Satyendra PS : आज Chandan Yadav ने बताया कि प्रेस क्लब आफ इंडिया ने उनकी सदस्यता निलम्बित कर दी है। उनसे पूछा कि काहे ऐसा किया है भाई? उन्होंने कहा कि मैंने सवाल उठा दिया था कि हल्दीराम से भी महंगा रसगुल्ला प्रेस क्लब में क्यों मिलता है? कुछ लोगों ने यह भी कहा कि चन्दन संघी है। वो अपना एजेंडा चलाने के लिए फेसबुक पर प्रेस क्लब के खिलाफ लिखा, इसलिए सदस्यता से निलंबित कर दिया। अब जरा प्रेस क्लब के वामपंथ और संघीपन्थ को समझें, जो मुझे समझ में आया।
अभी जो प्रेस क्लब के अध्यक्ष हैं, वो इसके पहले जब चुनाव लड़े थे तो दक्षिणपंथी, संघी थे और अबकी वामपंथी बनकर लड़े और चुनाव जीत गए। मतलब यह समझें कि मौजूदा अध्यक्ष जी पिछले चुनाव में दक्षिण पंथी थे, उनको मैंने वोट नहीं दिया, वो चुनाव हार गए। अबकी इलेक्शन में वो वाम पंथी हो गए, मैंने उनको वोट किया और अबकी चुनाव जीत गए! इसके पहले जो अध्यक्ष थे वो वामपंथी कश्मीरी पंडित थे। जब जेएनयू राष्ट्रद्रोह वाला कांड चल रहा था तो एक सदस्य को प्रेस क्लब की सदस्यता से इसलिए निलम्बित कर दिया कि उन्होंने अपनी सदस्यता संख्या से एक “राष्ट्रद्रोही कश्मीरी मुसलमान” की प्रेस कांफ्रेंस बुक करा दी थी।
यह भी सुनते हैं कि इस समय प्रेस क्लब पर ndtv की दबंगई है। संटूआ, छेनूआ, मंगरुआ तनी बताव त, ई कौन झामपन्थ चल रहा है? अपन के दिमाग का तो दही हो गया सोचकर… अगर आप लोगों में से किसी के पास एवररेडी सेल लगा 5 सेल वाला टॉर्च हो तो जरूर प्रकाश डालें कि प्रेस क्लब में वामपंथी और संघी का ये खेला क्या है!
बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र पी सिंह की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं….
Ujjwal Bhattacharya निकाला ही जाएगा. प्रेस क्लब क्या रसगुल्ला खाने के लिये बना है?
Chandan Yadav बात सिर्फ रोसोगुल्ले की नही है दा। बात है नेचुरल जस्टिस की। क्या आप सत्ता के अहंकार में इतने चुर हो जायेंगें कि सामनेवाला आपको तुच्छ लगने लगेगा और उसे बिना अपना पक्ष रखने देने का मौका दिये, एक्सपेल कर देंगें ? ये तो हिटलर को भी मात दे रहे हैं।
Satyendra PS यह भी सही है कि रसगुल्ला खाने के लिए नहीं बना है। लोग उसे बार के रूप में ही जानते हैं। लेकिन अगर बच्चे के मन मे सवाल आ ही गया तो वामपंथी तर्कशास्त्र लगाकर उसे समझा देना चाहिए था कि साथी देखो, तुम अहीर आदमी हो। समझो कि दूध महंग हो गया है! हमारा रसगुल्ला असली होता है आदि आदि! संघी कहकर निकालने का क्या तुक था…
Ujjwal Bhattacharya तुक नहीं, आसान है. संघी होने से प्रेस क्लब से निकाल दिया जाता है – यही संदेश देना था.
Satyendra PS मतलब जैसे किसी को राष्ट्रद्रोही कहा जा सकता है वैसे ही किसी को संघी कहकर उसकी मोब लिंचिंग की जा सकती है! मेरी पत्नी और बिटिया तो कई बार खारिज कर चुकी हैं कि प्रेस क्लब का खाना निहायत घटिया होता है। मैंने अपने तमाम मित्रों को बताया भी कि कभी घर में प्रेस क्लब में चलकर खाने को कह दूं तो बवाल हो जाए! शुक्र है कि मैंने वहां के कामरेडों के सामने यह मसला न उठाया। एक रसगुल्ला सदस्यता ले लिया। हम तो कहते हैं कि वहां कुछो खाने लायक नहीं है!
