से सेबी और सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा है. यह किताब मार्केट में उपलब्ध नहीं है. इसे सिर्फ सहारा के फील्ड एजेंट्स और वर्कर्स के बीच वितरित किया जा रहा है. किताब दो सौ पन्नों की है और सहारा के पक्ष को पूरे मजबूती के साथ रखती है. माना जा रहा है कि इस किताब के जरिए सुब्रत राय ने अपने चिटफंड के कारोबार और हताश कार्यकर्ताओं में जान फूंकने की कोशिश की है. आम जन से सीधे टच में रहने वाले और पैसे निवेश कराने वाले सहारा के फील्ड एजेंट्स के दिलो-दिमाग को यह किताब पूरी तरह सहारा के पक्ष में मजबूती से खड़े होने को प्रेरित करती है.
खबर ये भी है कि सुब्रत राय दो अन्य किताबें भी लिख रहे हैं. तिहाड़ जेल के बगल में एक बड़ा सा गेस्ट हाउस सहारा समूह ने किराये पर लिया है जिसमें संपादक, वकील, लायजनर आदि सहारियन कैंप कर रहे हैं. ये लोग सुब्रत राय के संपर्क में रहते हैं और उनके निर्देश पर कंपनी के काम निपटाते रहते हैं. सूत्रों का कहना है कि सुब्रत राय के किताब के संपादन का काम विभांशु दिव्याल कर रहे हैं. सुब्रत राय जो भी लिखते हैं उसको संपादित कर आखिरी शक्ल देने का काम विभांशु दिव्याल के जिम्मे है. सूत्रों के मुताबिक सहारा के विरोधी अब किताब को मुद्दा बनाने की तैयारी में है. जो मसला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, उस पर सुब्रत राय खुद को सही और बाकी सरकारी एजेंसियों को गलत बता रहे हैं. ऐसा करके वह एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की मानहानि कर रहे हैं. उधर, सहारा मीडिया के ढेर सारे लोगों को सेलरी देर से मिल रही है. बड़ी मुश्किल से बिल वगैरह पास हो रहे हैं. सुब्रत राय की रिहाई लगातार टलने से सहारा के अंदर कई तरह के संकट बढ़ रहे हैं.
Comments on “सुब्रत राय ने लिखी दो सौ पन्नों की किताब, सुप्रीम कोर्ट और सेबी पर साधा निशाना”
Yashwant bhai yahan aap galat hai. Agar saharashri na hote ho lakho log berojgar hote. Jisse crime badhta. ..
नीरज जी,,, लाखों लोगो को रोजगार दिया है तो कोई एहसान नहीं किया है….पूरे आठ घंटे काम लेतें हैं वो भी कागज पर,,,,, उसके बदले देतें कया हैं यह सब जानते हैं… आप इनके कर्मचारी होंगे तो आप भी जानतें होंगे…..किसी धंधे के लिए जितनी पूजी की जरूरत होती है उतनी ही श्रम की भी….धंधा पृथ्वी पर करेंगे तो कर्मचारी अंतरिक्छ से नहीं लाएंगे.. जिस तरह से सभी बनिया अपने कर्मचारी का खून चूसते हैं उसी तरह ये भी चूसतें हैं…..
जवाब की प्रतिक्छा में …..
कोई भी अवमानना नही है. विना आधार न्याय पर उंगली उठाना अवमानना है,पर किसी भी फैसले पर सहमत होना ना होना व अभिव्यक्त करना ए नागरिक मौलिक अधिकार है. अगर सभी फैसले सही होते तो कोई भी अपील कामयाव नही होती वलपूर्वक आदेश का पालन नही करवाया जा सकता. प्रयत्न लोकतंत्र के लिये घातक व दुष्परिणाम को आमंत्रण करने वाला होगा न्याय देने बाद न्याय का सिधांत ”’न्याय करना जरूरी नही वो न्याय सर्वमान्य भी होना चाहिये व न्याय होते हुये भी दिखना चाहिये”’ईस का भी पालन होना चाहिये