रवीश कुमार-
कितने हिन्दी अख़बारों के पहले पन्ने पर डॉलर के 81 रुपये को पार करने की ख़बर छपी है? एक्सप्रेस ने इसे पहली ख़बर की तरह छापा है। दो साल में विदेशी मुद्रा का भंडार सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है। जनवरी मध्य से लेकर सितंबर मध्य के बीच विदेशी मुद्रा भंडार में 90 अरब डॉलर की कमी आई है। अमर उजाला में डॉलर के 81 रुपये होने की ख़बर भीतर के पन्ने पर छपी है। पेज नंबर 10 पर।
छह महीना पहले अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 114 डॉलर प्रति बैरल था। आम जनता को मजबूर किया गया कि वह 100 रुपया लीटर पेट्रोल और डीज़ल के दाम दे। इसके असर में बढ़ने वाली महंगाई से जेब ख़ाली करे। छह महीने बाद अंतराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 74 डॉलर प्रति बैरल है। क्या इस अनुपात में आम जनता को राहत मिल रही है? चुनावों के कारण उत्पाद शुल्क में कटौती कर राहत दी गई लेकिन तब भी पेट्रोल 90-95 रुपया लीटर मिल रहा है। जनता की जेब ख़ाली कर दी गई है, यह उसे पता नहीं चलेगा क्योंकि उसके पहले मुस्लिम विरोधी बहसों से उसका दिमाग़ ख़ाली कर दिया गया है। आपकी कमाई उड़ गई। बचत उड़ गई।
एक डॉलर 81 रुपये का हो गया है। गोदी मीडिया का एक ऐंकर अब सवाल नहीं उठाता है। ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबैर ने अपने ट्विटर हैंडल पर कई गोदी ऐंकरों के ट्विट को खंगाला है। उन्होंने 2013 के बाद रुपये की गिरावट पर कोई ट्विट तक नहीं किया है। लेकिन तब लिखा करते थे कि एक डॉलर 61 रुपये का हो गया है, देश की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है। क्या आज नहीं जा रही है?
उत्तराखंड के बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री के बेटे का हत्या के एक मामले में नाम आया है। गिरफ्तार है। कई मीडिया ने अपनी रिपोर्टिंग में बीजेपी का नाम तक नहीं लिखा। जबकि लड़के पर आरोप है कि वह कथित रूप से 19 साल की अंकिता को वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर कर रहा था, जब लड़की ने इंकार किया तो उसकी हत्या कर दी। हम नहीं जानते कि यह एक मामला है या मंत्री का बेटा कई लड़कियों को इस दिशा में धकेल चुका है और बीजेपी के कितने नेता या कार्यकर्ता बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री विनोद आर्या और उसके बेटे पुलकित आर्या के संपर्क में होंगे?
क्या राष्ट्रवाद और धर्म की राजनीति छल प्रपंच, झूठ की बुनियाद पर ही टिकी होती है? बेहतर है आप इसे समझ लें। नहीं समझ आता है तो उन शहरों का हाल जाकर देख लें जिनके बारे में पिछले छह-सात साल से कहा जा रहा है कि स्मार्ट सिटी बनेंगे। आँखें खोलिए।
संजय कुमार सिंह-
एक डॉलर 81 रुपये का हो गया है – पर खबर?
