-संत समीर-
जब से ख़बर सुनी है, सकते में हूँ। कुछ देर तक हिम्मत ही नहीं पड़ी कि कुछ लिखूँ। इसे कोरोना से हुई मौत नहीं, इलाज के ज़रिये किया गया ‘मर्डर’ कहना चाहिए। हत्या। जिन सज्जन के लिए कुछ दिनों पहले मैंने प्लाज्मा दान की अपील की थी, आज सवेरे पता चला कि अब वे इस दुनिया में नहीं रहे। कादम्बिनी का सम्पादन सँभाल रहे राजीव कटारा जी की मैं बात कर रहा हूँ।
बीते 28 अगस्त तक हमने साथ काम किया। इस्तीफ़े की घटना के बाद सम्पर्क कम हो गया था। क़रीब डेढ़ हफ़्ते पहले मुझे उनके कोरोना ग्रस्त होने की सूचना तब मिली, जब वे आईसीयू में भर्ती हो चुके थे। अस्पताल वालों की तरफ़ से मिलने की इजाज़त थी नहीं तो चाहकर भी हमारे जैसे लोग कुछ नहीं कर सकते थे। उनके घरवालों से ज़्यादा सम्बन्ध था नहीं तो किसी तरह का ज़ोर-दबाव भी नहीं डाल सकते थे। प्लाज्मा देने की बात पता चली तो फेसबुक पर अपील कर दिया। प्लाज्मा चढ़ाया गया, पर बात नहीं बनी।
कटारा जी को दस-ग्यारह साल से मैं देखता रहा हूँ। शायद ही कभी बीमार पड़े होंगे। एकदम स्वस्थ। न मोटे न दुबले। इतना बढ़िया स्वास्थ्य कम ही लोगों को मिलता है। इम्युनिटी कमज़ोर होने का तो सवाल ही नहीं उठता। जो लोग कहते हैं कि कोरोना में सही समय पर अस्पताल पहुँच जाएँ, तो ख़तरा समाप्त हो जाता है, उन्हें शायद नहीं पता कि ज़्यादातर लोग सही समय से भी पहले अस्पताल पहुँच रहे हैं, पर आईसीयू तक पहुँचा दिए जा रहे हैं।
कटारा जी को जैसे ही सीने में जकड़न महसूस हुई, वैसे ही उनकी जाँच हुई और एक बड़े अस्पताल में भर्ती हो गए। इससे ज़्यादा सही समय पर अस्पताल जाना और कैसे हो सकता है? कटारा जी के बेटे ख़ुद डॉक्टर हैं तो लापरवाही की कोई बात भी नहीं मानी जा सकती।
आईसीयू की बात सुनते ही ख़तरे का अन्दाज़ा हो गया था, क्योंकि इतने मज़बूत शरीर का व्यक्ति इलाज कराते-कराते आईसीयू तक पहुँच जाए तो इसका साफ़ मतलब है कि उसके शरीर में बहुत कुछ ‘डैमेज’ हो चुका है। बाद में वे वेण्टिलेटर पर डाल दिए गए थे। दो-तीन दिन से मैं कोशिश में था कि किसी तरह सम्पर्क हो और उन्हें होम्योपैथी की भी कुछ ख़ुराकें दी जाएँ, शायद कोई चमत्कार हो जाए, पर किसी और पैथी से कोई इलाज पहुँचा पाना सम्भव न हो सका। हम सिर्फ़ प्रार्थना भर कर सकते थे।
बेहद दुःखद। श्रद्धाञ्जलि देने के अलावा हमारे हाथ में और कुछ भी नहीं है।