निशीथ जोशी-
रोहतक में एक अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार अखिल तलवार अपने कमरे में मरे पाए गए। बिस्तर पर पड़ा शव, नीचे खून की उल्टी, बगल में रखा लैपटॉप और पानी की बोतल सारी कहानी कह रही थी। दो दिन से वह ऑफिस नहीं पहुंच रहे थे और आज सुबह कमरे से दुर्गंध आई तो यह सब सच सामने आया। यह तो होगा एक पत्रकार का नजरिया, खबर और पुलिस की जांच।
इससे इतर अखिल तलवार के रूप में हमने आज एक बहुत प्यारा छोटा भाई खो दिया। 16 मार्च से ही उसकी बहुत याद आ रही थी, हम अपने ऑफिस में एक साथी को भी बता रहे थे अखिल कैसे मिले और जुड़े थे।
अखिल तलवार से पहली मुलाकात लुधियाना में घंटाघर के पद जिला परिषद की बिल्डिंग में स्थित अमर उजाला के दफ्तर में 2002 में हुई थी। वे किसी कंपनी में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव थे। लिखने पढ़ने के शौकीन। प्रदीप ठाकुर को मिले होंगे। ऑफिस आ कर प्रेस नोट आदि बना जाते थे। एक दिन पता चला कि उसने नौकरी छोड़ दी है पत्रकारिता के लिए। खैर उनको ट्रेनी बनवा लिया गया। कुछ ही दिनों में अखिल तलवार ने मेडिकल बीट की खबरों से तहलका मचा दिया। पूरे पंजाब में डॉक्टरों के बीच उसकी अलग पहचान बन गई।
बहुत प्यारा था वह। एक दिन मेरे घर आ कर रोने लगा। बोला बहुत दबाव है जागरण में जाने का। आपको छोड़ कर नहीं जा सकता। हमने उसको समझाया पर उसने दिल जीत लिया।
फिर जालंधर अमर उजाला में भी वह रिपोर्टिंग में था हम संपादक। सुबह मीटिंग लेने जाते तो मुलाकात हो जाती। हमारी बेटी मेघना जब बहुत छोटी थी शायद तीन साल की तभी से अखिल उसको मैगी या मैग्स कह कर बुलाने लगे। हम अमर उजाला में कई स्थानों पर रहे अखिल से रिश्ता और गहरा होता गया। हर दुख सुख को साझा कर लेता था भले ही एक साल बाद फोन करे। हम अमर उजाला से नवंबर 2015 में रिटायर हो गए। अखिल तलवार संपर्क में बने रहे। एक दो बार हम मोहाली गए। उसके ही कमरे में रुके।
लगभग दो साल पहले अखिल तलवार का तबादला चंडीगढ़ से रोहतक कर दिया गया। वह जाना नहीं चाहता था। उसने अपनी तबियत के बारे में और लिवर का इलाज पीजीआई चंडीगढ़ में चल रहा है तक बताया। पर उसकी एक नहीं सुनी गई। हमने व्यक्तिगत रूप से चंडीगढ़ छोटे भाई समान अमर उजाला के तत्कालीन संपादक संजय पांडे से बात की उन्होने कहा कि अभी रोहतक ज्वाइन कर लें 6 माह में बुलवा लेंगे।
जब अखिल तलवार को पुनः चंडीगढ़ नहीं बुलाया गया तो एक बार उसने हमको बताया कि वहां ही उसका इलाज ठीक से हो रहा था अब कि अमर उजाला के सीनियर उसकी एक नहीं सुन रहे।लगता है कि कहीं कोई गड़बड़ नहीं हो जाए। और आज उसकी बात सच हो गई।
उसने हमसे कहा था कि अतुल माहेश्वरी वाले अमर उजाला में मानवीय मूल्यों को ऊपर रखा जाता था उन तक पहुंच हो जाती थी अब राजुल महेश्वरी तक सीनियर सच पहुंचने ही नहीं देते। हमने उसको समझाया था कि राजुल महेश्वरी जी का मानवीय पक्ष हमने देखा है। हमारी मां के शरीर त्याग करने पर कैसे उन्होंने फोन पर लंबी बात की, कैसे उनकी तेरहवीं पर अमर उजाला के सभी संस्करणों में अमर उजाला की तरफ से ही एक विज्ञापन प्रकाशित कराया। इसके लिए उन्होंने कैसे मार्केटिंग के अति वरिष्ठ श्री अशोक शर्मा को कहा था।
