Sanjaya Kumar Singh : एक पत्रकार मित्र का कहना है कि प्रधानमंत्री बनने के दो साल बाद नरेन्द्र मोदी की मां मदर्स डे पर दिल्ली आईं। इसमें भी लोग राजनीति देख रहे हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे लोगों को। पर वे बता रहे थे कि जैसे आईं वैसे ही चली जातीं तो किसी को पता ही नहीं चलता। इसलिए बताना पड़ा कि आई थीं और चली गईं। क्यों? मैं नहीं जानता। अब संयोग से यह सूचना तमिलनाडु में मतदान से पहले वाले दिन आई ताकि मतदान वाले दिन अखबारों में छपे।
लोगों को मां की सेवा याद रहे। यह मकसद तो नहीं ही रहा होगा। पर ऐसा हुआ। पत्रकार भाई लोगों ने ही छापा है। पर अब पेट में दर्द हो रहा है। इसके साथ तर्क यह कि दक्षिण के लोग बूढ़ी मां की सेवा के मामले में बहुत भावुक होते हैं और जब पूरा हिंदुस्तान खिलाफ था तब भी तमिल इंदिरा मां के पक्ष में थे। निश्चित रूप से मोदी जी की माँ का उनके साथ रहना, आना-जाना मोदी जी का पर्सनल मामला है। जैसे कि हर किसी की माँ का होता है। पर राजनीति में संयोग पर्सनल नहीं होता है। संयोग के मायने निकाले जाते रहे हैं। क्या किया जाए। खबर नहीं है पर बोले-लिखे बिना रहा भी नहीं जाता है पत्रकारों से।
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जनप्रतिनिधि के नाले में गिरने का अफसोस है। ईश्वर उन्हें शीघ्र स्वस्थ करे। दीर्घायु बनाए। लेकिन मुद्दा यह है कि ऐसा पिछड़े बिहार और जंगलराज वाले इलाकों में क्यों नहीं होता है। इसमें किसका हाथ है। दोषी कौन है? जिम्मेदारी किसकी है। क्या देश इस बारे में कुछ जानना चाहता है? शुरुआती सूचना के मुताबिक पूनम बेन नाले पर बने सीमेंट-कंक्रीट के अस्थायी पुल या ढक्कन पर खड़ीं थीं। जो टूट गया। यह भ्रष्टाचार का मामला है या ईश्वर की इच्छा या आरक्षण से बने इंजीनियर का कमाल? देश के अन्य हिस्सों में होने वाली दुर्घटनाओं पर तरह-तरह के विचार और ज्ञान देने वाले भक्त जानना चाहेंगे कि माजरा क्या है? पता चले तो मुझे भी जानना है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से.