यशवंत सिंह-
अयोध्या में मंदिर अब बन जाएगा, पर मस्जिद बनने की संभावना फिलहाल दूर-दूर तक नहीं दिख रही है. सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर-मस्जिद विवाद का निपटारा करते हुए विवादित जमीन पर मंदिर बनाने और मस्जिद निर्माण के लिए अलग से जमीन देने का आदेश दिया. जमीन देने का काम पूरा हो चुका है. लेकिन लैंड यूज चेंज होने की फाइल सीएम आफिस में दबी हुई है. डेढ़ साल से नक्शा ही नहीं पास हो पाया है.
पिछले दिनों अमित शाह ने घोषणा की थी कि एक जनवरी 24 को रामलला मंदिर का उदघाटन किया जाएगा. सवाल है कि मस्जिद निर्माण की स्थिति क्या है? इसकी जानकारी करने पर पता चला कि अयोध्या के धन्नीपुर में मस्जिद निर्माण के लिए प्रस्तावित जमीन का लैंड यूज बदला जाना है. इसके लिए आवेदन किया जा चुका है लेकिन यहीं मामला अटक गया है या अटका दिया गया है. अयोध्या विकास प्राधिकरण ने आवेदन के डेढ़ साल बाद भी ‘मौलवी अहमदउल्लाह शाह योजना’ का नक्शा पास नहीं किया है. ट्रस्ट ने पूरी योजना का नाम ‘मौलवी अहमदउल्लाह शाह योजना’ रखा है. ट्रस्ट के मुताबिक लैंड यूज बदलने की फाइल सीएम आफिस में अटकी है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उत्तर प्रदेश सरकार ने मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या के धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ जमीन दे दी. वक्फ बोर्ड ने इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ट्रस्ट बनाकर जमीन उसके हवाले कर दी थी. इस जमीन पर करीब 3500 वर्ग मीटर में मस्जिद, 24150 वर्ग मीटर में चार मंजिला सुपर स्पेशियल्टी चैरिटी अस्पताल व कम्युनिटी किचन, 500 वर्ग मीटर में म्यूजियम और 2300 वर्ग मीटर में इंडो इस्लामिक रिसर्च सेंटर व पुस्तकालय आदि का निर्माण होना है.
तीन चरणों में पूरी होने वाली इस योजना पर करीब तीन सौ करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. पहले चरण में सौ करोड़ रुपये से निर्माण प्रस्तावित है. ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने बताया कि छब्बीस जनवरी 2021 को गणतंत्र दिवस पर मस्जिद निर्माण की नींव रखी गई थी.
ट्रस्ट ने पूरी योजना का नाम मौली अहमदउल्लाह शाह योजना रखा है. ट्रस्ट ने इसका तैयार नक्शा अयोध्या विकास प्राधिकरण से पास करवाने के लिए मई 2021 में आनलाइन आवेदन किया था. ट्रस्ट के लोकल ट्रस्टी अरशद अफजाल खान ने बताया कि आनलाइन आवेदन के कई महीनों तक हर तरह के कागजात के साथ एनओसी मांगी जाती रही.
इसके बाद प्राधिकरण ने जमीन का लैंड यूज बदलने की जरूरत बताई. अब अधिकारियों ने उन्हें बताया है कि लैंड यूज बदलने के लिए फाइल सीएम आफिस में भेजी गई है. वहां से आने के बाद ही आगे की कार्यवाही होगी. उन्होंने बताया कि आवेदन किए हुए डेढ़ साल बीत गए हैं, लेकिन अब तक नक्शा ही नहीं पास हो पाया है.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अयोध्या में मस्जिद निर्माण में जानबूझ कर अड़ंगे डालना और देरी कराना दरअसल भाजपा की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है. इस कदम से भाजपा का हिंदू वोट बैंक तुष्ट होता है. यही कारण है कि मंदिर निर्माण कंप्लीट कराके यथाशीघ्र उदघाटन और मस्जिद निर्माण में रोड़े अटकाते रहने की नीति अपनाई गई है. केंद्र और राज्य में भाजपा सरकारों की आक्रामक हिंदूवादी नीति के कारण मुस्लिम पक्ष भी बहुत फूंक फूंक कर कदम रख रहा है. मुस्लिमों में मस्जिद के लिए एकजुटता और सक्रियता, दोनों का अभाव दिख रहा है. माना जा रहा है कि मुस्लिम अब इस बात को समझ चुके हैं कि मंदिर मस्जिद और हिंदू मुस्लिम का चक्कर जितना बढ़ेगा, उससे भाजपा को उतना ही फायदा होगा, इसलिए कोशिश बीजेपी के जाल चाल में न फंसने की रहे.
वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मंदिर बन जाएगा तो फिर उसके बाद बीजेपी के लिए राजनीति करने को क्या रहेगा? अयोध्या मुद्दा खत्म न हो, इसलिए अयोध्या में मस्जिद निर्माण को लटकाए रखने की रणनीति अपनाई गई है ताकि पहले मंदिर बनाने के नाम पर राजनीति हुई तो आगे मस्जिद निर्माण लटकाने के नाम पर राजनीति हो सके. हालांकि मस्जिद निर्माण सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत होना है, इसलिए देर सबेर निर्माण होगा ही. लेकिन जितनी देर इसे लटकाया जा सकता है, लटकाते रहो, की नीति पर राज्य सरकार चलती दिख रही है जिससे हिंदू जनमानस को सुपीरियारिटी की भावना से ओतप्रोत कर इसका लाभ चुनावों में लिया जा सके.