भारत में न्यूज चैनलों से चमके और बड़े हुए पत्रकारों की एक पीढ़ी अब बुजुर्ग होने लगी है. जाहिर है, एक वक्त के बाद किसी न किसी कारण उन्हें मुख्यधारा के न्यूज चैनलों से बाहर आना ही था. ये अलग बात है कि कइयों को सत्ता-सिस्टम के कोप के कारण न्यूज चैनलों से मुक्त होना पड़ा. सत्ता-सिस्टम से सवाल पूछने और सत्ता-सिस्टम के प्रति आलोचक होने के पत्रकारीय कायदे को जीने के कारण पैदल होना पड़ा. पर इन लोगों ने अपना तेवर न छोड़ा. ये लोग निराशा में न डूबे. ये लोग मौन होकर घर न बैठ गए. इन लोगों ने अपने पत्रकारीय तेवर को जिंदा रखते हुए बहुचर्चित सोशल मीडिया मंचों को अपना ठिकाना बनाया और सत्ता से सवाल पूछने का सिलसिला जारी रखा.
पुण्य प्रसून बाजपेयी के बाद अब अजीत अंजुम ने भी यूट्यूब पर ठिकाना बना लिया है. सम-सामयिक मुद्दों पर अजीत अंजुम बेबाक बोलने के लिए जाने जाते हैं. पूरे देश में उनकी फैन फालोइंग है. लोग उन्हें सवाल खड़ा करने वाले तेवरदार पत्रकार के रूप में जानते हैं. हाल में ही शुरू किए गए यूट्यूब चैनल पर अजीत अंजुम के जो वीडियो मौजूद हैं, वे देखने लायक हैं. मुख्यधारा के न्यूज चैनल सत्ता के घोषित-अघोषित दबावों-प्रलोभनों के चलते जिन सवालों को उठाने से बच रहे हैं, उन्हें अजीत अंजुम ने बेबाकी से उठाया है.
फेसबुक पर अजीत अंजुम ने अपना यूट्यूब चैनल शुरू करने के पीछे की कहानी विस्तार से बताई है. इसमें उन्होंने ‘क्या कहेंगे लोग’ के रोग का जिक्र करते हुए लिखा है कि कुछ लोग कहने लगे हैं कि देखो इनका क्या हाल हो गया कि अब यूट्यूब पर आना पड़ा. अजीत ने ऐसा कहने वालों को करारा जवाब दिया है. पढ़िए उनकी फेसबुक पोस्ट और फिर उनके यूट्यूब चैनल का सब्सक्राइब कर लीजिए ताकि खबरों की भीड़ में आपको सच्ची खबरें जानने-समझने का मौका मिल सके.
-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया
Ajit Anjum : दोस्तों के नाम ….. लॉकडाउन में जब सब कुछ ठहर गया तो अचानक मैं यूट्यूब के रास्ते पर चल पड़ा. शुरुआत पैदल जा रहे मजदूरों के वीडियो बनाने से हुई और यूट्यूब पर आ गया. पता है कि कठिन, लंबा और संघर्ष वाला रास्ता है लेकिन सुकून है अपने मन का रास्ता है. जब अपने मन लायक कुछ और होगा तो कुछ और करेंगे, फिलहाल डिजीटल रास्ते पर. किसी ने कहा ये देखो इनका क्या हाल हो गया कि अब यूट्यूब पर आना पड़ा. तो ये जवाब उन सबके लिए भी है.
बहुत दिनों से सोच रहा था कि क्या लेकर हम दिल्ली आए थे? एक छोटा सा ब्रीफकेस, कुछ कपड़े, मां-बाबूजी से मिले कुछ पैसे, उनके सपनों का बोझ और बेशुमार हौसला. मेहनत करते रहे. लड़ते-गिरते-उठते एक जगह बना ली और बहुत कुछ पा लिया, जो सोचा नहीं था. बीते कुछ सालों से मन बेचैन था. दो बार लाखों की नौकरी छोड़ दी. दोनों बार नौकरी छोड़ने से सुकून ही मिला. अब भी सुकून में हूं कि वो सब नहीं करना पड़ रहा है, जो लोग कर रहे हैं. मुझे भी या तो यही सब करना पड़ता, या छोड़ना पड़ता. तो इस लिहाज से एक तरफा हो चुके इस मायावी सिस्टम से मेरा निकलना तो तय था. बीच-बीच में कुछ लखटकिया विकल्प आए लेकिन वहां भी फंसने का खतरा था.
मैं किसी ऐसे प्लेटफार्म के लिए काम नहीं करना चाहता, जहां मन के विपरीत काम करना पड़े. भीतर की आवाजें ही सुनता हूं अब. वही सुनना भी चाहता हूं. कल को बेहतर कुछ दिखेगा तो मन के पैमाने पर जांच -परखकर सोचूंगा कि क्या करना है. फिलहाल तो यही सही.
