Ajit Anjum : रवीश कुमार को कोसने वाले, गाली देने वाले अपनी कुंठा निकालकर भी उसकी लंबी लकीर को छोटा नहीं कर पाएंगे. बीते 15-20 सालों में रवीश ने सैकडों ऐसी स्टोरी की है, जिसे TV वाले चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करते. उसने उन विषयों को उठाया है, जो इस लोकतंत्र में चौथे दर्जे के नागरिक की दर्दनाक कहानी है. बदरंग ज़िंदगी की हकीकत है. बेरोजगारों की व्यथा है. किसानों की दुर्दशा है.
उसने खोड़ा कॉलोनियों की जमीनी हकीकत दिखाकर हुक्मरानों से सवाल किया है. उसने पचासों ऐसी स्पेशल स्टोरी की है, जो उसे बिना किसी अवार्ड के भी बहुत ऊपर उठा देता है. 10 -15 साल पहले चाहता तो वो भी नेताओं के दरबार वाली पत्रकारिता का शॉर्टकट रास्ता पकड़ सकता था, बहुत आसान था लेकिन उसने गांवों और गलियों की खाक छानी. जब सारे चैनल TRP के बुलडोजर से NDTV पर चलने वाले उसके कॉन्टेंट को रौंद रहे थे तब भी वो खुद को जीरो TRP वाला एंकर कहकर अपने ही बनाए रास्ते पर चल रहा था.
सत्ता के सामने लेटने और लोटने के हर दौर में रवीश कुमार जैसों का होना ज़रूरी है. चाटूकारिता का रिकॉर्ड बनाकर पत्रकारिता को सत्ता की बांदी बनाने के हर दौर में रवीश कुमार जैसों का होना ज़रूरी है. जब पत्रकारों की बड़ी फौज किसी सत्ता के लिए मुनादी ब्रिगेड का काम करने लगे तो ऐसी आवाज़ें भी ज़रूरी हैं.
जब 10 बार चाटूकारिता करके एक बार निष्पक्षता का ढोंग करने का दौर हो तो ऐसे पत्रकार भी ज़रूरी हैं. कई बार रवीश से असहमत रहा हूं. आज भी होता हूँ. कई बार लगता है कि वो भी अतिवादी हो जाते हैं कई मामलों में, लेकिन जब चाटूकारिता का अतिवाद हिमालय से ऊंचा हो चुका हो तो रवीश कुमार जैसों का होना ज़रूरी है. चाटूकारिता के अतिवाद पर चोट करने के लिए अगर ये असहमति का अतिवाद भी है तो ज़रूरी है.
मैं कभी उसके दोस्तों की दुनिया का हिस्सा भी नहीं रहा, महीनों-सालों अपनी बात भी नहीं होती, फिर भी मानने में गुरेज नहीं कि पत्रकारिता में तनकर खड़े रहने के लिए नैतिक ताकत चाहिए. दरबारी ऐसा नहीं कर सकते. चाहे किसी दौर के दरबारी हों.
मुनादी मंडली में शामिल होकर भजन-कीर्तन करते हुए सत्ता के अन्तःपुर में पैठ बनाने के लिए मरे जा रहे पत्रकारों के हर दौर में रवीश कुमार जैसों का होना ज़रूरी है.
सत्ताधीशों से सेटिंग-गेटिंग के लिए ट्रोल में तब्दील होने वाले पत्रकारों के दौर में ऐसे पत्रकार भी ज़रूरी हैं. हां, हिन्दू -मुसलमान वाली पत्रकारिता को लेकर वो हमेशा मुखर रहा है. आप उसके कहे से असहमत होने और गाली देकर खारिज करने से पहले कुछ शाम तो गुजारिए चैनलों के सामने.
आज Ravish Kumar को बधाई देने का दिन है .. और उसकी तारीफ में कुछ लिखकर मेरे लिए गाली खाने का भी दिन है .. तो स्वागत है आपका .. और हां, रवीश आज जहां हैं ,वहां कतई नहीं होते अगर उन्हें प्रणय रॉय और NDTV न मिला होता ..कहीं फेंक दिए गए होते या कुछ और हो गए होते ..तो बड़ा योगदान उनका भी है …
Yusuf Kirmani : आज हिंदी पत्रकारिता की साख बचाने में योगदान करने वाले शख़्स को बधाई देने का दिन है। चूँकि टीवी एंकरों के चेहरे से ही अब पत्रकारिता ख़ासकर टीवी पत्रकारिता के मानक तय होने लगे हैं तो उन अर्थों में रवीश कुमार अकेला है।
हालाँकि तमाम छोटे छोटे शहरों और क़स्बों में ऐसे जीवट वाले पत्रकारों की कमी नहीं है लेकिन उनकी गिनती नक्कारखाने के तूती वाली है। …लेकिन टीवी पत्रकारिता में सिर्फ और सिर्फ रवीश हैं जिसने हिंदी पत्रकारिता को तमाम दबावों के बावजूद ज़िंदा रखा हुआ है।
रवीश को आज फ़िलीपींस की राजधानी मनीला में रामन मैगसॉयसॉय पुरस्कार दिया जा रहा है। इसलिए दोस्त रवीश को फिर से बधाई। उम्मीद है कि आगे भी वे अपनी उस लकीर को नहीं छोड़ेंगे जिसके ज़रिए उन्होंने तमाम दरबारी पत्रकारों, चीख़ने चिल्लाने वाले दलाल पत्रकारों, नोट में चिप तलाशने वाले, नाले में गैस तलाशने वाले कमजर्फ पत्रकारों को पीछे छोड़ दिया है। आज बाज़ार में उनकी कोई साख नहीं है।
Shesh Narain Singh : रवीश कुमार अब एक कल्ट फिगर हैं। दिल्ली में मैं ऐसे सैकड़ों लोगों से मिलता रहता हूं जो मुझे विस्तार से बताते हैं कि उनकी योग्यता के सामने रवीश कुमार की कोई औक़ात नहीं है। उनकी बात पर अविश्वास करके उनका दिल दुखाना ठीक नहीं है।लेकिन रवीश कुमार अब इस माया-मोह से पार पंहुच गए हैं।
लेकिन NDTV हिंदी में आज के 20 साल पहले काम करके रोटी कमाने वालों का एक खेमा भी है जो रवीश कुमार के हर सम्मान को अपना मानता है। मैं इस बात को तसदीक करता हूं।
रवीश को मैं बधाई देता हूं। मुझे भरोसा है कि मनीष (पटना), मनहर, असद, वर्तिका, प्रितपाल, नदीम, हितेंद्र, उदय, देवेश, पंकज, दारैन, विजय, बाबा भी बहुत खुश हैं क्योंकि उनका अपना हमसफर दुनिया भर में इज़्ज़त पा रहा है। जब हम NDTV हिंदी डेस्क पर काम करते थे तो यह सभी लोग नौजवान थे और हम उनके बुढ़ऊ थे। शायद इसीलिए यह सभी लोग आज भी मुझे इज़्ज़त की नज़र से देखते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ किरमानी और शेष नारायण सिंह की एफबी वॉल से.
रवीश का पूरा संबोधन सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें-