Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

दिल्ली चुनाव : भाजपा लगातार गल्तियां कर रही, ‘आप’ को 37 से 42 सीट मिलने के आसार

Girijesh Vashistha : My prediction- Aap 37-42 , Bjp 17-22, cong 5-7, others 2-3. Credit goes to last moment wrong decisions of BJP central leadership. Errors….

1. Wrong entry of kiran bedi and others.
2. Late ticket distribution
3. Aap support base ( much more strong then RSS)
4. Discouraging Attitude of kiran bedi.
5. Dragging campaign due to useless last moment changes in leadership and pole policies.

Girijesh Vashistha : My prediction- Aap 37-42 , Bjp 17-22, cong 5-7, others 2-3. Credit goes to last moment wrong decisions of BJP central leadership. Errors….

1. Wrong entry of kiran bedi and others.
2. Late ticket distribution
3. Aap support base ( much more strong then RSS)
4. Discouraging Attitude of kiran bedi.
5. Dragging campaign due to useless last moment changes in leadership and pole policies.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Peri Maheshwer : If AK wasn’t strong: Kiran Bedi would not find space in BJP. Shazia Ilmi will never be welcome in BJP. it will be Modi, Modi and more of Modi. we will have a rag of a CM in Delhi. petrol prices wouldn’t have been reduced today. Delhi statehood will not be on Modi’s agenda. corruption will not be an issue in politics. politicians will seek votes on caste and religion. We will be left with the alternative being Congress. Think. Hasn’t Arvind Kejriwal already made an impact?

Shambhunath Shukla : कमाल हो गया! एक्स डीजीपी किरण बेदी 15 जनवरी को बीजेपी में आईं और 20 जनवरी को वे मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित हो गईँ। इस लिहाज़ से कल को कोई एक्स सीएम बीजेपी ज्वाइन कर ले तो फट से पीएम घोषित कर दिया जाएगा। अमित शाह की यह फुर्ती तो मोदीजी के लिए भारी पड़ जाएगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

Pankaj Singh : आदर्शवाद की आड़ में सबकी निगाहों से बच-बचकर फलने- फूलनेवाला अवसरवाद जब अपनी असली नीयत के साथ सामने आता है तो वह कितना घृणास्पद और वीभत्स दिखता है! (संदर्भ : शाजिया इल्मी तथा किरण बेदी की ‘ घर-वापसी’)

