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सियासत

धमकी या धौंस की जरूरत नहीं, सामने आइए

फेसबुक ब्लॉक करवा देने से सचाई की आत्मा नहीं मरती। फेसबुक पर अपनी उपस्थिति क्या कुछेक नीम पागलों की मर्जी से रहेगी ? लगातार धमकियां मिल रहीं हैं, सीधे और किसी के मार्फ़त- भड़ास वाले अपने यशवंत भाई की मेहरबानी से मामला संज्ञान में आया और कुछ संपादकों की मेहरबानी से आपके सामने फिर से उपस्थित हूँ– खुलकर बोलें ये नीम पागल कि उन्हें मेरे किस बात पर ऐतराज है ? हाँ इतना जान लें कि ज़िंदगी में खुरहुरी रास्तों को चुना है, अपना समाज बनाया तो रोटी और बेटी की कीमत पर नहीं। न किसी का खाया न किसी को खिलाया– यदि परदेस में किसी ने दो रोटियां और सालन मेरे लिए – परोसा भी तो इनकी कीमत नहीं होती। पीपल जड़ में समर्पित जल की कीमत मत मांगिये। अंडे लेकर जा रही चींटियों केलिए बिखेरे गए चीनी के दाने की कीमत मत मांगिये। आपकी श्रद्धा थी तो रोटी-पानी और शक्कर दिया या परोसा। कहीं तो सुसभ्य नागरिक और साहित्यकार वाला संस्कार दिखाईये। 

<p>फेसबुक ब्लॉक करवा देने से सचाई की आत्मा नहीं मरती। फेसबुक पर अपनी उपस्थिति क्या कुछेक नीम पागलों की मर्जी से रहेगी ? लगातार धमकियां मिल रहीं हैं, सीधे और किसी के मार्फ़त- भड़ास वाले अपने यशवंत भाई की मेहरबानी से मामला संज्ञान में आया और कुछ संपादकों की मेहरबानी से आपके सामने फिर से उपस्थित हूँ-- खुलकर बोलें ये नीम पागल कि उन्हें मेरे किस बात पर ऐतराज है ? हाँ इतना जान लें कि ज़िंदगी में खुरहुरी रास्तों को चुना है, अपना समाज बनाया तो रोटी और बेटी की कीमत पर नहीं। न किसी का खाया न किसी को खिलाया-- यदि परदेस में किसी ने दो रोटियां और सालन मेरे लिए - परोसा भी तो इनकी कीमत नहीं होती। पीपल जड़ में समर्पित जल की कीमत मत मांगिये। अंडे लेकर जा रही चींटियों केलिए बिखेरे गए चीनी के दाने की कीमत मत मांगिये। आपकी श्रद्धा थी तो रोटी-पानी और शक्कर दिया या परोसा। कहीं तो सुसभ्य नागरिक और साहित्यकार वाला संस्कार दिखाईये। </p>

फेसबुक ब्लॉक करवा देने से सचाई की आत्मा नहीं मरती। फेसबुक पर अपनी उपस्थिति क्या कुछेक नीम पागलों की मर्जी से रहेगी ? लगातार धमकियां मिल रहीं हैं, सीधे और किसी के मार्फ़त- भड़ास वाले अपने यशवंत भाई की मेहरबानी से मामला संज्ञान में आया और कुछ संपादकों की मेहरबानी से आपके सामने फिर से उपस्थित हूँ– खुलकर बोलें ये नीम पागल कि उन्हें मेरे किस बात पर ऐतराज है ? हाँ इतना जान लें कि ज़िंदगी में खुरहुरी रास्तों को चुना है, अपना समाज बनाया तो रोटी और बेटी की कीमत पर नहीं। न किसी का खाया न किसी को खिलाया– यदि परदेस में किसी ने दो रोटियां और सालन मेरे लिए – परोसा भी तो इनकी कीमत नहीं होती। पीपल जड़ में समर्पित जल की कीमत मत मांगिये। अंडे लेकर जा रही चींटियों केलिए बिखेरे गए चीनी के दाने की कीमत मत मांगिये। आपकी श्रद्धा थी तो रोटी-पानी और शक्कर दिया या परोसा। कहीं तो सुसभ्य नागरिक और साहित्यकार वाला संस्कार दिखाईये। 

