Yashwant Singh-
उन दिनों Badri Prasad Singh जी मेरठ के एसएसपी हुआ करते थे.
हम दैनिक जागरण में थे. फर्स्ट पेज इंचार्ज या सिटी डेस्क इंचार्ज… ठीक ठीक याद नहीं.
मेरा वीकली आफ था. सिटी रिपोर्टिंग टीम से दुर्गा नाथ स्वर्णकार नामक रिपोर्टर का फोन आया कि सर आज मेरा भी वीकली आफ है, आज मेरा बर्थडे भी है.
मैंने उन्हें बधाई दी. मध्य प्रदेश के निवासी दुर्गा मेरठ में विशुद्ध पत्रकारिता ही करते थे इसलिए उनकी फ्रेंड सर्कल कोई न थी. केवल आफिस और काम से मतलब था.
हम दोनों पल्लवपुरम साइड के किसी बार में एक साथ बैठे. बीयर दारू पी गई. बार बंद होने का टाइम होने लगा. सब लोग निकलने लगे. हम भी तैयारी कर ही रहे थे कि एक बंदा आया और बदतमीजी से जाने को बोलने लगा. हम लोगों को उसकी भाषा पर आपत्ति थी. हमने विरोध किया.
बस. उन सबों ने हमला कर दिया.
लड़ाई झगड़ा खत्म होने के बाद मैंने बगल के ठेकों की तरफ देखा तो अंग्रेजी का बंद हो चुका था. देसी वाले से लोग आखिरी खरीदारी कर रहे थे. मैं भी भगा और देसी की दो शीशियां ले लीं और गटागट वहीं पी गया.
थोड़ी देर बाद दैनिक जागरण के लोगों के फोन आने लगे. दुर्गा ने भागकर दैनिक जागरण में इस हमले को लेकर सूचना दे दी थी. पुलिस भी आ गई. पर इस बीच मैं भयानक टुन्न हो चुका था.
पिट जाने के अवसाद में घिर जाने के कारण गटागट दो देसी शीशी मारने से अंदर से थोड़ी मजबूती आई.
पुलिस टीम आई. बड़े अफसर लोग भी आए. मेरे से पूछताछ होने लगी.
थोड़ी देर तक सब बताता रहा.. फिर अंदर से कुछ जगा और पुलिस वालों को गरियाना शुरू कर दिया… अपराधी सब इधर भागे हैं… उनको दौड़ाकर पकड़ने की बजाय मुझसे ही इंट्रोगेट कर रहे हो…
सारी भड़ास पुलिस पर निकाल दी.
सीओ थे या एसपी सिटी, नहीं पता. किसी ऐसे ही अफसर ने एसएसपी को फोन किया. मेरी पिटाई तुड़ाई पकड़ाई के लिए आदेश मांगा. एसएसपी ने मना कर दिया.
सोचिए, अगर एसएसपी कह देता कि कूटो साले को तो रात भर में पीट पाटकर सब भुर्ता बना दिए होते मेरा..
उसके बाद दैनिक जागरण के भाई लोग मुझे नशे व गाली गलौज की अभिन्न अवस्था में दैनिक जागरण के आफिस के अंदर लेकर चले गए. वहां मैं दूसरों के लिए किसी अजूबे की माफिक था क्योंकि बुरी तरह नशे में था और मुंह से केवल गालियां निकल रहीं थीं…
देर रात मुझे घर पहुंचाया गया… बहुत मुश्किल से… घर में जाने से पहले मैं झाड़ियों में छिप गया जिससे पहुंचाने आए पत्रकार साथी लोग परेशान हो गए और लगे खोजने. उनको उम्मीद न थी मैं झाड़ी में मिलूंगा. पर मैं सांस रोककर झाड़ी में बैठा हुआ था ये सोच कर कि इन सबों को भी परेशान हो लेने दो.
