केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा में पूरे दस साल तक ठेके की नौकरी करते हुए हिंदी के युवा कवि प्रकाश साव ने कर ली खुदकशी. अपने टीटीगढ़ स्थित घर में रात को उसने नींद की गोलियां खा ली और सुबह फिर नींद से उठा ही नहीं. अबकी दफा उससे हमारी बात भी नहीं हुई. हाल में पिछली दफा जब वह कोलकाता आया तो उसने फोन किया था. अब उससे फिर मुलाकात की कोई संभावना नहीं है.
पिछली दफा मैंने मिलने को कहा था. हमें तब भी हमें मालूम नहीं था कि किस पीड़ा और किस अवसाद से वह पल छिन पल छिन जूझ रहा है. वह नब्वे के दशक में करीब पांच छह साल जनसत्ता में संपादकीय सहयोगी रहा है और तब से उसकी कविताओं का सिलसिला जारी है. जनसत्ता छोड़कर वह गुवाहाटी में पूर्वांचल प्रहरी में गया और डां.शंभूनाथ के कार्यकाल में वह केंद्रीय हिंदी संस्थान का हो गया. वह वहां 2006 से लगातार काम कर रहा था.
इस बीच उसने न सिर्फ उच्च शिक्षा हासिल कर ली बल्कि हिंदी के मशहूर कवि अशोक वाजपेयी की कविता पर पीएचडी कर ली. लेकिन वह ठेका मजदूर ही बना रहा. गौरतलब है कि संस्थान की शोध पत्रिका के लेखन संपादन में उसकी भूमिका थी बेहद सक्रिय लेकिन उसे इसकी न मान्यता मिली और न उसकी नौकरी पक्की हुई. केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के उच्चतर विभाग द्वारा 1960 ई. में स्थापित स्वायत्त संगठन केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल द्वारा संचालित शिक्षण संस्था है. संस्थान मुख्यतः हिंदी के अखिल भारतीय शिक्षण-प्रशिक्षण, अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय प्रचार-प्रसार के लिए कार्य-योजनाओं का संचालन करता है.
संस्थान का मुख्यालय आगरा में स्थित है. इसके आठ केंद्र दिल्ली (स्था. 1970), हैदराबाद (स्था. 1976), गुवाहाटी (स्था. 1978), शिलांग (स्था. 1987), मैसूर (स्था. 1988), दीमापुर (स्था. 2003), भुवनेश्वर (स्था. 2003) तथा अहमदाबाद (स्था. 2006) में सक्रिय हैं.
प्रकाश का हमारे मित्र शैलेंद्र से लगातार संपर्क रहा है लेकिन वह अपनी कविताओं और समकालीन कविताओं के अलावा किसी और मुद्दों के बारे में बात ही न करता था कि हम लोग जान पाते कि सोलह मई के बाद सत्ता बदलने के बाद ऐसा क्या हो गया कि हिंदी के युवा कवि जिसे साहित्य अकादमी के युवा पुरस्कार के लिए पिछले दिनों नामित भी किया गया था, अचानक उसने खुदकशी कर ली. इसी बीच उसने विवाह भी कर लिया और अब उसकी दो तीन साल की एक बेटी है. उसके लगातार संघर्ष और संघर्ष के जरिये आगे का रास्ता बनाने, अधूरी पढ़ाई संघर्ष करते हुए पूरी करने और हिंदी संस्थान में लगातार अच्छा काम करने तक की इस यात्रा के हम लोग अंतरंग साक्षी रहे हैं.
जाहिर है कि घुटन किसी अकेले रोहित को नहीं होती. समूची जमात इस घुटन और जीवन यंत्रणा का शिकार है. प्रकाश दरअसल प्रकाश साव था और उसकी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा हिंदी का मूर्धन्य कवि बनने की थी. इसके लिए उसने पहसे साव नाम हटाकर प्रकाश पत्र नाम से धड़धड़ लिखा. अपने एकमात्र कविता संग्रह ‘न होने की सुगंध’ का शीर्षक इस जन्मजात दलित बेहतरीन कवि ने मरकर सत्य कर दिया और हिंदी आलोचना का ग्रंथ का शीर्षक है ‘कविता का अशोक पर्व’, जो अब शोक पर्व में तब्दील है. प्रकाश को 2000 में हिंदी कविता के लिए नागार्जुन पुरस्कार मिला तो 2012 में प्रकाश को भारतीय भाषा का युवा पुरस्कार मिला. उत्तर प्रदेश सरकार का अक्षय पुरस्कार भी उसे मिला. प्रकाश के मां बाप कोलकाता के नजदीक टीटागढ़ में रहते हैं. उन्हें और उसकी लगभग नई नवेली पत्नी और अबोध बच्ची के लिए सांत्वना के शब्द खोजे नहीं मिल रहे हैं.
इसे अब क्या कहा जाये कि जिस हिंदी संस्थान में 2006 से 2016 तक नौकरी स्थाई न होने की वजह से पीएचडी किये हिंदी के एक होनहार कवि ने खुदकशी कर ली, उस हिंदी संस्थान का विजन 2021 भी है. आखिर ऐसे विजन के क्या मायने जो खुद के भीतर के अंधकार को देख तक नहीं पा रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार पलाश विश्वास की रिपोर्ट.