2005 में मुलायम सरकार ने किया तो कदम गलत साबित हुआ.. 2007 में मायावती आयीं तो उनका प्रस्ताव ख़ारिज हो गया… तब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र भेजा… फिर दिसंबर-2016 में अखिलेश सरकार ने 17 अतिपिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने की अधिसूचना जारी कराई तो ये भी गलत कदम साबित हुआ… अब 2019 में योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश में ओबीसी से जुड़ी 17 जातियों को अनुसूचित जाति (एससी) की श्रेणी में शामिल किए जाने का फैसला किया तो इसे किसी ने मास्टर स्ट्रोक तो किसी ने गेम चेंजर तो किसी ने एक तीर से कई निशाने साधने वाला निर्णय करार दिया लेकिन राज्यसभा में योगी सरकार के फैसले पर केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने सवाल उठा कर इस फैसले की हवा ही निकल दी है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि योगी सरकार का फैसला संविधान के अनुसार नहीं है। इस मामले में फैसला लेने का अधिकार सिर्फ संसद को है। अब अपनी जिद के लिए जाने जानेवाले मुख्यमंत्री क्या करेंगे, इस पर सबकी निगाहें टंग गयी हैं। केंद्रीय मंत्री गहलोत ने कहा कि अगर यूपी सरकार अपने प्रस्ताव पर आगे बढ़ना चाहती है तो उसे प्रक्रिया का पालन करना चाहिए और केंद्र को प्रस्ताव भेजना चाहिए।उन्होंने कहा, “हम तब इस पर विचार करेंगे।”
गहलोत ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का आदेश संविधान के मुताबिक नहीं है।उन्होंने योगी सरकार से कहा कि वह आदेश के आधार पर जाति प्रमाण पत्र जारी न करे अन्यथा मामला कोर्ट में जा सकता है। हम योगी सरकार से इस फैसले को वापस लेने का अनुरोध करेंगे। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला लिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 24 जून को जिला मजिस्ट्रेटों और आयुक्तों को आदेश दिया था कि वे अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों… कश्यप, राजभर, धीवर, बिंद, कुम्हार, कहार, केवट, निषाद, भार, मल्लाह, प्रजापति, धीमर, बठाम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मचुआ… को जाति प्रमाणपत्र जारी करें। हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर एक याचिका की वजह से इन 17 जातियों को जारी होने वाले जाति प्रमाण पत्र न्यायालय के अंतिम निर्णय के अधीन होंगे।
गौरतलब है की 2005 में मुलायम सरकार ने इस बारे में एक आदेश जारी किया था, लेकिन हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। इसके बाद प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया। 2007 में मायावती सत्ता में आईं तो इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग को लेकर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा।विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दिसंबर-2016 में इस तरह की कोशिश अखिलेश यादव ने भी की थी। उन्होंने 17 अतिपिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी भी दिलवा दी। केंद्र को नोटिफिकेशन भेजकर अधिसूचना जारी की गई, लेकिन इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। मामला केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में जाकर अटक गया था।
राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा बसपा के सतीश चंद्र मिश्र ने उठाया। उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल 17 समुदायों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला असंवैधानिक है क्योंकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है। सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 के उपवर्ग (2) के अनुसार, संसद की मंजूरी से ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की सूचियों में बदलाव किया जा सकता है।
सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि बसपा चाहती है कि इन 17 समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए लेकिन यह निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए और अनुपातिक आधार पर अनुसूचित जाति का कोटा भी बढ़ाया जाना चाहिए।उन्होंने कहा कि संसद का अधिकार संसद के पास ही रहने देना चाहिए, यह अधिकार राज्य को नहीं लेना चाहिए। बसपा नेता ने केंद्र से राज्य सरकार को यह ‘‘असंवैधानिक आदेश’’ वापस लेने के लिए परामर्श जारी करने का अनुरोध किया। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष मायावती ने भी आरोप लगाया था कि योगी सरकार उपचुनाव में फायदा लेने के लिए राज्य की 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का नाटक कर रही है।
गौरतलब है कि यूपी में इन 17 जातियों (निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, प्रजापति, राजभर, कहार, कुम्हार, धीमर, मांझी, तुरहा और गौड़) की आबादी करीब 13.63 फीसदी है। चुनावों में इन जातियों का रुझान जीत की दिशा तय कर सकता है। यूपी में 13 निषाद जातियों की आबादी 10.25 फीसदी है। वहीं, राजभर 1.32 फीसदी, कुम्हार 1.84 फीसदी और गोंड़ 0.22 फीसदी हैं। अरसे से इनकी मांग रही है कि उन्हें एससी-एसटी की सूची में शामिल किया जाए।
इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.