मनीष दुबे-
संयुक्त पुलिस आयुक्त (लॉ एंड ऑर्डर) लखनऊ की तरफ से एक अखबार को उसकी एक ख़बर के खिलाफ पत्र भेजकर आपत्ति जताई गई है. 9 अप्रैल को जारी पत्र संख्या- सीए-सं.पुआ-21/2024,1364 में कहा गया है कि, कृपया अपने प्रतिष्ठित अखबार में 4 अप्रैल 2024 को पब्लिश खबर, “जाम में फंसे थे लोग मोबाइल में व्यस्त थी पुलिस” खबर का संज्ञान लें, जिसमें यह कहा गया है कि पॉलिटेक्निक चौराहे पर जाम लगा था और उसका एक फोटो भी प्रकाशित किया गया है.
पत्र में कहा गया है कि, “इससे पहले भी 3 अप्रैल 2024 को इसी प्रकार की खबर जाम में फंस गया यातायात पुलिस का आदेश” शीर्षक छापा गया था. इस खबर में यह ज्ञान दिया गया था कि यातायात पुलिस के अधिकारी दफ्तरों में बैठकर सुधार का दावा करते हैं, बाहर नहीं निकलते.”
भेजे गए पत्र में पुलिस द्वारा अखबार को कहा गया कि, “आश्चर्यजनक है कि संभवत: आपके रिपोर्टर ऑफिस में बैठकर खबरें बना रहे हैं, बाहर निकलना नहीं चाहते. या तो उन्हें भुगतान कम दिया जा रहा है या साधन की कमी है या संभवत: ज्ञान की कमी है.
इससे पहले भी आपके प्रतिष्ठित अखबार में छपी कुछ फर्जी व झूठी खबर के संबंध में नोटिस निर्गत किया गया था और प्रेस काउंसिल में शिकायत भी दर्ज कराई गई थी. लेकिन शायद अब फिर वही स्थिति आ गई है कि आपराधिक एवं सिविल मानहानि का वाद भी आपके प्रतिष्ठित अखबार के खिलाफ चलाया जाए. क्योंकि आप लोग जनमानस में पुलिस की छवि धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं.”
लखनऊ पुलिस की तरफ से इस अखबार को कहा गया है कि, “ये नोटिस आपको अहसास दिलाने के लिए भेजा जा रहा है कि आपको पत्रकार एवं फोटोग्राफर द्वारा गलत फोटो लगायी गई. कृपया इसका खेद प्रकट करते हुए अपने अखबार में प्रकाशित करें साथ ही संबंधित रिपोर्टर व फोटोग्राफर के विरूद्ध की गई कार्यवाही से अवगत कराने का कष्ट करें. तीन दिन के भीतर आपका जवाब नहीं आता है तो प्रकरण में आपराधिक एवं सिविल मानहानि की कार्यवाही प्रारंभ कर दी जाएगी.”
हमने संबंधित अखबार, उसकी हेडिंग इत्यादि सर्च करने का प्रयास किया लेकिन शायद नोटिस मिलने के बाद सबकुछ हटा दिया गया लग रहा है. यदि इस अखबार या नोटिस के बारे में किसी को कोई जानकारी हो तो भड़ास को [email protected] पर सूचित करें. आप चाहेंगे तो आपका नाग गुप्त रखा जाएगा.
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