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आज समाज कर्मियों को महीनों से वेतन नहीं लेकिन अपना वेतन लेकर रविन ठुकराल कनाडा फुर्र

चंडीगढ़। आज समाज अखबार में सेलरी के लाले पड़े हैं। 30 अगस्त को अंबाला में रविन ठुकराल ने बैठक कर सिगरेट के कस फुकते हुए सभी ब्यूरो चीफ को आश्वासन दिया था कि प्रति माह दस तारिख से पहले पहले सेलरी सभी के अकाउंट में आ जाएगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रबंधन से जुड़े लोगों की मानें तो रविन अपनी सेलरी लेकर कनाड़ा रफू-चक्कर हो गए जबकि फील्ड में धक्के खाने वाले लोग सेलरी के इंतजार में हैं। बैठक में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले रविन अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि मार्केटिंग वालों की सेलरी तो तीन माह से अटकी है।

<p>चंडीगढ़। आज समाज अखबार में सेलरी के लाले पड़े हैं। 30 अगस्त को अंबाला में रविन ठुकराल ने बैठक कर सिगरेट के कस फुकते हुए सभी ब्यूरो चीफ को आश्वासन दिया था कि प्रति माह दस तारिख से पहले पहले सेलरी सभी के अकाउंट में आ जाएगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रबंधन से जुड़े लोगों की मानें तो रविन अपनी सेलरी लेकर कनाड़ा रफू-चक्कर हो गए जबकि फील्ड में धक्के खाने वाले लोग सेलरी के इंतजार में हैं। बैठक में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले रविन अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि मार्केटिंग वालों की सेलरी तो तीन माह से अटकी है।</p>

चंडीगढ़। आज समाज अखबार में सेलरी के लाले पड़े हैं। 30 अगस्त को अंबाला में रविन ठुकराल ने बैठक कर सिगरेट के कस फुकते हुए सभी ब्यूरो चीफ को आश्वासन दिया था कि प्रति माह दस तारिख से पहले पहले सेलरी सभी के अकाउंट में आ जाएगी। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रबंधन से जुड़े लोगों की मानें तो रविन अपनी सेलरी लेकर कनाड़ा रफू-चक्कर हो गए जबकि फील्ड में धक्के खाने वाले लोग सेलरी के इंतजार में हैं। बैठक में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले रविन अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि मार्केटिंग वालों की सेलरी तो तीन माह से अटकी है।

अखबार से जुड़े लोगों का कहना है कि लगातार गिरते सर्कुलेशन से भी प्रबंधन परेशान हैं। हालत यह हो गई है कि कर्इ जिलों में तो अखबार दहाई के आंकड़े पर आ गया है। जब से दो जिले एक साथ किए हैं तब से अखबार का सत्यानाश हो गया है। वहीं अखबार यह भी प्लानिंग कर रहा है कि विधानसभा चुनावों में सभी ब्यूरो चीफ को जिम्मेवारी सौंपी जाए कि वे जन चेतना पार्टी के लिए मिडिया का कार्य करेंगे। लेकिन यह भी भय बना है कि कहीं कोई इसकी खिलाफत न कर दे जिससे बाद में फजिहत का सामना करना पड़े।

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एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

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