ग़ज़ब का देश है चीन! यह दुनिया का सबसे अजूबा देश है। इसकी किसी से यारी नहीं। यह जो कुछ पाता है, सब उदरस्थ कर लेना चाहता है। कुत्ता, बिल्ली, सांप, छंछूदर, चूहा, चमगादड़ जो भी दिखता है, उसे वह खा जाता है। उसकी आंखें जो देख पाती हैं, नासिका जो सूंघ सकती है, कान जो सुन लेते हैं, जीभ उन सबके लिए लपलपाने लगती है। पारंपरिक आहार में उसका यकीन नहीं है। आश्चर्य है, इस ससुरे को कभी मंदाग्नि नहीं होती !!
वह तिब्बत को खा गया, दलाई लामा अपनी जान बचाकर भागे। लंबे समय से वे भारत की शरण में हैं। भारत के हज़ारों वर्ग किलोमीटर पर उसका ड्रैगन कुंडली मारे बैठा है। देर-सबेर वह ताइवान को खा ही जाएगा। पाकिस्तान को तो वह समूल निगल जाने की योजना भी बना चुका है।
प्रेस और लोकतंत्र उसकी अंतड़ी में न जाने कबसे फंसे हैं। जब वह यूएन की सभाओं में बैठता है, तो वीटो को ही चड़चड़ाकर खाने लगता है
मुझे नहीं पता चीन में बौद्ध और ईसाई कैसे रहते हैं, और अन्य धर्मावलंबी किस भांति जीवन बसर करते हैं ? लेकिन जिन मुसलमानों से दुनिया थर्राती है, उनकी सारी पहचान चीन खा गया। टोपी खा गया, बुर्का खा गया, मस्जिद और मदरसा भी खा गया। दशकों पहले वह छात्र आंदोलनों को खा गया था। वहां शैक्षणिक परिसरों में लोकतंत्र के बिरवान अंगड़ाई नहीं लेते।
वह भारत का आधा बज़ार खा गया। कुम्हार का चाक खा गया। दियली फोड़कर दीपावली का घी-तेल पी गया। जुलाहे का चादर खा गया और पुरोहित को रेशमी यज्ञोपवीत पहना गया।
चीनियों को हवा-पानी, अन्न-जल नहीं रूचता। उनका ड्रैगन पर्वत, पठार, रेगिस्तान और समंदर भी खा जाता है। इतने एपेटाइज़र से उसकी बुभुक्षा और बढ़ जाती है। तब वह मुँह बाये और बहुत कुछ खाने के लिए सबको डराने लगता है। किसी ज्वालामुखी की तरह उसका फन भयानक आग उगलने लगता है।
वह कम्युनिज़्म को खा गया, फिर अपनी पीठ भारत की तरफ करके लीद का बदबूदार ढ़ेर छोड़ दिया। हिन्दुस्तानी प्रगतिशील पूरी घ्राणशक्ति लगाकर, उससे अपना फेफड़ा और कलेजा तर करते हैं। उसके सीरम से नास्तिकता का अवलेह तैयार होता है।
हम पिछड़े ज़्यादा भले हैं ! हम पत्थर पूजते हैं। सांप और कुत्ते को शिव और भैरव का रूप समझकर मान देते हैं। बैल, गाय, गदहा, हाथी, भैंसा, सूअर, उल्लू, कौवा, गिद्ध सबमें ईश्वर की स्थापना करके उसका संरक्षण करने लगते हैं, और सबको उपास्य मान लेते हैं। पीपल, तुलसी, नीम, दूब, कुशा, बरगद और आम जैसे तमाम वृक्षों व पादपों को अपने अनुष्ठान और दिनचर्या का अंग बना लेते हैं। मछली और मगरमच्छ को देवतुल्य समझ लेते हैं। पहली रोटी गाय को खिलाकर हाथ जोड़ लेते हैं। लेकिन फिर भी हम आज भयभीत हैं, क्योंकि हमारा पड़ोसी खुद के लगाए दावानल में जल रहा है।
इतना कुछ खा लेने के बाद आजकल वह अपने को स्वयं खा रहा है। इस आपदा की घड़ी में दुनिया उससे किनारा कर रही है। अपने सुरक्षित ठिकानों में बैठकर लोग उसके प्रति संवेदना दिखाने के बजाय फूहड़ और अश्लील चुटकुले बना रहे हैं। हवाईअड्डों पर कर्मचारी मास्क पहने ठहाका लगा रहे हैं। पता नहीं अपना सर्वनाश करते-करते वह कितनी तबाही मचाएगा….!!!!
युवा पत्रकार अंबुज पांडेय की एफबी वॉल से.
Jitendra kumar Arya
May 25, 2020 at 9:38 am
मुझे आयुर्वेद ओषधि से चिकित्सा पद्धति मानी जाती है