Deepak Sharma :  झुकती है दुनिया , झुकाने वाला चाहिए. चुनौती मुलायम और नितीश नही है …मोदी के लिए असली चुनौती केजरीवाल है. अराजक, नक्सल, बेख़ौफ़, बदमिजाज़. ताल ठोंकना, कुँए में कूदना , डंके की चोट पर भिड़ना और कहीं भी किसी भी वक़्त सामने वाले के कपडे उतार देना …ये कजरी बाबू की अदा नही कज़ा है. जो नेता क्रोनी कैपिटलिस्ट की गोद में बैठे है वो कजरी बाबू से वैसे ही घबराते है जैसे मुंबई के लम्पट बिल्डर छोटा शकील के फ़ोन से. क्या अजीब बात है कि जिसने पूरा देश जीता हो. जिसने लाल किला हर लिया हो. जिसने धरती पुत्र ओबामा से लेकर धवल ध्वजा धारी मोहन भागवत को जता दिया हो कि मोदी का मतलब क्या है …उसी चक्रवर्ती सम्राट को आज किरण बेदी के आगे झुकना पड़ा. मित्रों, बड़ी किरण बेदी नही हुई. बड़ा तो आज केजरीवाल हो गया. मोदी जानते है कि अगर कजरी दिल्ली “म्युनिसिपलटी” का मुख्य मंत्री बन गया तो उसे एक संवेधानिक ताकत मिल जाएगी. वो फिर से एक काडर खड़ा कर लेगा. वो फिर से अम्बानी और अदानी पर मुक़दमे ठोकेगा. वो नाक में दम कर देगा. और कहीं केजरीवाल ने पानी बिजली सस्ता करके दिल्ली दुरुस्त कर दी तो रायसीना के पहाड़ हिलने लगेंगे . शायद इसलिए अमित शाह किरण बेदी को लेकर मोदी के घर पहुंचे. शायद इसीलिए मोदी जी को मिसेज बेदी को हाथ जोड़कर प्रणाम करना पडा. ये पहली बार है जब प्रधानमंत्री मोदी किसी के आगे नतमस्तक हुए हैं. सुषमा, राजनाथ, गडकरी, जोशी और अडवानी के लिए अच्छी खबर. सात महीने में शाख झुकने लगी. अरे भाई शाख क्या, दुनिया भी झुकती है. झुकाने वाला चाहिए.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Satyendra Ps : अरविन्द केजरीवाल ने याद दिलाया तो मुझे याद आया, पता नहीं आपको याद हो या न हो। भाजपा ने 4 महीने पहले घोषणा की थी कि उसके 200 सांसद दिल्ली में प्रचार करेंगे। हवा निकल गई। फिर घोषणा की कि मंत्री प्रचार करेंगे, सिर्फ एक मंत्री अपने बयान से चर्चा में आईं, बकिया इनको भी सुनने पूछने वाला कोई नहीं आया। फिर नरेंद्र मोदी की मेगा रैली हुई। जैसा कि इन लोगों के प्रचार का तरीका होता है, 5 दिन पहले से खबरें आनी शुरू हो गईं कि ट्रैफिक किधर डायवर्ट किया जा रहा है, भीड़ कैसे मैनेज होगी। रैली के दिन हरियाणा और गाजियाबाद के कार्यकर्ताओ को जितनी भीड़ जुटाने का ठेका दिया गया उतनी ही भीड़ आई। किसी तरह कैमरों के क्लोज शॉट से आदमी दिखे, किसी। अखबार ने छापने लायक भीड़ की फोटो नहीं पाई। अब किरण बेदी, शाजिया इल्मी टाइप दगी क्या फुस्सकारतूस आजमा रहे हैं जिसमे से एक राजनीति में आने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थीं और एक हारती ही रहीं! दिल्ली की पब्लिक का रुख साफ़ ही नहीं हो रहा है!
 
Sanjaya Kumar Singh : अरविन्द केजरीवाल को चीजों को अपने पक्ष में करना आता है। कुछ दिन पहले मैंने लिखा था कि दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव के बाद ऐसा कुछ नहीं हुआ है जिससे आम आदमी पार्टी के नंबर कटें, बेहतर ही हुआ है। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी अपने लोकलुभावन वादे को कितना सच कर पाई है, और करने के रास्ते पर है, इसे लेकर उसके नंबर कम ही होंगे, बढ़ेंगे नहीं। इस लिहाज से कांटे की टक्कर है। बर्खा दत्त से बातचीत में अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि पिछले चुनाव में उनकी पार्टी नई थी, उसे लोग गंभीरता से नहीं ले रहे थे। वोटकटवा समझ रहे थे। पर चुनाव परिणामों के बाद अब हमें गंभीर माना जा रहा है, जीतने वाली पार्टी माना जा रहा है। जनता मान रही है कि हम जीत सकते हैं। रही सही कसर भाजपा अपना डर और घबराहट दिखा कर पूरा कर दे रही है। किरण बेदी भाजपा में शामिल हो चुकी हैं। अरविन्द केजरीवाल से मुकाबले के लिए उनका नाम काफी समय से चल रहा है। अब यह सच होता दीख रहा है। इंदिरा गांधी से मुकाबला कर नाम कमाने वाली किरण बेदी अरविन्द केजरीवाल से लड़ेंगी। इससे कद तो अरविन्द का ही बढ़ेगा। राहुल से लड़ाकर स्मृति ईरानी का कद बढ़ाया गया अब केजरीवाल से भिड़ाकर किरण बेदी का कद घटाया जा रहा है। देखते रहिए बीजेपी की राजनीति। मजा आने की पूरी गारंटी है। किरण बेदी और अरविन्द केजरीवाल में कोई मुकाबला नहीं है। एक ने नौकरी शुरू में ही छोड़ दी दूसरे ने लगभग पूरी की, तमाम लाभ प्राप्त किए। दोनों में उम्र का अंतर भी इतना ही है। एक संघर्ष के लिए ही जाना जाता है दूसरे ने संघर्ष कोई नहीं किया और जो सेवा की वह एक्जीक्यूटिव क्लास का टिकट लेकर इकनोमी में यात्रा करके। दिल्ली का पुलिस प्रमुख नहीं बनाए जाने पर इस्तीफा तो दे दिया पर खुद से कम कई लोगों को बिना नाक रगड़े राज्यपाल बनाए जाने के कई मामलों के बावजूद मुख्यमंत्री की अपेक्षाकृत छोटी कुर्सी के लिए पार्टी की सेवा करने को तैयार हो गईं। (शायद इसलिए कि मुख्यमंत्री ना भी बनें तो राज्यपाल जैसे पद की रेवड़ी सुरक्षित रहे)। इसके बावजूद किरण बेदी के भाजपा में शामिल होने के बाद से यह तुलनात्मक चार्ट व्हाट्स ऐप्प पर घूम रहा है।