वे लोग बहुत बाद में खोज पाए. फिर मुझे पकड़ कर घर के भीतर करने और दरवाजा अंदर से बंद हो जाने के बाद ही गए ताकि फिर न भाग जाऊं कहीं…
वो दो शीशी देसी पीना बवाल हो गया था. उसके पहले बीयर दारू जो पिए थे सो पिए थे, जो कोटा था अपना. उसके बाद निट दो देसी शीशी पीने के बाद ब्लैकआउट होना ही था.
ये प्रकरण हफ्ते भर तक चला. दैनिक जागरण मैनेजमेंट ने भी कार्रवाई की, शायद फोर्स लीव पर कुछ दिनों के लिए भेजा था.
हफ्ते भर बाद नार्मल हुआ था…
ये घटना और इसके साथ की उप घटनाएं इतनी तेजी से घटित होती गईं और इतनी उत्तेजना व एक्शन से भरपूर थीं कि इसकी स्मृतियां आज भी कायम हैं.
यही कारण है कि तत्कालीन एसएसपी बीपी सिंह को लेकर मन में एक अच्छी याद है कि उस बंदे ने उदात्तता दिखाई और मुझ पीड़ित द्वारा पुलिस के खिलाफ भयानक निगेटिव रिएक्शन से प्रभावित हुए बिना टीम को मूल अपराधियों पर कार्रवाई के लिए केंद्रित रखा.
संभव ये भी है कि नंबर एक अखबार दैनिक जागरण में सीनियर पद पर होने के नाते भी मुझे तत्कालीन एसएसपी बीपी सिंह द्वारा बख्श दिया गया हो… पर मेरी हरकत भी ऐसी न थी कि बिना कुछ डंडे दिए, बिना थोड़ा ठोंके बजाए ही छोड़ दिया जाए…
कभी कभी आवेश में की गई तात्कालिक प्रतिक्रियाओं के बारे में बाद में ठंढे दिमाग से सोचने पर लगता है कि उफ्फ… ये क्या कर दिया था अपन ने…
पर आदत तो आदत है… भविष्य में भी ऐसे कांड होते रहे क्योंकि अपन कहीं भी देर तक धैर्य रख नहीं पाते और रिएक्ट कर जाते हैं… इसका कभी फायदा मिलता है तो कभी कभी बहुत नुकसान होता है… पर जो है सो हइए है… भड़ास भी इसी किस्म के एक नकारात्मक रिएक्शन की ही उपज है… जानेमन जेल किताब भी इसी का नतीजा है…
अब उदात्तता और परिपक्वता यूं है कि अतीत के सारे कांड मुझे किसी शरारती बच्चे द्वारा किए गए लगते हैं… मुझे अब न कोई बुरा लगता है और न कोई खराब… न कुछ सही लगता है न गलत… भारी स्पीड से घूम भाग रही धरती पर हम सब प्री प्रोग्राम्ड पीपल हैं… सबमें थोड़ा थोड़ा डिफरेंस रखा गया है… वही डिफरेंस ही हमें अलग अलग स्टाइल से नचाता है…
मैं अब मानता हूं कि मेरे साथ जो भी अच्छा बुरा हुआ है… और उसमें जिसका भी रोल है, वो सब गुरु समान हैं जिनने सीखने समझने उदात्त होने अपग्रेड होने का मौका दिया… उन सबको प्रणाम… और बीपी सिंह जी को भी प्रणाम क्योंकि ये खास पोस्ट उनके लिए ही है.
कल मेरठ के तत्कालीन क्राइम रिपोर्टर भाई अभिषेक शर्मा और सीनियर फोटोग्राफर मदन मौर्या से बात कर उस काली रात की यादें ताजा कर रहा था. फिर ये कनफर्म किया कि उस वक्त एसएसपी बीपी सिंह ही थे न!
FB से.
उपरोक्त पोस्ट पर आए ढेरों कमेंट्स पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें : yashwant dj mrt attack