तो मैं अपने को तीस साल पीछे ले जाने को तैयार हूं. हमेशा लगता है कि नए सिरे से सब कुछ शुरु करुं. वैसे ही जैसे, 23-24 साल की उम्र में रिपोर्टिंग किया करता था. वैसे ही जैसे, खबरों के लिए दिन रात भटका करता था. वैसे ही, जैसे किसी सत्ता या सिस्टम के खिलाफ लिखने -बोलने में रत्ती भर भी परहेज नहीं करता था. उसी उर्जा और उसी हौसले के साथ. पच्चीस साल तक संपादक रहकर सैकड़ों लोगों की टीम को हेड किया. बनाया, जमाया, सिखाया, संवारा. पचासों लोगों को लाखों की नौकरी दी. सैकड़ों को रास्ता दिखाया. आज अपने माजी में झांकता हूं तो लगता है ये सब पाने या मिलने की उम्मीद लिए मैं दिल्ली आया था क्या? नहीं आया था. तो मुझे क्यों इन चीजों के बारे में सोचना चाहिए? यकीन मानिए कभी नहीं सोचता. जो छोड़ दिया, वो छोड़ दिया. ये भी सुकून है कि खुद छोड़ा. छह या सात बार नौकरियां छोड़ी. हर बार खुद छोड़ी.
हर बार अचानक इस्तीफा देकर निकला. रोकने की कोशिशें लगातार हुई लेकिन मैंने खुद तय किया और निकल गया. पलटकर नहीं देखा. अशुभचिंतक जमात जो भी अफवाह फैलाए, हकीकत मेरे पास दर्ज है. मय सबूत. मैं संपादक के ओहदे वाले अहसास से सालों पहले मुक्त हो चुका था. अब तो बहुत आगे निकल चुका हूं, सो मेरे कुछ ‘चाहने वाले’ मेरी चिंता में परेशान न हों. जो उनके पास आज है, वो अगर पाना और रखना चाहता तो टिका रहता वही सब करके, जो वो आज कर रहे हैं.
अब बात उस अतीत पर करने की बजाय भविष्य पर केन्द्रित रखना चाहता हूं. एक माइलस्टोन के बाद दूसरा माइलस्टोन शुरु होता. पीछे जो छूट जाता है, वो अतीत होता है. आगे जो दिखता है, वो भविष्य होता है. मैं भविष्य के गर्भ का कैदी कभी नहीं रहा.
आज हैरान होता हूं कि जिन्होंने जीवन में कभी दो अखबार भी कायदे से नहीं पढ़ा, दो -चार किताबें नहीं पढ़ी, कायदे का दो-चार लेख नहीं लिखा, जिनकी कॉपी ठीक कर करके उन्हें काम लायक बनाया, जिन्हें टीवी कैमरों के सामने बोलना सिखाया, जिनके सामने से स्पीड ब्रेकर हटाकर हिचकोलों से बचाया, जिन्हें रफ्तार के रास्ते पर आगे बढ़ाया, जो जानते हैं कि किसी भी सत्ता की चाटूकारिता मेरी फितरत कभी नहीं रही, और जिन्हें मैं कुछ सालों से पादूका पूजन करते और कई तरह के प्रसाद के लिए लालालित होते देख रहा हूं, वो भी मुझे पत्रकारिता सिखाने आ जाते हैं .
ये सब 2014 के बाद के कायांतरण का नतीजा है. उन सबको उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं. मैं ऐसा ही 2014 के पहले था. ऐसा ही 2024 या 2029 के बाद भी रहूंगा.
अगर मेरे लिखे में कहीं आपको आत्ममुग्धता या अहंकार दिखे तो माफी चाहूंगा. इतना तो लिखना बनता है न, जब कोई भी आकर कुछ भी कह देता है तो मुझे भी तो कुछ कहने का हक है न?
उन सबका शुक्रिया, जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान अचानक शुरू हुए मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइव किया.
जो लोग चैनल सब्सक्राइब नहीं कर पाए हैं, वे नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें-
अजीत अंजुम के यूट्यूब चैनल पर अपलोड हाल-फिलहाल के कुछ वीडियोज देखें-
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Dr Vineet kumar
April 19, 2020 at 3:02 pm
Sir
It Yr confidence that u left the job. Same things happen with me. Now what ever u r doing that giving u emmence satisfaction. You provide awareness among socity and country as a whole.
Regards
Vineet
sarokarngo
September 12, 2021 at 10:39 pm
this Story is amazing of Azit Anjum. He deserve more but it the time of Godi Media so Fare Reporters are Not allowed me media houses. If you are asking question to Government you are supposed to get lost from the job.