मिलिंद और प्रसून के साथ जो हुआ वो शर्मनाक के साथ खतरनाक भी है
Arun Asthana
ABP न्यूज़ जिस दौर से गुज़र रहा है वो मेरे लिए तकलीफदेह है। इस चैनेल को खड़ा करने वाले चंद लोगों में मैं भी हूं। बतौर स्टार न्यूज़ मैंने इसकी परिकल्पना और लांच में ही हाथ नहीं बंटाया बल्कि इसकी पूरी टीम को ट्रेनिंग भी दी। आज इस चैनेल का हाल और देश के हालात बहुत अलग नहीं हैं। मेरा भारत जिस तरह और जिस तरफ इस वक्त धकेला जा रहा है वो बहुत डराता है। जिस रास्ते ये पिछले चंद बरसों में बढा है, मुझे लगता है पहले कभी नहीं बढा। और ये रास्ता खतरनाक है, उस देश के लिए, जो एक भूगोल से ज्यादा एक समाज है।
ऐसे में मीडिया पर अंकुश कोई अनूठी बात नहीं। ये संकट है जिससे लड़ना है। पर कैसे और किसके लिए… ये तय करना भी बहुत ज़रूरी है। हमें एक संस्था, एक व्यवस्था के हित के लिए, जो देशहित में है आवाज़ उठानी है पर यहां लोगों की पड़ताल करना भी ज़रूरी है। कुछ लोग जो इस व्यवस्था का नाजायज़ फायदा उठाते रहे हैं उनके लिये क्या ?
जिन्होने सिर्फ इसलिये खुद को दूसरे खाने में खड़ा किया ताकि वो फायदे लेते रहें और पकड़े जानेपर कहें कि- ‘मैं विरोध में था इसलिए पकड़ा गया’ उनके लिए मेरे पास कोई सहानुभूति नहीं है। जिनकी वजह से पत्रकारिता की पूरी संस्था को भुगतना पड़े उनके साथ मैं नहीं। बल्कि मैं उन्हे बेनकाब करना ज्यादा पसंद करूंगा।
ABP की बात करूं तो संजय पुगलिया के बाद उदय शंकर उसे जिस रास्ते पर ले गये उसे पुख्ता किया शाज़ी ज़मां ने, जो मेरा दोस्त और सहकर्मी रहा है। उदय ने भरोसा किया और शाज़ी ने चैनेल को बुलंदियों पर पहुंचाया क्योंकि वो पढालिखा और समझदार था।
उसके बाद मिलिंद ने चैनेल संभाला, मेरा उससे साबका ज़्यादा नहीं पर वो भी भले और समझदार आदमी हैं, ये पता है। पुण्यप्रसून भले अहंकारी कहे जाते हो पर वो और दिबांग जानकार हैं और पते की बात संतुलित तरीके से करते हैं ये सब समझ सकते हैं।
मिलिंद और प्रसून के साथ जो हुआ वो शर्मनाक के साथ खतरनाक भी है। रही अभिसार की बात तो- अभिसार मेरे साथ BBC में बतौर जूनियर काम कर चुके हैं। बोलते अच्छा हैं पर जानकारी और संवेदनशीलता के मामले में ज़रा कमज़ोर हैं। ‘धान से गेंहूं बनता है’ वाली रिपोर्टिंग ताज़ा उदाहरण है पर ऐसे कम या ना जानकारी वाले सैकड़ों वाकये न्यूज़रूम्स में ठहाकों के साथ उड़ा भी दिये गये हैं।
तो मेरे खयाल से अभिसार को उसी तराज़ू में तौलना प्रसून या मिलिंद की बेइज़्ज़ती होगा। वैसे भी तीनों के जाने या बिठा दिये जाने की एक ही वजह नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार अरुण अस्थाना की एफबी वॉल से.
One comment on “ABP न्यूज़ जिस दौर से गुज़र रहा है वो मेरे लिए तकलीफदेह है”
Balance & Perfect Analysis sir…Great