मैं संबंधों का लाभ नहीं उठाता– तमाम विरोधों के बावजूद मान्यवर मोदी इसी से प्यारे और सम्मानीय लगते हैं कि उनका ‘आगे नाथ न पीछे पगहा’ वाली बात है। इस वजह से वह साहसी भी हैं और कर्मठ भी। उनके मन में लोभ नहीं है। मैं उसी भाव में जीता हूँ। खेद की बात है कि कुछेक दोगली मानसिकता वाले लोगों ने मुगालते में आकर मुझसे ‘अपना ये काम वो काम’ करवाने की भीष्म प्रतिज्ञा कर ली और खुद को घोषित किया कि उनके अंदर परीक्षित वाला वैराग्य भाव है। टीवी चैनल में मेरी कोई जान पहचान नहीं है कि किसी के शहजादे और शहजादियों को कहीं रखवा सकूँ– बावजूद इसके कि इन चैनलों के हेड्स या बेहद ख़ास या तो संस्थान में मेरे सीनियर रह चुके हैं या संस्थान के संगी हैं या मेरे बाद संस्थान में आये। इन सबसे मेरा सम्मानित दूरत्व है। क्योंकि मैं तो यही मानता हूँ कि महज इत्तेफाक था कि कुछेक महीनों केलिए संगी हो गया, अन्यथा वो कहाँ और मैं कहाँ।

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मुझे मेरी कृतियों से लोग जानते हैं– चुटकी भर या मुट्ठी भर। मैं किसी की किताब की समीक्षा नहीं छपवा सकता। क्योंकि नितांत व्यक्तिगत सम्बन्ध होने के बावजूद मैं खुद को उनके सामने किसी का एजेंट होने का ठप्पा नहीं लगवा सकता। अपनी कृतियों पर सबसे चर्चा होती है लेकिन उनसे मेरा आग्रह नहीं होता कि मेरी किताब की समीक्षा छाप दीजिये। तभी इनका मेरे लिए थोड़ा प्यार है और कुछ ज्यादा सम्मान है। 

मैं गल्प नहीं लिखता। कल्पनाओं में नहीं जीता। इसलिए जो लिखता हूँ– सच लिखता हूँ। इन्ही सचाइयों के साथ जीता हूँ और आगे भी जिंदगी ऐसे ही कटेगी। मेरा लेखन बनावटी नहीं। इसलिए जो भी है सौदा खरा खरा है। यही मेरी जमा पूंजी है। न कोई खेमेबाजी है न गिरोहबंदी है। सबको करीब से जानता हूँ– कौन किस बात पर मरता है। किसे कितना बड़ा पुरस्कार चाहिए। हाँ उनका लेखन सर्वोपरि है और मेरे लिए सम्मानीय भी। बाकि कृतियों का फैसला तो पाठक ही करता है। किताब का कलेवर और आयोजित चर्चाएं नहीं। 

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यदि कोई ऐसा मुगालता पाल ले कि सोशल मीडिया पर लिखा गया मेरा हर पोस्ट किसी को टारगेट करके लिखा जा रहा है तो वाजिव सी बात है कि यह उसकी सोच है। मेरे लिए कोई टारगेट नहीं है। मेरा टारगेट गरीबों की वह क्रोनिक गरीबी है जिसपर ये साहित्यकार शाब्दिक जुगाली करते हैं। यदि किसी भाई बंधू को इसमें मेरा कोई काम्प्लेक्स नजर आता है तो यह उसकी पीड़ा है। आज भारत सरकार के एक महत्वपूर्ण मिशन से जुड़ चुका हूँ– जहां ऐसी सोच-चिंतन केलिए कोई जगह नहीं है। 

और हाँ, कोई अपने पद और रूतबा का धौंस न ही दिखाए तो बेहतर है– बात निकलेगी तो बहुत ऊपर तक जाएगी।केंद्र की बात छोड़िये। राज्य में दो ही पद होता है– सीएम या डीएम।

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अमरेंद्र ए किशोर के एफबी वॉल से

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