उसको हमने राजुल महेश्वरी जी से मिलने को भी कहा था जाने क्या हुआ उसने कुछ नहीं बताया। हां अपने साथ हो रहे अन्याय की बात करता रहा कि कैसे उसको शुरू से ही उपेक्षा झेलनी पड़ी अच्छा काम करने और परिणाम देने के बाद भी। कुछ नाम भी उसने लिए थे। अब उनका जिक्र करने से कोई लाभ नहीं हमने एक अच्छे इंसान और पत्रकार को खो दिया है।
सोच रहे हैं कि क्या हम इतने संकुचित मानसिकता में आ गए हैं कि अपने कनिष्ठ साथियों की वाजिब तकलीफ भी नहीं समझना चाहते कंपनी पॉलिसी के नाम पर। फिर दूसरे केंद्रों पर जब जरूरत होती है तो पॉलिसी बदल जाती है। तो क्या अब अमर उजाला जैसे मानवीय सरोकार को ऊपर रख कर चलने वाले संस्थान का भी मशीनी करण हो गया है।
अतुल माहेश्वरी और अमर उजाला के हम जीवन भर ऋणी रहेंगे क्योंकि हमको घर से बुला कर उस समय नौकरी दी थी जब हम संकट काल में थे। आज उस संस्थान में अखिल तलवार जैसे समर्पित पत्रकार के साथ होता देखते हैं तो लग रहा है कहां से कहां पहुंच गए हम।
अखिल माफ करना हम ने अपराध किया था आपको पत्रकारिता में लाने और वह जनून भर दिया था आपमें। आप ने इतना बड़ा संसार बनाया अपना कि सुबह से ही फोन बज रहा है हमारा। भाभी और तुषार भी दुखी हैं मैगी को बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं हम। जहां भी आप गए हैं ईश्वर जन्म मरण के इस बंधन से मुक्त कर दे। काश 17 मार्च को फोन कर लेते यह पीड़ा सदा बनी रहेगी।
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अमर उजाला में अब वह दौर खत्म हो गया , जब पत्रकारों को इंसान समझा जाता था। अब तो ये संस्थान पत्रकारों का स्लाटर हाउस हो गया है। कर्मचारियों की मजबूरी से प्रबंधन एवं शीर्ष नेतृत्व पर विराजमान लोगों से कोई लेना देना नहीं। उनके लिए अधीनस्थ कर्मचारी कीड़े-मकोड़े के समान है । बीते चार वर्षों में पुराने एवं निष्ठावान पत्रकार एवं गैर पत्रकार साथियों को चुन चुन कर कंपनी से निकाले जाने के लिए मजबूर किया गया अथवा निकाल दिया गया। जिसमें कइयों की मौत हो गई जबकि विषम परिस्थितयों में कई अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। रोहतक युनिट में तबादले का मतलब ही होता है कि या तो आप नौकरी छोड़िए(
पंजाब में काम करने के दौरान से मैं अखिल तलवार को जानता हूं, तब मैं भास्कर में था। वह बहुत मिलनसार स्वाभाव के थे। एक ही पेशे में रहने की वजह से उनके रोहतक तबादले के बाद भी मेरी फोन पर बातचीत होती थी। होली के बाद 10 मार्च को बधाई देने के लिए मैंने उनको काफी दिन बाद फोन किया था तो उन्होंने अपना दर्द साझा किया था। बताया था कि अमर उजाला का प्रबंधन किस तरह उनको परेशान कर रहा है। तबादले के नाम पर पहले मोहाली से रोहतक भेजना और वहां संपादीकीय प्रभारी समेत अन्य वरिष्ठों द्वारा उपेक्षित किया जाने का भी जिक्र किया गया। कोरोना काल में भी छुट्टी न मिलना अथवा वर्कफ्राम होम जैसी सुविधाएं न देने जैसी यातनाओं का उन्होंने बातचीत के दौरान उन्होंने विस्तार से उल्लेख किया। तब मालूम न था कि संस्थान उनके साथ प्रताड़ना के इस दौर को पार कर जाएगा।