रुपया टूटते हुए 81 का निशान पार कर चुका है लेकिन खबर छापने वालों को शर्म आ रही है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर चार कॉलम में कमजोर होती मुद्रा के फ्लैग शीर्षक के साथ छापा तो है पर उसके ऊपर एक खबर का शीर्षक है, मोदी के राज में बेजोड़ प्रगति : (अनुराग) ठाकुर। कहने की जरूरत नहीं है कि बड़ी खबर नीचे है और उसे लीपने पोतने वाली एक्सक्लूसिव खबर ऊपर। इस खबर का जितना हिस्सा पहले पन्ने पर छपा है उससे पता चलता है कि यह सूचना प्रसारण मंत्री का विशेष इंटरव्यू है और दो जनों की बाईलाइन से छपा है। अखबार ने मंत्री जी को अपना मंच दिया है।
अब मंत्री जी प्रगति के जो उदाहरण देंगे वो झूठ होंगे कि सच – इसकी अब कोई गारंटी नहीं रही इसलिए मैं आगे नहीं पढ़ रहा। मैं जो अखबार देखता हूं उनमें अकेले इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को बाकायदा लीड बनाया है। द टेलीग्राफ में यह खबर बिजनेस पेज पर लीड है। टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर ना खबर है और ना अंदर होने की सूचना। द हिन्दू में भी पहले पन्ने पर कुछ नहीं है। अंदर बिजनेस पन्ने पर लीड है। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह खबर बिजनेस पेज पर ही है।
मोदी ने किया है तो ठीक ही होगा के अंदाज में कहने पर और बिना कहे भी भक्तों ने ताली थाली बजाकर और टॉर्च दिखाकर देश का यह हाल कर लिया है कि जिस नोटबंदी से कालाधन खत्म होना था, भ्रष्टाचार दूर होना था (वेश्यावृत्ति भी खत्म होनी थी) और 50 दिन में सपनों का भारत बनना था उसके सिस्टम में मंगलवार को रिजर्व बैंक ने 22 हजार करोड़ रुपए डाले। संक्षेप में इसका कारण यही है कि लोगों के पास पैसे ही नहीं हैं। ना खर्च करने के लिए ना जमा करने के लिए ना काला, ना सफेद। यह हालत तब है जब हर महीने बताया जाता है कि जीएसटी वसूली बढ़ रही है। किसी अखबार में हिम्मत है जो पूछकर सच बता सके? बात इतनी ही नहीं है। रवीश कुमार ने बताया है कि
- ऑल्ट न्यूज़ के मोहम्मद ज़ुबैर ने कई गोदी ऐंकरों के पुराने ट्वीट खंगाले हैं। इनलोगों ने 2013 के बाद रुपये की गिरावट पर कोई ट्वीट नहीं किया है। तब वे लिखा करते थे कि एक डॉलर 61 रुपये का हो गया है, देश की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है। आज नहीं जा रही है? पर खबर?
- छह महीना पहले अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 114 डॉलर प्रति बैरल था। आम जनता को मजबूर किया गया कि वह 100 रुपया लीटर पेट्रोल और डीज़ल के दाम दे। अब कच्चे तेल का भाव 74 डॉलर प्रति बैरल है। क्या इस अनुपात में आम जनता को राहत मिल रही है? और खबर?
- उत्तराखंड के एक बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री के बेटे का नाम हत्या के एक मामले में आया है। गिरफ्तार है। कई मीडिया संस्थानों ने अपनी खबर में बीजेपी का नाम तक नहीं लिखा है। हम नहीं जानते कि यह एक मामला है या मंत्री का बेटा कई लड़कियों को इस दिशा में धकेल चुका है। पर खबर?
- अखबारों में आज खबर छपी है कि प्रधानमंत्री ने कहा, अर्बन नक्सल विकास विरोधी, अर्बन नक्सल से सतर्क रहें, सरदार सरोवर बांध वर्षों तक रोके रखा था आदि। दूसरी ओर, सरकार कह चुकी है कि हम अर्बन नक्सल के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इंडिया टुडे ने आरटीआई के तहत चार सवाल पूछे थे, (i) अर्बन नक्सल कौन हैं? (ii) कौन से क्षेत्र में वो सक्रिय हैं? (iii) अभी तक कितने अर्बन नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है और उनमें से कितने दोषी साबित हुए हैं? (iv)क्या कभी सरकार ने अर्बन नक्सलियों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की?
अगर हां तो कब? इनका जवाब था, ‘अभी तक जहां तक अधोहस्ताक्षरी सीपीआईओ का संबंध है तो सूचना को शून्य माना जाए।’ इसके बावजूद प्रधानमंत्री अर्बन नक्सल की राजनीति किए जा रहे हैं। फिर भी खबर !! - गौ हत्या की राजनीति ने एक ऐसे संकट को जन्म दिया जिसका समाधान किसी के पास नहीं है। उस राजनीति से वोट ले लिया गया मगर समाधान नहीं निकाला गया। पशु मेले ख़त्म से हो गए। गाँव-गांव में सांड का आतंक बढ़ गया और कई लोग मारे गए। नतीजा यह हुआ कि देश के कई राज्यों में किसानों ने अपनी जेब से पचास हज़ार से लेकर तीन चार लाख तक की पूँजी खेतों में कँटीली तारें लगाने में खपा दी। उन तारों में बिजली के झटके का यंत्र भी ख़रीदा। मवेशियों के साथ क्रूरता होने लगी। क्या रस्सी से सांडों को रोका जा सकता है?
