मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शिकार हो गया… मैं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) से जनसंचार से एम ए किया हूँ। एम ए के बाद इसी सत्र में एमफिल और पी-एच. डी. जनसंचार विभाग में एंट्रेन्स दिया। पी-एच डी और एमफिल दोनों एंट्रेन्स पास किया। दोनों में इंटरव्यू दिया। रिजल्ट का इंतजार करने लगा। रिजल्ट आने से पहले एक सूचना अचानक आती है कि जनसंचार की एम ए, एम फिल और पी-एचडी प्रवेश प्रकिया रदद् की जाती है। इसी दौरान जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष पर दबाव डालकर उनसे स्तीफा ले लिया जाता है।
यह सब कुछ बिना किसी कायदे-कानून के किया गया। कोई सूचना छात्रों को नहीं दी गई कि क्यों प्रवेश प्रक्रिया रदद् कर दी गई? इस पूरे मामले में कौन मुख्य दोषी है, उसे चिन्हित नहीं किया गया। एम ए के विद्यार्थियों की दुबारा परीक्षा हुई जितने विद्यार्थी मौजूद रहे सबको पास कर दिया गया। एमफिल की परीक्षा दुबारा कराई गई। एक ही दिन में लिखित परीक्षा और इंटरव्यू दोनों हुआ। यह भी बिना कायदे कानून के हुआ। पी-एच डी की आज तक कोई सूचना नहीं है।
मैंने 23 अगस्त को एम फिल की परीक्षा दिया। लिखित परीक्षा अच्छी हुई। सामान्य प्रश्न पूछे गए थे। ऐसे प्रश्न थे जिस पर मैं पहले से लिखते पढ़ते आया हूँ। कुछ लेख और निबन्ध उस विषय पर प्रकाशित भी हैं। मैं फेसबुक, ट्विटर पर 2013 से रचनात्मक तरीके से लिख-बोल रहा हूँ। मेरी भाषा यदि महावीर प्रसाद द्विवेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, बाबू राव विष्णु पराणकर, भगत सिंह जैसी नहीं तो न्यूतम स्तर पर तो है ही कि मैं अपनी बात लिख बोल सकता हूँ। मैं यह दावा करता हूँ कि मुझे 23 को हुई लिखित परीक्षा में फेल नहीं किया जा सकता है।
शाम को इंटरव्यू हुआ। मैं पूरी तैयारी के साथ इंटरव्यू में शामिल हुआ। ब्लैक सूज, फॉर्मल पैंट-शर्ट, और सेनोप्सिस के साथ गया। मेरा विषय था ‘किसान आंदोलन 2018: दृश्य-श्रव्य माध्यम की भूमिका’। मुझसे कई सवाल किए गए। बाहर से एक महिला आईं थीं उन्होंने 4 सवाल पूछे जिसका जवाब मैं सही दिया था। वर्तमान कार्यकारी HOD फरहाद मलिक जी 5 सवाल किए। पांचों सवाल का जवाब ठीक ढंक से दिया था। धरवेश कठेरिया मेरे विषय को नकार रहे रहे थे मैं विषय को सही तरीके से डिफेंड किया और यह भी कहा कि यदि प्रवेश होता है तो मैं आपसे कन्सल्ट कर विषय में परिवर्तन भी कर सकता हूँ। अन्य लोगों के सवाल का जवाब ठीक दिया था।
यह सबकुछ सिर्फ एक प्रवेश प्रक्रिया नहीं थी जिसमें मैं शामिल था। यह एक खेल था जिसके खिलाड़ी खेल के बिना किसी नियम कानून के खेल रहे थे। उनका लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ मुझे बाहर करना था। उन सभी छात्रों को बाहर करना था जो abvp, आरएसएस और भाजपा के समर्थक नहीं थे या इनसे इतर विचार रखते थे। मुझे जनसंचार विभाग में पिछले दो सालों से टार्गेट किया गया। मुझे परेशान किया जाता रहा। पढ़ता लिखता था शिक्षकों की गलतियों पर टोंकता था। सबकुछ सबसे अच्छा करने के बाद भी न्यूनतम नम्बर दिया जाता रहा। मैं इसपर सवाल भी उठाया। यह सब इसलिए किया जाता रहा क्योंकि मैं आरएसएस, abvp और बीजेपी का कैडर नहीं था।
विश्वविद्यालय के लगभग वे सभी शिक्षक मेरे खिलाफ खड़े थे जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और abvp से सम्बंध रखते थे। आरएसएस से सम्बंधित एक शिक्षक तो इस स्तर तक उतर आये कि जिस हॉस्टल (सुखदेव हॉस्टल) के वार्डन थे, उसी के लगभग 100 छात्रों से मेरे खिलाफ सिग्नेचर करवाकर मुझे विश्वविद्यालय परिसर से निकालने की अपील करने लगे। यह सब इसलिए किये शिक्षक महोदय क्योंकि मैं उनके पास कॉल कर हॉस्टल की अव्यवस्था को ठीक करने की गुजारिश किया था।
वर्तमान समय में इस केंद्रीय विश्वविद्यालय में जो कुछ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के इशारे पर हो रहा है वह असंवैधानिक है। यह सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग है। यह विचारधारा का निकृष्ट रूप है। यह एक विविधता वाले सुंदर देश को हिटलर का देश बनाने की कोशिश है। मैं जब इस विश्वविद्यालय में यह सब देख रहा हूँ तो बेहद चिंतित हूँ, व्यथित हूँ सामने इतिहास के उस जर्मनी की तस्वीर आ रही है जिसमें संस्थानों को टार्गेट कर उसे अपनी विचारधारा के प्रचार का माध्यम बनाया गया था। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक यदि इसी तरह संस्थानों पर कब्जा कर अपनी विचारधारा बढ़ाना चाहता है तो वह कभी सफल नहीं होगा। यह तात्कालिक लाभ जरूर पहुंचा सकता है लेकिन स्थाई तौर पर लाभकारी नहीं होगा। यह देश उसी तरह तीव्र गति से नष्ट होने की तरफ आगे बढ़ रहा है जैसे भूत में एक सुंदर जर्मनी नष्ट हुआ था।
मैं यहां से चला जाऊंगा। मैं कहीं और सेट हो जाऊंगा। मैं पढ़ता लिखता रहूंगा। दुनिया में खूबसूरत बनने और दुनिया को खूबसूरत बनाने की कोशिश करता रहूंगा। मैं कभी नफरत की सवारी नहीं करूंगा। मैं भविष्य में किसी के कैरियर के साथ इस तरह से अमानवीय एवं आपराधिक व्यवहार नहीं करूंगा जिस तरह से देश भर में आरएसएस के लोग कर रहे हैं। मेरी लड़ाई हमेशा अन्याय के खिलाफ रही है अभी भी उस लड़ाई का मैं सिपाही हूँ। मैं अन्याय के खिलाफ आखिरी सांस तक लड़ता रहूंगा।
इंकलाब जिंदाबाद!
लेखक गौरव उपाध्याय युवा पत्रकार हैं.
Rishabh upadhyay
September 3, 2019 at 7:52 pm
इंकलाब साथी