Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

हिजबुल कमाण्डर बुरहान वानी की मौत का यूपी चुनावों से है गहरा नाता!

कई महीनों के अंतराल के बाद अचानक देश की आबोहवा में राष्ट्रीयता की गूंज फिर से सुनाई देने लगी है. पिछले महीनों में इसकी गूंज तब सुनाई दे रही थी जब दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगाये गये थे. तब वहां के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया की गिरफ्तारी और रिहाई के दौरान पूरा देश दो खांचों में बंटा नजर आ रहा था. पहला देशद्रोही और दूसरा तथाकथित देशभक्त. इसी दरम्यान भारत माता की जय के नारों से भी पूरे देश का माहौल पूरी तरह सराबोर था.

कई महीनों के अंतराल के बाद अचानक देश की आबोहवा में राष्ट्रीयता की गूंज फिर से सुनाई देने लगी है. पिछले महीनों में इसकी गूंज तब सुनाई दे रही थी जब दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगाये गये थे. तब वहां के छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया की गिरफ्तारी और रिहाई के दौरान पूरा देश दो खांचों में बंटा नजर आ रहा था. पहला देशद्रोही और दूसरा तथाकथित देशभक्त. इसी दरम्यान भारत माता की जय के नारों से भी पूरे देश का माहौल पूरी तरह सराबोर था.

उतने जोर शोर से तो नहीं लेकिन, कमोबेश वैसा ही माहौल इन दिनों भी देखने को मिल रहा है. खासकर हिन्दी बेल्ट में. जब बुरहान वानी की सेना के मुठभेड़ में मौत हुई उस समय मैं इलाहाबाद में था. चारों तरफ सेना की उपबल्धियों की चर्चा चल रही थी. विश्वविद्यालय के छात्र हों या फिर पान की दुकान पर जमा लोग…यहां तक की पनेरी और चाय वाले भी…सबकी जुबान पर सेना की उपलब्धियों के बखान थे. सफलता बड़ी थी ही. लेकिन, हैरान करने वाली बात तो ये है कि अगले दो दिनों में ही सेना की सफलता की चर्चा पीछे छूट गयी.

Advertisement. Scroll to continue reading.

बुरहान की मौत के बाद घाटी के अशांत होने का जो अंदेशा उमर अब्दुल्ला ने लगाया था हुआ भी कुछ वैसा है…घाटी से आ रही खबरों के बाद लोगों की प्रतिक्रियायें बदलती गयीं. वे जिस सेना की सफलता की चर्चा में मशगूल थे अब फिर से उनकी जुबान पर देशद्रोही और राष्ट्रभक्त जैसे शब्द पिरो गये थे. छात्र, कामकाजी लोग और हर कोई ये बताने में जुटा था कि किस तरह पूरा कश्मीर गद्दारों से भरा है. सेना की राष्ट्रीयता के बखान तो कोई नयी बात नहीं है लेकिन, बुरहान की मौत और उसके बाद घाटी में अशांति के बाद लोगों की हर प्रतिक्रिया में राष्ट्रवाद झलकने लगा है. मुसलमानों को देशद्रोही और खुद को राष्ट्रभक्त बताने की बारी फिर आ गयी है.

अचानक से घाटी में सेना को इतनी बड़ी सफलता का मिल जाना महज संयोग नहीं हो सकता. कहीं ना कहीं इस घटना की प्रतिक्रिया का अंदेशा केन्द्र सरकार को भी रहा होगा. लेकिन, भाजपा को ये जरूर पता होगा कि घाटी में अशांति के बाद पूरे देश में तथाकथित राष्ट्रवाद की लहर फिर उठ पड़ेगी. हो भी रहा है. इसीलिए मैं बुरहान की मौत को यूपी से जोड़कर देख रहा हूं. यूपी में महज कुछ महीनों बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं. यूपी के चुनावी नतीजे सीधे तौर पर मोदी सरकार को प्रभावित करने वाले होंगे.

Advertisement. Scroll to continue reading.

