क्यों कैंसर कभी किसी ऐसे शरीफ आदमी को भी हो जाता है जिसने जीवन में न कोई नशा किया और न ही जीवनशैली गड़बड़ रखी. कई बार जो बहुत सारी बुरी आदतें पाले रहते हैं, उन्हें ताउम्र कैंसर नहीं होता. इस उलटबांसी का जवाब अब मिल गया है. आप मानें या न मानें, कैंसर असल में आपकी किस्मत पर निर्भर करता है. ये किस्मत कनेक्शन वाली बात किसी ओझा, सोखा, फकीर या मुल्ला-पंडित ने नहीं कही. इसे वैज्ञानिकों ने लंबे रिसर्च के बाद साझा किया है. इस रिसर्च में बताया गया है कि जब कोशिकाएं विभाजित होती हैं तो उस वक्त डीएनए में होने वाले आकस्मिक बदलाव या गलतियां ही इंसानों में होने वाले दो तिहाई कैंसर की वजह होती है.
वैज्ञानिको के नए शोध का कहना है कि कैंसर डीनए में कुछ गड़बड़ी आने पर होता है. सेल्स के डिवाइड होते समय डीएनए में आई अचानक गड़बड़ी के लगातार इकट्ठा होते जाने से कैंसर हो जाता है. इस कारण से ही 66% कैंसर के मामले सामने आते हैं. बाकी कैंसर के मामले अन्य वजहों के कारण है. सेल्स में बदलाव किसी बाहरी कारणों से नहीं आता है. जैसे गुटका खाना, धूम्रपान करना, अलकोहल लेना कैंसर के लिए जिम्मेदार सेल्स में विभाजन का कारण नहीं बनते. हां, ये रिस्क फैक्टर जरूर हैं. डीएनए सेल्स में गड़बड़ी चांस से होने वाली घटनाएं हैं जो मालीक्यूलर लेवल पर होती हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो कैंसर किसी को भी हो सकता है.
डीएनए में गड़बड़ी क्यों आती है? इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता. इस प्रकार फिलहाल तो हम कह सकते हैं कि कैंसर किसी को भी हो सकता है, वो चाहे शरीफ हो या बदमाश. वो चाहे नशाखोर हो या साधु-संत. अधिकतर लोगों को लगता है कि कैंसर खराब लाइफस्टाइल के कारण होता है. कुछ लोग कहते हैं कि यह धूम्रपान, अलकोहल या खतरनाक रसायनों आदि के कारण होता है. कुछ लोग कैंसर के लिए मोटापे आदि को जिम्मेदार मानते हैं. लेकिन ये संपूर्ण सच नहीं है. कैंसर की प्राथमिक वजह डीएनए में गड़बड़ी है. शोध ने इस बात का खुलासा कर दिया है कि डीएनए के सेल्स में हुई गड़बड़ियों के कारण कैंसर होता है. यह शोध 69 देशों का सांख्यिकीय विश्लेषण करता है जिसमें भारत भी है. इसमें करीब 4.8 अरब लोग प्रतिनिधित्व करते हैं. शोध इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने किया और 24 मार्च को यह साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ.
इस नई स्टडी के मुताबिक अलग-अलग तरह के कैंसर का कारण अलग-अलग होता है. पैनक्रिऐटिक कैंसर यानी अग्न्याशय में होने वाला 77 प्रतिशत कैंसर, डीएनए में होने वाली आकस्मिक गलतियों की वजह से जबकि 18 प्रतिशत वातावरण के फैक्टर्स की वजह से है, जिसमें स्मोकिंग भी शामिल है. बाकी बचा 5 प्रतिशत आनुवंशिकता वजहों से होता है. प्रॉस्टेट, ब्रेन या बोन कैंसर में तो 95 प्रतिशत बार DNA में होने वाले बदलाव जिम्मेदार होते हैं.
लंग कैंसर पर्यावरण संबंधी कारणों यानि स्मोकिंग वगैरह को माना जाता है. इस मामले में 65 प्रतिशत परिवर्तन सिगरेट पीने की वजह से जबकि 35 प्रतिशत DNA एरर की वजह से होता है. लंग कैंसर के मामले में आनुवंशिकता का कोई रोल नहीं है. इस स्टडी में 69 देशों से जिसमें भारत भी शामिल है से डाटा कलेक्ट कर स्टैटिस्टिकल अनैलेसिस किया गया. इस स्टडी में करीब 4.8 अरब लोगों को शामिल किया गया था जो दुनिया की आधी से ज्यादा जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं.
इस नई स्टडी को यूएस के बॉल्टिमोर स्थित जॉन हॉपकिन्स किमेल कैंसर सेंटर के वैज्ञानिकों ने किया और 24 मार्च को जर्नल सायेंस में इसे पब्लिश किया गया था. मेल स्पर्म के फीमेल एग से मिलने पर जब पहली कोशिका बनती है तब से लेकर आगे तक कोशिकाओं के लगातर हो रहे विभाजन से ही मनुष्य के शरीर का विकास होता है. हर बार जब कोई कोशिका 2 भाग में विभाजित होती है तो DNA को ढोने वाला जेनेटिक कोड कॉपी हो जाता है. वैज्ञानिक जो कह रहे हैं उसके मुताबिक, जेनेटिक कोड कॉपी होने की इस प्रक्रिया में जो गलतियां होती हैं वह धीरे-धीरे एकत्रित होने लगती हैं और आखिरकार जाकर कैंसर की वजह बनती हैं.
इस रिसर्च पेपर के लीड ऑथर क्रिस्टिआन टोमैसेटी कहते हैं, ‘शरीर में होने वाली ये गलतियां कैंसर के लिए जिम्मेदार एक प्रभावी सोर्स है जिन्हें सालों से वैज्ञानिक स्तर पर कम करके आंका गया और इस नई स्टडी में पहली बार अनुमान लगाया गया है कि उन परिवर्तनों के बारे में जो इन गलतियों से उत्पन्न होते हैं.’ शोधकर्ताओं ने सभी 32 प्रकार के कैंसर के बारे में पढ़ाई की और अनुमान लगाया कि 66 प्रतिशत कैंसर कॉपी एरर की वजह से, 29 प्रतिशत खराब लाइफस्टाइल या पर्यावरण संबंधी फैक्टर्स और बचा हुआ 5 प्रतिशत आनुवंशिक कारणों से होता है.
प्रस्तुति : आयुष सिंह