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सियासत

‘गनतंत्र’ में तब्दील होता गणतंत्र!

26 जनवरी, 2020. विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहे जाने वाले हमारे देश में 71वां गणतंत्र दिवस. दिल्ली में आयोजित होने वाले परेड में मुख्य अतिथि हैं ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर मेसियस बोलसानरो होंगे. लातिन अमेरिका का सबसे बड़ा देश ब्राजील है और वहां के राष्ट्रपति को ब्राजील का ट्रंप भी कहा जाता है.

ये महाशय भी हमारे देश के प्रधानमंत्री के तरह ही बेरोजगारी, भ्रष्टाचार व अपराध को मिटाने के वादे के साथ सत्ता में आए थे। लेकिन सत्ता में आने के बाद इन्होंने अमेजन जंगल से आदिवासियों को खदेड़ने की तैयारी शुरू कर दी। अमेजन के आदिवासी आज ब्राजील सरकार के खिलाफ अपने जल, जंगल और जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमारी सरकार ने इन्हें ही 71 वें गणतंत्र दिवस के परेड का मुख्य अतिथि क्यों बनाया, उसे हम अपने देश के आदिवासी इलाके के प्रति सरकार की नीतियों को देखकर समझ सकते हैं।

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आज अगर हम देश के विभिन्न हिस्सों के हालात पर नजर दौड़ाते हैं, तो हम आसानी से समझ सकते हैं कि वास्तविक में हमारे देश किस ओर आगे बढ़ रहा है, गणतंत्र है या ‘गनतंत्र’घ् आज पूरे देश में ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी मोदी सरकार द्वारा जनता की आवाज का दमन किया जा रहा है। आप जानते हैं कि किस तरह से अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से केन्द्र सरकार ने धारा 370 को खत्म कर दिया और इसका राज्य का दर्जा खत्म कर इसे दो केन्द्रशासित प्रदेश में बांट दिया गया। कश्मीरियों के विरोध के आवाज को दबाने के लिए वहां कई इलाकों में महीनों तक कफ्र्यू लगा दिया गया और इंटरनेट को बंद कर दिया गया। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लोगों को कश्मीर का दौरा करने से रोक दिया गया।

मुख्यधारा के कई राजनीतिक दलों के नेताओं को नजरबंद कर दिया गया, जिसमें वहां के तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल है (जो आज भी नजरबंद हैं), हजारों युवाओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। धारा 370 के खात्मे के खिलाफ उठती हर आवाज को फौज और अर्द्ध-सैनिक बलों के लाठियों, पैलेट गन के छर्रों व गोलियों से दबाया जा रहा है। आज भी कश्मीर के कई इलाके में इंटरनेट बंद हैं। असम में सरकार ने अपमानजनक व जनविरोधी ‘एनआरसी’ के माध्यम से लगभग 19 लाख लोंगों की नागरिकता पर संकट खड़ा कर दिया है, जिसमें कई मेडल प्राप्त फौजी से लेकर पूर्व विधायक व पूर्व राष्ट्रपति के परिवार के सदस्य तक शामिल हैं, हजारों लोगों को अपमानजनक ‘डिटेंशन सेंटर’ में डाला जा चुका है।

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मणिपुर, नगालैंड, अरूणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्य के लोग भी काफी डरे-सहमे हैं और इन राज्यों में भी विरोध की आवाज को दबाने के लिए समय-समय पर अर्द्ध-सैनिक बलों के जरिए दमन चलवाया जाता रहा है। छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के आदिवासी बहुल इलाकों में पहले से बहुत ज्यादा सीआरपीएफ, कोबरा, आईआरबी, बीएसएफ, आईटीबीपी जैसे केन्द्रीय सैन्य बलों के अलावे इन राज्यों के स्पेशल बलों को तैनात कर दिया गया है। आज आदिवासी बहुल इलाकों से उठनेवाली हर सरकार विरोधी आवाज पर ‘माओवाद’ का ठप्पा लगाकर बेहद क्रूर तरीके से दमन किया जा रहा है, जिसमें फर्जी मुठभेड़ में हत्याएं, महिलाओं के साथ सामूहिक विभत्स बलात्कार, फर्जी गिरफ्तारियों से लेकर आदिवासियों के घरों का जलाना, उनकी निर्मम पिटाई तक शामिल है।