कश्मीर की दुर्घटना के बाद अचानक से भाजपा का यूपी में ग्राफ भी बढ़ता या इसकी चर्चा होने लगी है. जिस भाजपा को लोग बसपा के बाद मानते थे अब वे भाजपा को सबसे उपर गिनने लगे हैं. यहां तक की भाजपा को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के दावे भी ठोके जाने लगे हैं. ये भावना जाहिर तौर पर कश्मीर के बहाने पैदा किये गये तथाकथित राष्ट्रवाद से ही पनपी है. बसपा के कुछ बड़े नेताओं का पार्टी छोड़ जाना इसका एक पहलू भले हो सकता है. भाजपा खुद यूपी को लेकर कितनी डरी हुई है इसका अंदाजा साफ लगाया जा सकता है. क्षेत्र विशेष में किसी खास जाति का प्रतिनिधित्व करने वाली पिद्दी राजनीतिक पार्टियों से भाजपा क गठबंधन बताता है कि उसके कलेगा यूपी चुनाव को लेकर कांप रहा है.

और तो और, भाजपा ने पूर्वांचल के चारों तरफ मंत्रियों की फौज भी खड़ी कर दी है जिससे बनारस के इर्द गिर्द के जिलों में उसकी लाज बची रही. वर्ना आलोचक तो यही कहेंगे कि मोदी अपने आसपास की सीटें भी नहीं जीता पाये. लिहाजा यदि चुनाव में पूरी विजय नहीं भी मिलती है तो कम से कम ये तो कहा जा सकता है कि मोदी का करिश्मा बरकरार है. ये सारी कवायद भाजपा के डर की ओर ही इशारा कर रहा है. आने वाले दिनों में पार्टी और भी छोटी पार्टियों से गठबन्धन कर सकती है. जाहिर है कश्मीर के उथल पुथल के बहाने राष्ट्रवाद के पतवार से भाजपा को किनारे पहुंचने की उम्मीद जगी है..

Advertisement. Scroll to continue reading.

यदि भाजपा यूपी में विजय हासिल नहीं करती तो मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये उसकी दूसरी बड़ी हार होगी. बिहार में भाजपा की हार से मोदी के करिश्मे पर तीखे लांछन लगाये जाने लगे थे. अब उस यूपी में यदि हार हो गयी जहां से प्रधानमंत्री खुद सांसद हैं, तो भाजपा क्या मुंह दिखायेगी. लिहाजा हर कीमत पर जीत चाहिए… ये बताने की जरूरत नहीं कि यूपी में न सिर्फ जातीय ध्रुवीकरण जरूरी है बल्कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण तो सबसे ज्यादा जरूरी है. ऐसे में यदि समाज राष्ट्रवाद और राष्ट्रद्रोह के बीच बंट जायेगा तो फायदा राजनीतिक पार्टियों को ही मिलेगा.

हमारे समाज के डीएनए में ये बात रची बसी है कि भले ही भूखे पेट रहना पड़े लेकिन, देश के लिए कुछ भी किया जाना चाहिए. समाज का एक बड़ा तबका मुसलमानों को पहले से ही राष्ट्रवादी नहीं मानता रहा है. ऐसे में कश्मीर में सेना और अर्द्ध सैनिक बलों के खिलाफ खड़े हुए लोगों की नजीर ने इस आग में घी का ही काम किया है. जाहिर है कश्मीर में जितनी अशांति फैलेगी, स्थानीय लोगों का सेना से संघर्ष बढ़ेगा उसी मुकाबले देश में खासकर यूपी में राष्ट्रवाद की भावना और भी मजबूत होगी. ऐसे में राष्ट्रवाद का झण्डा उटाये भारतीय जनता पार्टी को फायदा नहीं होगा तो भला किसे होगा. वोट हिन्दू मुसलमान पर पड़े तो इससे बेहतर स्थिति भाजपा के लिए दूसरी नहीं हो सकती.

Advertisement. Scroll to continue reading.

मनीष कुमार
टीवी पत्रकार
लखनऊ
9336622973

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement