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सुख-दुख

पूनावाला भागा क्यों? : कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी, यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता!

मुकेश असीम-

द टाइम्स, लंदन में प्रकाशित पूनावाला के इंटरव्यू का यह हिस्सा पढ़िये और तब धमकियों तथा वास्तविकता जाहिर करने पर गर्दन कटने की उसकी बात समझिये, तो बात लगभग स्पष्ट है। वो कहता है कि राष्ट्रीय स्तर पर टीकाकरण अभियान हेतु अग्रिम बड़े ऑर्डर की वजह से सरकार को 150 रु की सस्ती दर पर आपूर्ति मुमकिन थी। पर 10 करोड़ के ऑर्डर में ऐसा मुमकिन था तो 200 करोड़ के ऑर्डर में तो और भी मुमकिन था।

35 हजार करोड़ रु का बजट आबंटन था तो कीमत कम रखने व उत्पादन तेज करने के लिए चालू पूँजी हेतु सरकार उसे कुछ अग्रिम भुगतान भी कर सकती थी। फिर ‘राष्ट्रीय टीकाकारण अभियान’ ठप कर पूनावाला को दाम बढ़ाने के लिए किसने कहा और क्यों? आपदा में अवसर कौन ढूँढ रहा था? 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों का खर्च जनता की डूबती साँसों की कीमत पर तो नहीं? गर्दन काटने की क्षमता किसके हाथ में है? सच्चाई का डर भी तो उसे ही है।

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जे सुशील-

अदार पूनावाला यूं ही नहीं भागे हैं लंदन. ये प्रिविलेज है बड़े लोगों का. भारत में दबाव पड़ा तो भाग गए क्योंकि वो अफोर्ड कर सकते हैं. लंदन से वो कह रहे हैं कि उन पर भारत में दबाव था. पावरफुल लोग लगातार दबाव डाल रहे थे ऑक्सीजन के लिए वैक्सीन के लिए.

इस समय भारत में पावरफुल कौन है ये दुनिया जानती है. पूनावाला बढिया मुनाफा बना ही रहे थे लेकिन सिस्टम है कि सिस्टम को अपने लिए पहले चाहिए.

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कुछ राइट विंग भक्त लिख रहे हैं कि अब पूनावाला चला गया तो जेएनयू के सोशियोलॉजी विभाग वाले वैक्सीन बनाएं. ऐसे लोगों की कुंठा समझ में आ सकती है. ये वही सिस्टम है जो पूनावाला पर दबाव डाल रहा होगा.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री फडनवीस के भतीजे की तस्वीर है वैक्सीन लेते हुए वो भी तब जब पैंतालीस साल से ऊपर के लिए ही वैक्सीन लेने का नियम था. वो बीस बाईस साल की उम्र में वैक्सीन पा जाते हैं.

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पूनावाला की आलोचना मुनाफा कमाने को लेकर हुई ही थी कि उन्हें कम मुनाफा कमाना चाहिए.

बीजेपी के एक नेता ने उन्हें डकैत कहा था और एक नेता ने कहा कि भारतीय कानूनों के अनुसार पूनावाला को बाध्य किया जाए कि वो मुफ्त में वैक्सीन दें. ये सब ट्विटर पर उपलब्ध है.

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सुब्रहमण्यम स्वामी ने पूनावाला को संसदीय समिति के सामने बुलाने की सिफारिश की थी.

लब्बोलुआब ये है कि राइट विंग को कैपिटलिज्म चाहिए लेकिन कैपिटलिज्म की आड़ में अपना सिस्टम भी चाहिए कि पूनावाला वैक्सीन पहले हमको दे दे. हमारे परिवार को दे दे. लेफ्ट लिबरल तो पूनावाला की आलोचना करेगा ही कि वैक्सीन फ्री हो.

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लेकिन वैक्सीन फ्री देना पूनावाला का काम नहीं है. राष्ट्रीय आपदा है जैसे भारत सरकार ने पूनावाला से वैक्सीन खरीद कर विदेश निर्यात किया है उसी तरह भारत सरकार को अपने पैसे से वैक्सीन खरीद कर पूरे देश में फ्री में उपलब्ध करवाना चाहिए.

यहां भी सरकारी अस्पतालों को पीछे छोड़ दिया गया है. कल ही पढ़ रहा था कि कुछ निजी अस्पतालों में वैक्सीन मिल रहा है. सरकारी अस्पतालों में पहुंचा नहीं है.

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सरकार ने एक साल से अल्हुआ खोदा है. ये अल्हुआ ही निकल रहा है. अब पूनावाला लंदन में है. वहीं पर किंगफिशर वाले मलाया और आईपीएल वाले ललित मोदी हैं जिनको लाने के बारे में लंबे चौड़े दावे किए गए थे.

पूनावाला को खुल कर बताना चाहिए कि कौन से पावरफुल लोग थे जिन्होंने उन पर दबाव डाला था. देश में दो ही चार तो पावरफुल लोग हैं अंबानी अडानी या फिर मोदी और शाह….

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तो अगर इनके दबाव के कारण पूनावाला भागे हैं तो ज़िम्मेदार कौन है ये समझना मुश्किल नहीं है..राइट विंग को खूब पता है लेकिन वो इस मामले में भी लेफ्ट लिबरल को दोषी ठहराएंगे अकारण क्योंकि उनके पास अपने आका के बचाव में कुछ रह नही गया है.



नवनीत चतुर्वेदी-

यदि मुझे या किसी को भी Y सिक्युरिटी मिलेगी तो हम सब मामूली किस्म के छोटी अक्ल वाले सबसे पहले एक ही काम करेंगे वो यह कि बड़े शान से बिना मतलब के इधर उधर घूमेंगे फिरेंगे, सड़क, मार्केट, हाईवे, रेलवे स्टेशन, मेट्रो स्टेशन, एयरपोर्ट, मॉल्स, मंदिर ,होटल्स रेस्टोरेंट पब बार इत्यादि इन सब जगहों पर टशन के साथ अपना रुआब दिखाएंगे।

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लेकिन सीरम इंस्टीट्यूट वाले अदार पूनावाला साहब बड़े नाशुक्रे है, सिस्टम ने उनकी सुरक्षा का ख्याल रखते हुए उनको Y श्रेणी की सुरक्षा दी और वो पता नही कब सुरक्षा मिलने से पहले ही लंदन निकल गए।
(सुरक्षा मिलने के बाद लंदन जाने की संभावना कम है)

अब सवाल यह है कि सिस्टम ने उनको सुरक्षा क्यों दी होगी,
एक तो 150 में वैक्सीन बेच कर भी वो गारंटी से 75 रूपया तो कमा ही रहा होगा, अब कैलकुलेट कीजिये मुल्क की आबादी को 75 से गुणा कर के कितने खरब हो गए होंगे।
लेकिन सिस्टम ने वैक्सीन के दाम कई गुना बढ़ा दिए और इस पूनावाला को कहा गया होगा कि वो अब बढ़े हुए एक्स्ट्रा दाम प्लस तेरी कमाई 75/- में से हमारा हिस्सा हमको पहुंचा दे। ( यह मेरी सोच है जिसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति की सोच से यदि मैच हो रहा है तो नितांत संयोग होगा)

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पूनावाला लगता है सिस्टम का हिस्सा हड़पने की सोच रखता था, तो सिस्टम ने निगरानी रखने के लिए उसको सुरक्षा दे डाली। लेकिन पूनावाला तेजी से लंदन चला गया और अब कहता है कि वो नही आएगा।

एक #RTI होम मिनिस्ट्री में डाल कर पूछी है कि इसको सुरक्षा कब किस तारीख को दी गई और सुरक्षा टीम ने इसके लंदन जाने की रिपोर्ट कब की मंत्रालय को।

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नोट:– यदि मैं होता पूनावाला की जगह तो बड़े आराम से वैक्सीन के एक्स्ट्रा दाम और 75/- वाले मुनाफे में से 74 रुपया सिस्टम को लौटा देता। 1 रूपया बचा कर भी 200 करोड़ कमा सकता था। सिस्टम बहुत दयालु है क्या वो 1 रुपया भी नही छोड़ता, बताओ?