Mahendra K. Singh वामपंथ की यह दुर्गति यूँ ही नहीं हुई है। पिछले ३० – ४० सालों में इन्ही सुविधाभोगी और इलीट वामपंथियों और समाजवादियों ने अपने इसी तरह के कुकर्मों से इतना ग़दर काटा है कि लोग झांसाराम मोदी जी से भी उम्मीद पाल बैठे और अभी भी देश का आर्थिक बलात्कार करवाने के बाद भी दक्षिणपंथियों की तरफ ही उम्मीद भरी नज़रों से देख रहे हैं।
Satyendra PS हम तो वहां की राजनीति जानते ही नहीं हैं, मेरे एक बहुत अच्छे मित्र हैं। जिसको कहते हैं उसको वोट कर देता हूँ। उन्हीं से एक बार कहा कि महाराज कम से कम रोटी फ्री होनी चाहिए। दाल, सब्जी दो आयटम कम से कम खाने लायक हो। लेकिन कुछ नही। बस ऐसे ही है! अब तो जाना भी बहुत रेयर होता है। किसी से मिलना हो तभी।
Mahendra K. Singh मैं भी कुछ नहीं जानता इन लोगों के बारे में पर इतना तो है कि विचारधारा के प्रति सारी प्रतिबद्धता आम लोगों में होती है। बड़े पदों पर बैठे लोग या फिर उन पदों तक पहुँचने वाले लोग सुविधानुसार विचारधारा बदलते देर नहीं लगाते।
Chandan Yadav भाई Satyendra PS जी, दिल से आभार पोस्ट के लिये। हम क्या हैं… ये हमारे साथ जितने लोग जुड़े हैं उन सबको पता है और मैंने कभी छुपाया भी नहीं। बात यह है कि क्या किसी सदस्य को बिना अपना पक्ष रखने का मौका दिये आपने तानाशाही रवैय्यै के तहत मुझे एक्सपेल कर दिया। क्लब किसी की बपौती नहीं है, हम सबका है और नियम कानून से चलेगा या इनकी तुनुकमिजाजी से ? मुद्दा यह है। लोगों को इस पर सोचना चाहिये कि आज इनके भ्रष्टाचार पर बोलने से मुझे निकाला गया, कल आप कुछ बोलेंगे आपको निकाल फेंका जायेगा। क्या क्लब ऐसे ही चलेगा ? एक्सपेल करने से पहले क्या इन्हे मुझे मौका नहीं देना चाहिये था अपना पक्ष रखने का?
Chandan Yadav POSTED ON 1ST OCTOBER — रावण को जलाने के साथ विजयादशमी खत्म हुआ। उम्मीद करता हूं कि प्रेस क्लब के रुलिंग पैनल के हुक्मरानों ने भी कल अपने अंदर अहंकार रुपी रावण को जलाया होगा कल। क्लब जितना रुलिंग पैनलवालों का है उतना मेरा भी और सभी मेंबरों का है। यह सिर्फ अहंकार था जिसके कारण क्लब के हुक्मरानों ने मुझ जैसे साधारण सदस्य द्वारा भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाने और क्लब को लेफ्ट और राइट में बांटकर क्लब के राजनीतिकरण करने का विरोध करने पर सच का मुंह बंद करने के मकसद से तानाशाही रवैय्या अपनाते हुये मुझे अपना पक्ष रखने का मौका दिये बगैर सीधे क्लब से बाहर कर दिय। लोकतंत्र यह नहीं है जैसा हुआ मेरे साथ। आपलोग खुद के लेफ्टिस्ट होने का दावा करते हैं लेकिन आपलोगो के तानाशाही रवैय्ये को देखकर हिटलर भी उपर करवटें बदल रहा होगा। अहंकार और तानाशाही कभी भी और कहीं भी टिका नही है। इसलिये बेहतर है समय रहते हुये मेरे अवैध एक्सपल्सन पर आपलोग पुनर्विचार करें। कल विजयादशमी के दिन अगर आपलोगों के अंदर का अहंकार रूपी रावण जल गया हो तो अपनी गलती सुधारें नहीं तो हमारे पास भी विकल्प खुले हैं। मैं भी १२०० किलोमीटर दूर बिहार के भागलपुर से आया हुं, अपमान और मान सम्मान के साथ समझौता नहीं करुंगा। लड़ाई कितनी भी लंबी या कठिन क्यूं न हो, अकेले क्युं नहीं लड़ना पड़े, लडु़गा जरूर। मैंने भी दस दिन मां दुर्गा की पूजा की है और उन्होने मुझे शक्ति दी है आपके अंदर के अहंकारी और तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ लड़ने की तो मैं लड़ूंगा। और तमाम सदस्यों से आग्रह है कि मेरी लड़ाई में मेरा साथ दें क्युंकि आज मेरे साथ हुआ, कल आपके साथ भी हो सकता है अगर आपने विरोध में आवाज उठाया तो। अगर अब साथ नहीं खड़े हुये तो शायद आपके साथ भी लोग खड़े न हों अगर आपके साथ ऐसा कुछ होता है तो। आप भले मेरा साथ न दें लेकिन प्रेस क्लब को अहंकार और तानाशाही से तो बचाने का आपका फर्ज बनता है। धन्यवाद।
