मीडिया का जलवा क़ायम था, है, और रहेगा। पत्रकार भौकाली था, है, और रहेगा। मगर पत्रकारिता थी। है? रहेगी? इन सवालों का जवाब तलाशना बेहद ज़रूरी हो गया है। हालात अगर ऐसे ही रहे तो पत्रकारिता न्यूज़रूम के आईसीयू में जल्द ही दम तोड़ देगी। और हम और आप उस आईसीयू में उसे टीवी स्क्रीन की खिड़की से बेबस मरते खपते देखेंगे।
ज़रा याद कीजिये अपने उस मित्र पत्रकार को। फिर याद कीजिये आख़िरी बार उसने कब अपनी किसी एक्सक्लूसिव ख़बर की ख़बर दी थी। कब उसने कोई ख़बर ब्रेक की थी। यहाँ क्राइम और पॉलिटिक्स के डेवलेपमेंट को ख़बर से मत मिक्स कीजियेगा। वो रूटीन की बात है। उम्मीद है कि आपको ऐसा कोई वाक़्या याद नहीं आएगा। आये भी भला कैसे? अब लिखी ख़बर नहीं, पर्सपेक्टिव लिखा जाता है और दिखाई ख़बर नहीं, ओपिनियन सुनाई जाती है। पत्रकारिता के नाम पर अब बचता कुछ है तो वो है रिएक्शन बाइट। बस।
सब कुछ तो एंकर है अब और सब कुछ तो वो सेलिब्रिटी कॉलमनिस्ट है। रिपोर्टर है कहाँ अब? रिपोर्टर की ज़रूरत किसे अब? रिपोर्टर हैं। मगर चौपतिया अखबारों में। जिन्हें सिर्फ वसूली के लिए छापा जाता है। वहाँ है रिपोर्टर। वो भी ऐसा जो ख़बर ‘न’ लिखने के पैसे लेता है। ख़बर लिखने की अब किसे कहाँ कोई फ़िक़्र। बात चैनल की करो तो वहाँ ‘डिबेट’ नाम का विकल्प पत्रकार के होने न होने के फ़र्क़ को मिटा देता है। हर बात की बात पर बेबात डिबेट करता रहता है, वो न्यूज़ एंकर जब कुछ नहीं कर पाता तब डिबेट करा देता है।
तो कुल मिला कर ये, कि भड़ास4मीडिया जैसे प्लैटफॉर्म को अगर सार्थक बनाना है तो पत्रकार और पत्रकारिता को कॉलर पकड़ कर फील्ड में लाना है। सोचियेगा और विचार साझा कीजियेगा।
सधन्यवाद
निशान्त
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KalamKaar
April 4, 2019 at 1:25 pm
baat to ekdam sahi kahi
Shubham Singh
April 9, 2019 at 6:43 pm
Sahi kha