मीनू जैन-

मुझे अदर पूनावाला की ईमानदारी और नैतिक मूल्यों पर किसी तरह का कोई शक नहीं है ।

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बरसोंबरस पारसी समुदाय को बहुत ही करीब से जानने और समझने के बाद मेरा मन इस बात को मानने के लिए कतई तैयार नहीं है कि अदर पूनावाला बेईमान है, भगौड़ा है और एक एक सांस के लिए तरसती जनता को मझधार में छोड़कर रफूचक्कर हो गया है ।

मुझे लगता है कि एक वैक्सीन की अलग -अलग कीमत वसूलने के लिए उसके ज़मीर ने गवाही नहीं दी । लिहाजा लोयावादी दौर में हिजरत ही उसके लिए श्रेयस्कर विकल्प रहा होगा ।

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अदर पूनावाला नीरव , मेहुल, ललित वगैरह की तरह नव – धनाढ्य नहीं है जो अनैतिक रास्तों से अल्प समय में अकूत सम्पदा अर्जित कर लेते हैं और आखिर में पब्लिक का पैसा समेटकर सात समंदर पार भाग जाते हैं ।

ध्यान रहे , मात्र 70 हजार की आबादी वाला यह समुदाय जनकल्याण , शिक्षा , स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपने अर्जित धन का निस्वार्थ सदुपयोग करने वाला समुदाय है ।

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फिर कहती हूँ मुझे पारसियों की ईमानदारी पर अटूट विश्वास है । कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी, यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता!


सौमित्र रॉय-

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महत्वपूर्ण अपडेट:

सीरम इंस्टिट्यूट के सीईओ आदर पूनावाला के ब्रिटेन जाने और वहां वैक्सीन बनाने की योजना के पीछे बिल गेट्स का दिमाग बताया जा रहा है।

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Girish Malviya से दो दिन पहले ही इस अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र पर बात हो रही थी और आज इसके प्रमाण सामने हैं।

ये मोदी सरकार की मूर्खता है कि वह वैक्सीन की साज़िश को नहीं समझ पाई या फिर अपने फायदे के लिए जानबूझकर इसे बढ़ावा दे रही है।

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इसे यूं समझें-
सीरम का कहना है कि उसने भारत सरकार के साथ 150 रुपये प्रति डोज़ की दर पर सिर्फ 10 करोड़ वैक्सीन देने का समझौता किया था।

समझौता चूंकि खत्म हो चुका है, इसलिए उसने अगले उत्पादन के दाम दोगुने-चौगुने कर दिए।

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लेकिन सीरम को विश्व स्वास्थ्य संगठन, यानी WHO से कई गुना ज्यादा का आर्डर मिला था और वह भी एडवांस में।

कोविशिल्ड के पीछे एस्ट्राजेनेका सिर्फ एक आड़ की तरह है। असल में गूगल और गेट्स फाउंडेशन इस वैक्सीन के पीछे की प्रमुख डेवलपर कंपनियां हैं।

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दोनों का मकसद भारत के फार्मा उद्योग पर कब्ज़ा जमाना है और कोविशिल्ड इसकी पहली कड़ी है।

नीचे का पहला ग्राफ देखें तो पता चलेगा कि जनवरी से मई 2020 के बीच नदी में बहुत पानी बहा है।

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दूसरा ग्राफ मई के बाद की डील्स को बताता है कि कैसे GAVI-CEPI सामने आए और एस्ट्राजेनेका ने जून में किस तरह सीरम को 1 बिलियन डोज़ का आर्डर दिया।