- अब क़ानून बना है कि ऐसा जो भी करेगा उसके ख़िलाफ़ मुक़दमा होगा और जेल जाएगा। किसानों को अपने खेतों से तार हटाने पड़ेंगे। घनचक्कर बने ना? धर्म के नाम पर गाय और उसी से परेशानी। नेता जी तो पांच साल बाद आएंगे। भुगतिये, झेलिये।
- एक ट्वीट देखा और खबर उसकी भी नहीं है। मदुरै में एम्स की घोषणा हुई थी। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि एम्स मदुरै के निर्माण का 95 प्रतिशत काम पूरा हो गया है। स्थानीय सांसद ने तस्वीर ट्वीट कर बताया है कि वहां कोई निर्माण ही नहीं हुआ है।
कुल मिलाकर, मुद्दा यह है कि लोगों को हिन्दू-मुसलमान और गाय-गोबर में फंसा दिया गया है। बाकी बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। काम के नाम पर किसी को शांति से नमाज भी नहीं पढ़ने देना है। बुना पुष्टि खबर देनी है। ओवैसी बोलेंगे नमाज पढ़ने के लिए एफआईआर हो गई अखबार / चैनल बोलेंगे ओवैसी ने गलत बयानी की। ये नहीं बताएंगे कि किसी चैनल ने पहले खबर दी थी ओवैसी उसी के हवाल से बोल रहे थे।
ऐसी हालत में एक पोस्ट में मैंने लिखा कि नरेन्द्र मोदी ने जनहित का ऐसा कौन सा काम किया है जिससे आम आदमी को एक पैसे का या एक क्षण का आराम हुआ। इसपर एक मित्र ने लिखा, (कॉपी-पेस्ट) “मैं अपने किसी काम को कराना चहता था, जिसके लिये पुराने सिस्टम वालों ने कहा कि पैसे तो लगेंगे ही और समय एक हफ्ता लगेगा, मजबूर था,अपने किसी दोस्त से चर्चा किया, उसे आन लाईन की जानकारी थी,आधार कार्ड का नम्बर लिया, बमुश्किल 20 मिनट में सर्टिफ़िकेट मेरी मेल आइ डी पर था, और टेंडर भर सका था, बहुत से काम है, जो जनता के हित में हैं, कुछ जनता को पसंद नहीं। कोई भी सरकार हो, उसके हिस्से में दोनो बातें आयेंगी- अच्छी और बुरी।”
मैंने मित्र से यही कहा कि ऑनलाइन की तकनीक अब आई है तो यह नेहरू जी कैसे उपलब्ध करा देते। तथ्य यह है कि इनकम टैक्स रिफंड अब अपने आप आ जाता है, समय पर आ जाता है। लेकिन इस बार बहुत लोगों से कह दिया गया कि रिफंड हैज फेल्ड। बाकायदा मेल भेजकर बताया गया जो पहले संभव ही नहीं था। लेकिन फायदा क्या हुआ? इसमें कहा गया है कि रिफंड फिर से जारी करने के लिए आग्रह किया जाए। कारण यह बताया गया था कि पैन खाते से लिंक्ड नहीं है। लिंक करा लिया गया। आग्रह कर दिया गया पर दो महीने हो गए। अब तो रिश्वत देने का उपाय भी नहीं है। अच्छा कहूं या बुरा? यह तब है जब मेरा नहीं, बहुत सारे लोगों का रिफंड पहले इन्हीं खातों में आता रहा है। अब फेल करने का मतलब? लिंक करवाकर दुबारा आग्रह करने पर भी नहीं आने का मतलब? कहने का मतलब यह है कि अब अलग तरह की परेशानी है लेकिन भक्तों को समय में आए तब ना?