Pravin Dubey-
अभी संजीव शर्मा सर की पोस्ट से पता चला कि आज (31-10-2023) आकाशवाणी भोपाल का स्थापना दिवस है आज ही के दिन 1956 को भोपाल आकाशवाणी केंद्र की शुरुआत हुई थी..मैं बहुत मन लगाकर भोपाल आकाशवाणी को सुनता हूँ..ऑफिस आते वक्त, वापस घर जाते वक्त या सफ़र के दौरान जहां तक फ्रिक्वेंसी मिलती है वहां तक मैं यही सुनता रहता हूँ…
जबलपुर जाते वक्त बाड़ी के बाद बल्कि बरेली तक तो साफ़ सुनाई देता है रेडिओ… खैर… केवल न्यूज़ के लिए नहीं बल्कि इसके कई प्रोग्राम मुझे बहुत अच्छे लगते हैं…ऐसे ऐसे गाने जो कहीं सुनने को नहीं मिलते वो सुनने मिल जाते हैं…इनका एक कार्यक्रम है सजीव फोन इन का…वो तो बहुत दिलचस्प होता है..मैंने कई बार सोचा कि इस कार्यक्रम के बारे में कुछ लिखूंगा लेकिन वक्त नहीं मिल पाया…
आज मौक़ा भी है और दस्तूर भी तो चेप देता हूँ… इस कार्यक्रम में श्रोता सीधे फोन करते हैं…अपनी फरमाइश बताते हैं और प्रस्तोता थोड़ी देर उनसे तादात्म्य बनाने वाले सवाल करता है क्यूंकि उस अवधि में उनके पसंद का गाना तलाश रहा होता है… “सरकाए ल्यो खटिया जाड़ा लगे” जैसी दोयम पसंद से लेकर “दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया” और “दिल हूम हूम करे..घबराए” जैसी स्तरीय पसंद तक के गाने यहाँ सुनने मिलते हैं…सबसे दिलचस्प होता है प्रस्तोता और श्रोता का संवाद… कुछ श्रोता बहुत अभिभूत होकर…फोन लग जाने की बहुत ख़ुशी झलकाते हुए बात करते हैं तो कुछ पुराने दौर की बारातों में जनवासे में बैठे मक्कार बारातियों की तरह बात करते हैं…उन्हें लगता है कि उन्हें आदर मिलना उनका वाजिब हक़ है… मसलन: वो फोन करेंगे..कनेक्ट होने के बाद अतिशय विनम्रता लहजे में रखकर प्रस्तोता कहेगा या कहेगी..
कौन बोल रहे हैं…?
वहां से गर्रहटी भरा जवाब आएगा एक शब्द का… “हम मुन्ना”
फिर प्रस्तोता लहजे में मिश्री घोलकर पूछेगी, “अरे वाह, मुन्ना जी कहाँ से बोल रहे हैं”
जवाब फिर उसी ठसक के साथ.. “पाटन से”
“अच्छा कौन सा गाना सुनेंगे आज आप” फिर वही मिठास के साथ प्रस्तोता…
“आप सुनाओ.. खलनायक का … नायक नहीं खलनायक हूँ” फिर वही ठसक…
“जी ज़रूर सुनवायेंगे आपकी पसंद का गाना… मुन्ना जी क्या करते हैं आप…इस समय तो त्योहारों का वक्त चल रहा है..आप बहुत व्यस्त रहते होंगे” फिर चाशनी में लपेट कर प्रस्तोता पूछता या पूछती है…
जबाव…. “कुछ नहीं औंधे पड़े रहते हैं घर में आप तो पंचायत न करो गाना सुनवाओ” तो कुलमिलाकर अच्छे बुरे दोनों तरह के श्रोताओं के साथ इतने धैर्य और विनम्रता के साथ आकाशवाणी के प्रस्तोता बात करते हैं कि मजा आ जाता है उनको सुनकर…. मैं अपनी गाडी में बहुत कम प्राइवेट FM चैनल सुनता हूँ क्यूंकि कानों को ठंडक तो सरकारी रेडिओ से ही मिलती है… बहुत अच्छे कार्यक्रम होते हैं इनके… दिन में भी कई कार्यक्रम मैं सफ़र के दौरान सुन लेता हूँ…सृष्टि…सखी सहेली टाइप के भी संजीव सर ने अच्छा लेख लिखा है आकाशवाणी भोपाल पर तो मुझे भी लगा कि बहुत दिनों से लिखने की जो इच्छा थी,वो आज लिख ही डाला जाए… शुभकामनायें आकाशवाणी….
ये आकाशवाणी है…अब आप फलां फलां से समाचार सुनिए ये लाइन तो बचपन से ही मन में बहुत गहरे बैठी हुई है क्यूंकि बाबूजी समाचार सुनते थे तो पूरे घर को लत लग गई थी… एक बात ज़रूर लिखना चाहता हूँ कि जो भी प्रस्तोता हैं यदि उनका उच्चारण ठीक नहीं है ख़ास तौर पर उर्दू का तो ये बेहद आपत्तिजनक है….एक दिन मैंने किसी मोहतरमा को सुना..वो कह रहीं थीं कि “गीत लिखा है कातिल सफाई ने” और आख़िर में जब उन्होंने विदा ली तो मुझे पता चला कि वे मोहतरमा मुस्लिम हैं…मुझे बेहद हैरानी हुई कि मुस्लिम प्रस्तोता और क़तील शिफ़ाई न बोल सके, तो हद ही है… ऐसी त्रुटियों पर ज़रूर ध्यान दिया जाना चाहिए…. जय हो…