इसी जून 2020 में भारत ने ग्लोबल साउथ इनिशिएटिव के माध्यम से 10 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर सीरम को मिला। बीच में मोदी सरकार से डील कब और कैसे हुई, यह बड़ा सवाल है।

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सीरम में कोवैक्स का भी पैसा लगा है।

अब इस पूरे परिदृश्य को देखकर यह साफ हो जाता है कि सीरम ने इतना तो कमा ही लिया है कि पूनावाला ब्रिटेन में पैसा लगा सके।

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BREXIT के बाद ब्रिटिश सरकार को पूनावाला जैसे निवेशकों की तलाश है। वहां प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की छवि कोविड कुप्रबंधन के कारण बहुत खराब है।

ऐसे में उनके लिए पूनावाला में दिलचस्पी जायज़ है। दूसरी बात- सीरम के पास वैक्सीन उत्पादन का फ्री लाइसेंस है।

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वह कहीं भी वैक्सीन बना सकता है।

आपको याद होगा कि महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे ने पिछले दिनों भारत बायोटेक को 94 करोड़ से ज़्यादा देकर होफकिन्स इंस्टिट्यूट को कोवैक्सीन की तकनीक देने को कहा था।

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मोदी ने जो चूक की, वह उद्धव ने नहीं की।

आपको यह भी याद होगा कि सीरम के पुणे में 100 एकड़ वाले कैंपस में पिछले साल आग लगी थी। आग लगी थी, या लगवाई गयी थी- ये सवाल आप आज मज़बूती से पूछ सकते हैं।

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कुल मिलाकर भारत वैक्सीन के अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र में गहरे फंस चुका है।

लगता है, देश की बाकी 110 करोड़ अवाम को बिना वैक्सीन के ही मरना होगा।

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सीरम के सीईओ अदार पूनावाला के लंदन चले जाने की खबरों के बीच इनबॉक्स में कुछ मित्रों ने लिखा है कि अब आगे क्या होगा? और यह सब क्यों हुआ?

ये आप पूछ रहे हैं?

छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल की राह पकड़ने वालों को इस सवाल का हक़ नहीं बनता।

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भारत में 11000 लोगों पर एक डॉक्टर है। प्रति 10 हज़ार मरीजों पर अस्पतालों में 5-9 बिस्तर उपलब्ध हैं।

प्राइवेट अस्पताल 55% मरीजों का बोझ उठाते हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों में 42% लोग ही पहुंचते हैं। (एनएसएस 75वां दौर)

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अब जबकि कोविड का हाहाकार मचा है, आपको देश में स्वास्थ्य तंत्र की याद आ रही है? केन्द्र सरकार स्वास्थ्य पर जीडीपी का 1.2% से भी कम खर्च करती है। राज्यों की बात करें तो खर्च 0.2% से 2% तक ही है।

आप कहेंगे कि ये तो पूरी दुनिया के हालात हैं। ठीक बात है।

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लेकिन इससे निपटा कैसे जाए?

पिछले साल कोविड की पहली लहर में स्पेन की तबाही याद है? कैसे निपटा गया?

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स्पेन ने पिछले मार्च में ही कोविड फैलने के बाद इमरजेंसी का ऐलान कर दिया था। लेकिन इसके बाद जो हुआ उसे दोहराना न तो अभी बाइडेन के बस में है और न नरेंद्र मोदी के।

स्पेन ने इमेरजेंसी के दौर में सारे प्राइवेट अस्पतालों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था, ताकि सभी को एक समान, एक दर पर स्वास्थ्य सेवा मिले।

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साथ ही वहां के स्वास्थ्य मंत्री साल्वाडोर इल्ला ने खुलेआम सभी को जीवन की गारंटी दे दी। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 सभी को जीवन की गारंटी देता है। मोदी ने ऐसा किया?