केन्द्र सरकार द्वारा काला कानून ‘यूएपीए’ में संशोधन के जरिए विरोधी आवाजों को दबाने व किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना आज और भी आसान हो गया है। आज सरकार की जनविरोधी नीतियों का भंडाफोड़ करने व विरोध करने वाले हर व्यक्ति को ‘अर्बन नक्सल’ कहकर जेल में डाल दिया जा रहा है। आज भी भीमा कोरेगांव में हुई तथाकथित हिंसा व अर्बन नक्सल के आरोप में क्रांतिकारी कवि वरवर राव, मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, सोमा सेन, सुधीर ढावले, रोना विल्सन, अरूण फरेरा, वर्नन गोंजाल्विस, सुरेन्द्र गाडलिग, महेश राउत आदि जेल में बंद हैं।

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आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में हाल-फिलहाल कई छात्र नेताओं, शिक्षकों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को ‘अर्बन नक्सल’ बताकर जेल में डाल दिया गया है, जिसमें क्रांतिकारी लेखकों के संगठन विप्लवी रचयितालु संघम के सचिव प्रोफेसर कासिम भी शामिल हैं। यूपी में अनुवादक व राजनीतिक कार्यकर्ता मनीष व उनकी जीवनसाथी अमिता को भी ‘माओवादी’ बताकर जेल में डाल दिया गया है। इस पंक्ति के लेखक को भी माओवादी नेता बताकर 7 जून, 2019 को जेल में डाल दिया गया था, ये 6 महीने बाद जमानत पर निकलकर बाहर आये हैं। दोबारा पूर्ण बहुमत के मद में पगलायी केन्द्र सरकार व इनके नक्शे-कदम पर चलने वाली राज्य सरकारों ने ‘गनतंत्र’ स्थापित करने की पूरी कोशिश की है।

आज देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में फीस वृद्धि के खिलाफ हुए आंदोलनों पर भी हमारे देश की पुलिस लाठी व आंसू गैस के गोले बरसाने के लिए कुख्यात हो चुकी है। जेएनयू से लेकर सभी शिक्षण संस्थानों से निकल रही सरकार विरोधी आवाजों को दबाने के लिए भी सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर पुलिसिया दमन का सहारा लिया जाता रहा है।

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दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लोकसभा व राज्यसभा से पारित कराकर इसे कानून का रूप दे देने के बाद आज पूरे देश में जनाक्रोश फूट पड़ा है। सरकार को इस जनाक्रोश के सामने घुटना टेकने के बजाय पूरी बेहयाई से एक इंच भी पीछे नहीं हटने की बात दोहरायी जा रही है। सिर्फ यही नहीं बल्कि इससे भी बढ़कर पूरे देश में एनआरसी लागू करने की बात भी की है, वैसे जनांदोलनों के भय से एनआरसी लागू करने की बात से प्रधानमंत्री पीछे हट गये हैं, लेकिन एनपीआर को लागू करने पर अड़ी हुई है।

सीएए के खिलाफ हो रहे आंदोलनों सरकार के आदेश पर पुलिस की लाठियां बरस रही है और फर्जी मुकदमे के तहत कई आंदोलनकारियों को जेल की हवा खिलायी जा रही है, जिसमें महिलाएं, युवा व 70 साल से उपर के वरिष्ठ नागरिक तक शामिल हैं। सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ हो रहे आंदोलनों के पुलिसिया दमन में यूपी सरकार सबसे आगे है। दिल्ली में भी एनएसए लगाया जा चुका है। दिल्ली के शाहीनबाग में महिलाओं द्वारा सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ शुरू हुए बेमियादी धरना-प्रदर्शन आज देश के लगभग 50 जगहों पर पहुंच चुका है। ये विरोध-प्रदर्शन सरकार की आंखों में लगातार खटक रहा है और इसे पूरी तरह से खत्म करने के लिए सरकार द्वारा कभी भी व्यापक सैन्य बलों का इस्तेमाल किया जा सकता है (जो कि कहीं-कहीं किया भी जा रहा है, खासकर यूपी में)।

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उपरोक्त बातें तो महज चंद उदाहरण हैं यह साबित करने के लिए कि किस प्रकार हमारे देश में ‘गनतंत्र’ में ‘गणतंत्र’ तब्दील होता जा रहा है। लेकिन इस ‘गनतंत्र’ के खिलाफ असली गणतंत्र के लिए भी आज हमारे देश के लोग सड़क पर उतरे हुए हैं और हमें बेशक यह उम्मीद करनी चाहिए कि हमारे देश के गणतंत्रपसंद लोग इस ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी मोदी सरकार और इसके संरक्षक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सपने को कभी पूरा नहीं होने देगी।

रूपेश कुमार सिंह
स्वतंत्र पत्रकार

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