क्या इसे बनाने और फॉर्वार्ड करने वालों को मालूम नहीं है कि किरण बेदी ने कमिशनर न बनाये जाने की वजह से समय पूर्व रिटायरमेंट ले ली थी और केजरीवाल ने समाजसेवा के लिए कमिशनर (आईआरएस की ही) नौकरी छोड़ दी थी। लोकपाल न बना तो केजरीवाल ने सीएम की कुर्सी छोड़ दी किरण बेदी को सीएम की कुर्सी दिखी तो लोकपाल की चिन्ता छोड़ दी। राजनीति इतनी आसान नहीं है। इससे जुड़ी राजनीति समझने के लिए पढ़िए – http://www.janadesh.in/InnerPage.aspx?Story_ID=6686

Advertisement. Scroll to continue reading.

Sheetal P Singh : कुछ तो हो रहा है, रजत शर्मा का चैनल भी केजरीवाल को ४२% पर मान रहा है और ABP news ने तो आज “आप” को बी जे पी से एक% से आगे मान लिया। Debate से भाग खड़ी हुईं मैडम. ABP न्यूज़ ने मुख्यमंत्री पद के दो घोषित प्रत्याशियों के बीच live debate का प्रस्ताव किया था। किरन बेदी ने यह कह कर टाला कि “डिबेट फ़्लोर आफ द हाउस पर होगी”! केजरीवाल ने न सिर्फ़ इसका स्वागत किया बल्कि दूसरे चैनलों या सारे चैनलों के सामने जंतर मंतर / रामलीला मैदान में खुले में जनता के सामने डेढ़ दो घंटे की खुली डिबेट प्रस्तावित की। बीजेपी में शामिल होने से कुछ दिन पहले से टेली मीडिया केजरीवाल के पूर्व सहयोगियों की ओर से स्वत: ढोल बजाने लगता है, “केजरीवाल की खोलेंगी पोल” …… पिछले साल भर बिन्नी पोल खोलते रहे, फिर आप के स्वयंभू संस्थापक सदस्य अश्विनी उपधिया पोल खोलते रहे, चौरसिया जी का चैनल, भाजपा और कांग्रेस के प्रवक्तागण पोल खोलते रहे अब कुछ नये पोल खोल विशेषज्ञ मोर्चे पर लाये गये हैं fairer sex की ओर से क्योंकि मर्द विशेषज्ञ कामयाब नहीं हो पाये थे, किसी भी सूरत में जनता को अपनी “आय” का हिसाब न देने वाली पार्टियों की ओर से खुलेआम चंदे से चल रही पार्टी के “पोलखोल” की प्रतीक्षा…. ७०००साल पुराने विमानशास्त्र की मौजूदगी से कम कौतूहलकारी नहीं है !

