डॉ. वेदप्रताप वैदिक
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान गजब के नेता हैं। उन्होंने पांच बाबाओं को भी ‘बाबा’ बना दिया। उनकी उल्टे उस्तरे से हजामत कर दी। चोर को चाबी पकड़ा दी। उसे चौकीदार बना दिया। सारी दुनिया भौंचक रह गई। जो पांच तथाकथित साधु-संत चौहान की नर्मदा-यात्रा पर कालिख पोतना चाहते थे, वे अपना मुंह छिपाते फिर रहे हैं।
इन पांच नेता-टाइप संतों ने घोषणा की थी वे सब अगले 45 दिन तक ‘नर्मदा घोटाला यात्रा’ करेंगे और मप्र की जनता को बताएंगे कि चौहान ने जो नर्मदा-यात्रा की थी और उसके नाम पर बहुत यश अर्जित किया था, उस यात्रा में जबर्दसत घोटाला हुआ है। जिन छह करोड़ पेड़ों को लगाने की घोषणा की गई थी, उनकी खोज की जाएगी और बताया जाएगा कि कैसे सरकार के करोड़ों रु. की लूट हुई है।
उनकी इस घोषणा से लोगों में यह भावना पैदा हुई कि देखो ये साधु-संत लोग कितने अच्छे हैं। ये सिर्फ अपनी आरती उतरवाने में अपना जीवन नष्ट नहीं करते बल्कि इनमें जनता की सेवा का भाव भी प्रबल है। ये भ्रष्टाचार के विरुद्ध खड़गहस्त होने के लिए भी तैयार हैं। इन संतों की घोषणा से भाजपा-विरोधी नेताओं का गुब्बारा एकदम फूल गया था लेकिन मुख्यमंत्री ने क्या जादू की सुई लगाई कि यह गुब्बारा फुस्स हो गया। चौहान ने इन पांचों संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया। संतों ने इसे खुशी-खुशी ले लिया। वैसे भी ये संत लोग किसी की दी हुई भेंट-पूजा को अस्वीकार नहीं करते।
ज्यों ही इन्होंने यह चौहान-कृपा स्वीकार की, इन्होंने अपनी घोटाला-यात्रा स्थगित कर दी और इन्होंने घोषणा की कि ये अब नर्मदा-क्षेत्र को हरा-भरा करने में सरकार का पूरा सहयोग करेंगे। यह घोषणा अपने आप में बड़ा घोटाला बन गया। जो विरोधी-दल इनकी पीठ ठोक रहे थे, वे अब इनकी दाढ़ियां नोंच रहे हैं। राज्यमंत्री का दर्जा स्वीकार करके इन संतों ने अपना अपमान स्वयं किया है। इस देश के मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तो इन संतों की चरण-धूलि पाने के लिए तरसते रहते हैं और मप्र के ये संत हैं कि दोयम दर्जे के मंत्री बनकर गदगद हैं। यदि अब जनमत से घबराकर ये संत लोग इस दर्जे को छोड़ भी दें तो क्या? जो नुक्सान संतई का होना था, सो हो गया।
लेखक वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.