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इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेन्टर के 250 कर्मियों को निकालने की साजिश!

 

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेन्टर में कार्यरत लगभग 250 कॉन्ट्रैक्ट मॉनिटरिंग स्टॉफ को निकालने के लिए प्रशासनिक षड्यन्त्र शुरू, संविदा कर्मियों की नौकरी खतरे में…. ये देश का दुर्भाग्य रहा है कि आज़ादी मिलने के इतने सालों बाद भी प्रशासनिक सरमायेदारों के दिमागों से अंग्रेजों वाली Tendency निकलने का नाम नहीं ले रही है। ये बेहद सीधी सी बात है जब कोई आम आदमी संवैधानिक दायरों में रहते हुए अपने लिए कुछ न्यूनतम अधिकारों की मांग करता है तो उसे Administrative Machinery के दमन चक्र से निकलना पड़ता है। पूरा प्रशासनिक अमला उस व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के पीछे हाथ धोकर पड़ जाता है।

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इसके बाद शुरू होती है कोल्हू में पेरने वाली कवायद। उन लोगों को दबाने कुचलने के लिए अधिकारीगण अपनी पूरी ताकत झोंक देते है। अगर ये लोग इतनी ताकत और शिद्दत कर्मियों के Welfare में लगाते तो शायद विरोध और विद्रोह के सुर उन अधिकारियों के खिलाफ़ कभी मुखर ना बनते। कुछ ऐसे ही हालत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की मीडिया इकाई इलैक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेन्टर में देखने को मिल रहे है। जब से ये संस्थान Existence में आया है तब से ही श्रम कानूनों की धज़्जियां उड़ाना यहाँ के अधिकारियों की पंसदीदा Hobby रही है। इस अंधेरगर्दी में BECIL का पूरा साथ EMMC को मिलता है। इसके चलते BECIL और EMMC प्रशासन को एक बार न्यायालय में बुरी तरह मुँह की खानी पड़ी थी, आगे ना जाने कितनी बार इस संस्थान के अधिकारीगण और कितना छिछालेद्दर करवाने वाले है। हालिया तस्वीर जो कि एक दिसंबर से बनने जा रही है, वो तो और भी दिलचस्प है।

यहाँ के अधिकारियों में इतनी हिम्मत आ गयी है कि प्रधानमंत्री कार्यालय और DOPT के दिशा-निर्देश को ठेंगा दिखाते हुए, यहाँ के मॉनिटरिंग स्टॉफ की Bio-metric Attendance को खत्म करने की कवायद शुरू कर दी गयी। National Informatics center ने सभी Constitutional Bodies \ Central Ministries  \ Authorities \ commission \ Departments \ Directorates में Bio-Metric Attendance System Deploy कर रखा है। जिसके तहत सभी Permanent और Contractual Employee अपनी हाज़िरी लगाते है। Attendance से जुड़े Data की Transparency बनाये रखने के लिए BAS का Login कर्मियों को भी दिया जाता है।

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2014 में जब मोदी पीएम बने थे तो इस नियम का कड़ाई से पालने करने के लिए कहा था। इस कार्यालय के अधिकारियों के सिर पर कुर्सी की खुमारी इस कदर सवार है कि, वो अपने आप को पीएम से भी ऊपर समझने लगे है और खुल्लम खुला अपने नियम कायदे लागू करने और थोपने के लिए आमादा है। अगर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेन्टर के अधिकारी BAS System को हटाकर अनुबंधित कर्मचारियों की हाज़िरी के लिए अपना निजी System लागू करते है तो इससे अधिकारीगण उन कर्मियों को सीधे तौर पर निशाना बनायेगें जो संवैधानिक दायरे में रहते हुए Salary Hike, Health Facility, और Social Security की मांग करते है।

अधिकारीगण इस हाज़िरी System का गलत इस्तेमाल करते हुए उन्हें संस्थान से बाहर का रास्ता दिखायेगें, आने वाली ये कवायद इसीलिए शुरू की जा रही है। साथ ही इस System के लागू होने से Ghost Employee भी सामने आ सकते है, जिनका संस्थान में कोई वजूद तो नहीं होगा, लेकिन उनके नाम पर हर महीने तनख्वाह खाते में जरूर भेजी जायेगी।

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संस्थानिक पारदर्शिता खंडित होगी सो अलग। ये EMMC की नियति का हिस्सा रहा है, इस संस्थान में आने वाले तकरीबन सभी अधिकारी संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल अपने अहं को तुष्ट करने के लिए करते है। EMMC में जो हालिया नोटिस जारी किया गया है, ये उसी की बानगी है, नोटिस में हवाला दिया गया है कि संस्थान 24 घंटों रातोंदिन काम करता है, इसलिए हम अपना अलग से Attendance System Introduce कर रहे है। ये सोचने वाली बात है संस्थान तो 2008 से काम कर रहा है, हाज़िरी के लिए लाया गया BAS System 2014 में लागू किया गया था, आखिरी नया हाज़िरी System अभी क्यूं लाया जा रहा है। इसी पीछे की मंशा क्या है?

इसके पीछे सीधे से कारण है अधिकारियों की अहं तुष्टि और प्रशासनिक अराजकता को संस्थान में लागू करना। दूरदर्शन, आकाशवाणी जैसे केन्द्रीय संस्थान भी 24X7 चलते है, वहाँ ऐसी प्रक्रिया क्यूँ नहीं लागू की गयी ये अपने आप में यक्ष प्रश्न है। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया मॉनिटरिंग सेन्टर संविधान के सर्वोच्च मंदिर यानि कि संसद भवन से करीब करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर है, अगर वहाँ पर ऐसी प्रशासनिक अराजकता बनी हुई है तो देश के दूसरे हिस्सों में स्थित संस्थानों में काम करने वाले अनुबंधित कर्मियों के हालातों का अन्दाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल काम नहीं है। अधिकारियों की ऐसी ही मनमर्जियों और आधारहीन फैसलों की वजह से सरकारों का नाम बदनाम होता है। लोगों के बीच सरकार को लेकर गलत छवि बनती है। किसी तरह का नुकसान सरकारों को होता है।

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अधिकारीगण अपना दामन पाक-साफ बचाकर निकल जाते है। DOPT सूचना प्रसारण मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को इस तरह के मामलों का स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। दूसरी ओर अगर प्रशासनिक अधिकारी दंभ अहम् और स्वार्थ में अपनी ऊर्जा ना लगाकर अनुबंधित कर्मियों के कल्याण में लगाये तो हालात बेहतर बने रहेगें।

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