(”मोदी जी का यह ऐलान, सारा अखबार हमारा है” शीर्षक से उपरोक्त तस्वीर सोशल मीडिया पर खासा वायरल है और धन के बल पर दिल्ली चुनाव जीतने की भाजपा की मंशा का प्रतीक है)

Advertisement. Scroll to continue reading.

सिद्धार्थ विमल : तिहाड़ से सबसे ज्यादा फरारी भी तभी कटी जब ईमानदारी की ताई आईजी तिहाड़ थीं. दिल्ली महानगर में एक बार फिर गंजे की हेयर कटाई के साथ-साथ उसे कंघा बेच डालने की पूरी तैयारी है। यह केश कलाकारी ईमानदारी के ताऊ और ताई के जिम्मे है।  उधर, विकास के पापा ने स्वास्थ्य बजट में सालाना छः हज़ार करोड़ रूपये की कटौती कर यह निश्चित कर दिया है कि जन्म ले चुकी आबादी का ज़िन्दा रह पाना और दुष्कर होता जाएगा। जीने की ज़िद पर अड़े निर्धन अब अपना घर-ज़मीन सब बेचने को बाध्य होंगे। बच गए तो उन्हीं खरीददारों की चाकरी करेंगे। भयानक होते जाते अच्छे दिन। 

Vivek Kumar : मोदी जी ने कह दिया है कि पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे खराब. केंद्र सरकार ने शिक्षा के बजट में भारी कटौती कर दी है. 2014-15 के बजट में शिक्षा के लिये पहले 16900 करोड़ रुपये का प्रावधान था, जिसे घटकर 13000 करोड़ रुपये कर दिया गया है.  यानी करीब 3900 करोड़ रुपये की कटौती कर दी गई है. इस कटौती का सबसे ज्यादा असर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी आईआईटी पर पड़ेगा, जिन्हें इस साल अपने-अपने कैंपस में जाना था. 2014-15 में सरकार ने 16 नए आईआईटी संस्थानों के लिए 2500 करोड़ रुपये दिए थे जो अब 2337 करोड़ रुपये कर दिए गए हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Yashwant Singh : चुनाव तक दोस्त दोस्त ना रहा वाला गाना गाना चाहता हूं… चुनाव के दिनों में राजनीति पक्षधरता के मामले में मैं किसी तरह का कोई समझौता नहीं कर सकता. देश को मोदी के आगे की सोचने की जरूरत है. जनता ने देश को मोदी के हवाले कर दिया. अभी तक सिवाय बकलोली के कुछ किया नहीं इस उल्लू के पट्ठे ने. अगर इसी समय से मोदी के आगे की राजनीति और विकल्पों के बारे में नहीं सोचा गया तो हमारी अंधभक्ति देश समाज को बर्बाद कर देगी. कांग्रेस से मुक्ति मिली है, बहुत अच्छी बात है. लेकिन देश को मोदी और भाजपा की कांग्रेसी किस्म की घटिया टुच्ची सांप्रदायिक और पूंजीपति परस्त राजनीति से भी मुक्ति मिलनी चाहिए. मोदी को तो मौका है पांच साल पूरा खेलने खाने के लिए. पर मोदी पर लगाम के लिए एक केजरीवाल बहुते जरूरी है दोस्त. मोदी को देश दे दिया. केजरी को सिर्फ लूली-लंगड़ी दिल्ली का राजपाठ दो. ये बंदा मोदी को ऐसी उंगली करता रहेगा कि मोदिया बाप बाप चिल्लाएगा कि इ केजरिया न जीने दे रहा है न मरने. समझदार प्रजा जनता वही होती है जो अपने नेताओं को सत्ता देकर उन पर अंकुश लगाना भी सीखे. वैसे भी लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की अवधारणा है ताकि सत्ता पक्ष तानाशाही की ओर न अग्रसर हो सके, लगाम लगा रहे. संतुलन बना रहे. नजर हर एक की कायम रहे. इस देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए केजरीवाल जैसे क्रांतिकारी को दिल्ली का राजपाठ सौंपना है. अब अगर आपको कुछ दिख नहीं रहा , कुछ समझ में नहीं आ रहा है तो मैं यही कहूंगा का बहुते अंधभक्त हो रे… लगता है नमउवा से कउने बहुते गहराता नाता है रे…