भारतीय संविधान पर पोथा लिखने वाले भी बीमार पड़ने पर प्राइवेट में जाते हैं, क्योंकि उन्हें अगला पोथा लिखने के लिए ज़िंदा रहना है। वे जानते हैं कि सरकार उन्हें ज़िंदा नहीं रख पाएगी।

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फिर किस संविधान की दुहाई देते हैं ऐसे लोग?

आज 56 इंच छाती का दावा करने वाले नरेंद्र मोदी में इतना दम नहीं है कि प्राइवेट अस्पतालों का अधिग्रहण कर सके और न ही किसी राज्य की सरकार में।

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क्योंकि देश की 99% मूर्ख अवाम प्राइवेट को ही जीवनरक्षक मानती है, चाहे इसके लिए घर-ज़मीन बिक जाए या बिना ऑक्सीजन अथवा आग में जलकर मर जाएं।

वास्तव में हमें हक मांगना नहीं आता और न कभी आएगा।

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श्याम सिंह रावत-

पूनावाला लोया बनने से बच गया। पूनावाला केंद्र को 150 Rs मे वैक्सीन देकर भी कमाई कर रहा था। फिर केंद्र (सिस्टम) ने बताया पूनावाला सीधे राज्यो को भी वैक्सीन देगा वो भी दुगने तिगुने दाम में। बोबडे के हटते ही मेलोर्ड ने रंग बदला ओर सिस्टम से पहली बार पूछा कि कैसे एक ही दवा के इतने अलग अलग रेट क्यों? सिस्टम की ये बात किसी के गले नहीं उतरी, वो फंसता गया।

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भारत मे 100 करोड़ लोगो को दो-दो बार टीका लगेगा कुल 200 करोड़ टीके। अगर पूनावाला उसके आधे टीके भी सप्लाई करे और उसका दांम 150 वाजिब माना जाये तो 100 करोड़ टीके गुणा में 250 rs एक्स्ट्रा फायदा मतलब सैंकड़ो अरब के वारे न्यारे। क्या सिस्टम किसी को अकेले अरबो हजम करने दे सकता था? ना जी ना। तो सिस्टम ने उसे Y कैटेगरी सुरक्षा के नाम पर 24 घण्टे नजरो के सामने रखना स्टार्ट कर दिया।

क्योंकि एक स्टैण्डर्ड टीके पर एक ही देश के अंदर दुगने तिगुने दाम वाला सिस्टम का दांव उल्टा पड़ चुका था, पूनावाला फंस चुका था। तो उसने सिस्टम के खिलाफ जाकर एक अजीब ऐलान किया। 100 Rs प्रति वैक्सीन की छूट, वो भी ऐसे प्रोडक्ट पर जिसके सालो तक के एडवांस आर्डर उसके पास पहले से हो। मेरा माथा ठनका की कोई उद्योगपति बिके हुए समान पर अरब रुपये की छूट घोषित कर दे जबकि उसके तीन दिन पहले तक वो सरकार से 3 हजार करोड़ की सपोर्ट मांग रहा था…. ये अजूबा ही था। वो छूट जरूर खुद को किसी जाल से बाहर निकलने की कोशिश लगी।

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पूनावाला बच्चो से मिलने के नाम पर नजरबंदी से बच कर लंदन भागा। वहां पहुंचते ही बोला मैं मुंह खोल दूँ तो भारत मे ताकतवर आदमी मेरी गर्दन काट देगा। भारत मे कौन माई का लाल है जो सिस्टम की 24 घण्टे वाली Y कैटेगरी सुरक्षा मे उसे छू सकता? जब तक कि सिस्टम खुद ही उसकी गाड़ी पलटने वाला कारनामा ना करना चाहे…….

लगता है पूनावाला खुद को लोया बनाने से बचा गया।

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(सिस्टम भ्रस्टाचार नही पकड़ता, बस हिस्सा ले लेता है)

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