Chandan Yadav इन लोगों को तब से मैं खटक रहा था जब तेरह सितंबर को हमने बिना किसी नेता को बुलाये सिर्फ पत्रकारों के साथ अब तक हुये शहीद पत्रकारों के लिये श्रद्धांजलि सभा की थी। इनके पहले की सभा जो सिर्फ गौरी लंकेश के लिये थी और जिसमें नेताओं को बुलाकर इसे पत्रकार सभा नहीं बल्कि चुनावी सभा बना दिया था। यहाँ तक की कन्हैया कुमार को भी बुलाकर क्लब में स्टेज दिया गया था और हमारे वरिष्ठ पत्रकार खड़े दिखे। कई वरिष्ठ पत्रकार तो नाराज होकर निकल गए थे वहाँ से। इसके विरोध में हमने देश के विभिन्न हिस्से में अब तक शहीद हुए सभी पत्रकारों के लिए बिना किसी नेता के सिर्फ पत्रकारों की शोक सभा तेरह सितंबर को करायी थी प्रेस क्लब में। इस कार्यक्रम के आयोजन में भी उन्होंने बड़ी आनाकानी की थी लेकिन किसी तरह हमने वो कार्यक्रम किया। जिसकी बहुत तारीफ़ हुई थी ये अच्छा हुआ की सिर्फ पत्रकारों को बुलाया। तब से येलोग बहाना खोज रहे थे। और बहाना भी खोजा तो कैसा ? इनके घोटालों के बारे में हमने सवाल करना शुरू किया तो इन्होने अपने को घिरता देख मुझे बाहर करने का मनमाना फैसला किया ताकि और कोई बाहर होने के डर से न बोल सके। खैर, इनकी कोशिश बेकार जायेगी। कोई मुगलिया राज है क्या जो ये सवाल करने पर जीभ काट देंगे? भाइसाहब अब देश आजाद है और लोकतंत्र में राज पाट कानून से चलता है न कि तानाशाही के दस्तखत से।
Chandan Yadav अगर मैंने गलत किया है तो निकालिये लेकिन बिना शोकाज दिये या वार्निंग जारी किये बिना सीधे एक्सपेल करना कहां तक जायज है? जिस पत्रकारिता के धंधे में हम अन्याय के खिलाफ लोगों की आवाज उठाते हैं वहीं हमारा मूंह बंद करने की कोशिश की जाती है जो शर्मनाक है।
Narendra Tomar इसे वाम या दक्षिणपंथी नहीं हरामपंथी खेल कहना चाहिये।
Puneet Chawla एक राजा था। उसने दस खूंखार जंगली कुत्ते पाल रखे थे। उसके दरबारियों और मंत्रियों से जब कोई मामूली सी भी गलती हो जाती तो वह उन्हें उन कुत्तों को ही खिला देता। एक बार उसके एक विश्वासपात्र सेवक से एक छोटी सी भूल हो गयी, राजा ने उसे भी उन्हीं कुत्तों के सामने डालने का हुक्म सुना दिया। उस सेवक ने उसे अपने दस साल की सेवा का वास्ता दिया, मगर राजा ने उसकी एक न सुनी। फिर उसने अपने लिए दस दिन की मोहलत माँगी जो उसे मिल गयी। अब वह आदमी उन कुत्तों के रखवाले और सेवक के पास गया और उससे विनती की कि वह उसे दस दिन के लिए अपने साथ काम करने का अवसर दे। किस्मत उसके साथ थी, उस रखवाले ने उसे अपने साथ रख लिया। दस दिनों तक उसने उन कुत्तों को खिलाया, पिलाया, नहलाया, सहलाया और खूब सेवा की। आखिर फैसले वाले दिन राजा ने जब उसे उन कुत्तों के सामने फेंकवा दिया तो वे उसे चाटने लगे, उसके सामने दुम हिलाने और लोटने लगे। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसके पूछने पर उस आदमी ने बताया कि महाराज इन कुत्तों ने मेरी मात्र दस दिन की सेवा का इतना मान दिया…. …बस महाराज ने वर्षों की सेवा को एक छोटी सी भूल पर भुला दिया। राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया…. …और उसने उस आदमी को तुरंत भूखे मगरमच्छों के सामने डलवा दिया। सीख:- आखिरी फैसला मैनेजमेंट का ही होता है, उस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता।