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सुख-दुख

उफ़्फ़ ये कैंसर! डाक्टर ने पत्नी समेत सुसाइड कर लिया

जगमोहन रौतेला-

इस खबर को ध्यान से पढ़ो और समझो कि कैंसर से पीड़ित का परिवार किस तरह आर्थिक व मानसिक तौर पर बुरी तरह टूट जाता है। जैसे-जैसे कैंसर पीड़ित के परिवार की आर्थिक दशा खराब होने लगती है, वैसे-वैसे नाते-रिश्तेदार चुपचाप किनारा कर लेते हैं। उन्हें लगता है कि वे कहीं पैसे न मांगने लगें।

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डॉक्टर इन्द्रेश शर्मा शायद मेरी तरह भाग्यशाली नहीं थे। मुझे मेरे दोस्तों ने बहुत हौसला दिया। समय-समय पर अपने-अपने स्तर पर मदद भी की। जिसके कारण मैं ढाई-तीन साल तक पत्नी का इलाज करा पाया और हर वक्त पत्नी के साथ खड़ा रहा। “हिम्मत रखो- हिम्मत रखो” कहना बहुत आसान है। पर हिम्मत कैसे रखी जाए? यह केवल पीड़ित का परिवार ही जानता है।

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