इस आडियो में पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक जिले के दो ग्रामीण संवाददाताओं के बीच की आपसी बातचीत है. ये एक दूसरे को बता-समझा रहे हैं कि कैसे उन्हें सौ सौ रुपए मिलते हैं, प्रति पेड़ कटने पर.
सुनिए बातचीत और कल्पना कीजिए कि ये पूरी व्यवस्था, जिसमें न्यायपालिका कार्यपालिका समेत सभी चारों खंभे शामिल है, कितनी भ्रष्ट हो चुकी है.
आडियो में बातचीत दो गरीब व सबसे निचले पाए के छोटे पत्रकार कर रहे हैं. पर आप अंदाजा लगाइए कि वो लोग जो पेड़ कटवा रहे हैं, कितने बड़े लोग होंगे. वन विभाग, अफसर, वन माफिया, मंत्री से लेकर थाना-पुलिस… पूरा सिस्टम एक-एक पेड़ काटकर बेचने बांटने में लगा हुआ है.
आप धरती, पेड़, हरियाली बचाने के नारे लगाते रहिए… जिनके हाथों में असल में धरती पेड़ हरियाली बचाने का भार है, वे एक एक कर सब मार काट बेच खाएंगे.
इस आडियो में आज अखबार के संवाददाता ने कबूल किया है कि हरे पेड़ की कटाई के एवज में प्रति पेड़ वह सौ रुपये लेता है. उसके मुताबिक यह पैसा दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला के संवाददाताओं के बीच बराबरी से बंटता है.
आज अखबार के संवाददाता ने सवाल-जवाब कर रहे लकड़ी कारोबारी को बताया कि उसका अखबार छोटा है, लेकिन बड़े अखबार के संवाददाताओं के लिए वह एरिया का मैनेजमेंट देखता है. मैनेजमेंट से उसका आशय है अवैध वसूली से.
वायरल क्लिप में एक लकड़ी कारोबारी से अपने आप को आज हिंदी दैनिक समाचार पत्र का पत्रकार बताने वाले संवाददाता ने पेड़ की कटाई का अवैध वसूली करना खुद अपने मुंह से स्वीकार किया है. उसने अपने साथ अपने अन्य साथियों के संलिप्त होने का दावा भी किया है. उसने बताया कि 100 रुपये की वसूली में कई पत्रकार शामिल हैं. खुद के बारे में सीना चौड़ाकर दो चौकी क्षेत्रों का मालिक बताया वहीं अन्य साथियों का भी वसूली क्षेत्र निर्धारित होने की बात भी कह डाली.
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