कानाफूसी ये भी है कि केजरीवाल ने खुद किरण बेदी और शाजिया इल्मी को भाजपा में घुसाकर प्लांट किया है। संघियों भाजपाईयों की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी थी जो कांग्रेसी कल्चर की तरह चुनाव के बीच पैराशूट लैंडेड कैंडिडेट को टिकट दे रहे हैं और इन्हें cm – minister बनाने का प्रलोभन दे रहे हैं। बेचारे भाजपा कार्यकर्ता, अब कैसे कहेगा की अलग चाल चेहरे चरित्र वाली पार्टी है उनकी। केजरीवाल फोबिया से ग्रस्त मोदी की बुद्धि गड़बड़ा गयी है और कजरी के ट्रैप में फंसते जा रहे हैं। सत्ता में आकर मोदी ने जो गडित खेलना शुरू किया है वो कांग्रेसी दिनों की याद दिला रही है। किरण और शाजिया को भाजपा में शामिल करना ज्वलंत उदाहरण है। तो मानना पड़ेगा कि केजरीवाल के भय में भाजपा अब कांग्रेस हो गयी है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Surbhi Sondhi : Bhagora Kiran bedi Special… Delhi Assembly Polls 2015: Dear BJP, does Kiran Bedi’s past as a bhagora not matter? Kiran Bedi’s past is so full of many U-turns, controversies, spats with seniors, courts, lawyers and outbursts against Narendra Modi that an entire issue of Charlie Hebdo could be dedicated to satirizing her career.

Her opinion on Modi, before she inexplicably (or was it part of a political strategy?) changed her mind is well known, courtesy her tweets. Till a few months before Modi became the PM — a fact that must have inspired Bedi to rearrange her thoughts and realign her political philosophy — she was continuously attacking him for the Gujarat riots.

Advertisement. Scroll to continue reading.

In March, Bedi tweeted: “One day NaMo will need to respond with clarity about riots massacre. Despite Courts clearing him so far.”

And in April 2012, she has argued that Modi may have passed the SIT exam but was yet to clear the test of ‘prevailing perception of serious incidents’ under his watch.
But, hey, now that the BJP desperately needs somebody to take on Arvind Kejriwal, all such past sins are forgiven.

Advertisement. Scroll to continue reading.

The public spotlight that comes with an election may be less merciful. Now that she has taken the plunge into politics, Bedi will have to undergo a serious scrutiny of her career, persona and politics. There may not be Charlie Hebdo cartoons, but there will be uncomfortable questions.

Why was Bedi, for instance, bypassed for the post of Delhi’s police commissioner? And why was she not found suitable for a filed posting after being reprimanded by an enquiry committee for ordering a lathi charge on lawyers?

Advertisement. Scroll to continue reading.

In July 2007, Bedi proceeded on a three-month ‘protest leave’ when she was overlooked for the Delhi commissioner’s post. Bedi claimed she was a victim of gender bias, and declared that she was weighing all ‘options including legal’. She instead suddenly changed her mind, cancelled her leave, resumed office and finally applied for voluntary retirement. The government accepted her application and relieved her immediately.

गिरिजेश वशिष्ट, पेरी महेश्वर, शंभूनाथ शुक्ल, पंकज सिंह, दीपक शर्मा, सत्येंद्र पीएस, शीतल पी. सिंह, सिद्धार्थ विमल, विवेक कुमार, यशवंत सिंह और सुरभि सोंधी के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. suman rao

    January 22, 2015 at 3:53 pm

    ab to result samne hi aa jayega dudh ka dudh aur pani ka pani hoga

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement