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सियासत

भारत के अदृश्य प्रधानमंत्री अमित शाह ज्यादा शक्तिशाली और खतरनाक हुए : राणा अयूब

वाशिंगटन पोस्ट में चर्चित पत्रकार और लेखिका राणा अयूब की एक टिप्पणी प्रकाशित हुई है. इसका हिंदी अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने किया है, जिसे नीचे हूबहू प्रकाशित किया जा रहा है.


भारत के अदृश्य प्रधानमंत्री अमित शाह ज्यादा शक्तिशाली और खतरनाक हुए

राणा अयूब और उनकी गुजरात पर लिखी किताब

राणा अयूब

चुनावी मौसम खत्म होने से ठीक पहले, 17 मई को भारतीय पत्रकारों में यह चर्चा थी कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस आयोजित करेंगे। स्वतंत्र भारत के इतिहास में मोदी अकेले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने मीडिया के सवालों का सामना नहीं किया है। प्रेस कांफ्रेंस की जगह मोदी ने एकालाप किया। सवाल पूछने पर उन्होंने अपनी बाईं और अमित शाह को देखा जो उस समय सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे। मोदी ने कहा कि सभी सवालों के जवाब अमित शाह देंगे।

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शाह ऊपर चढ़ गए जैसा वे वर्षों से मोदी के लिए करते रहे हैं। वे भारत में दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं। पार्टी में कई लोग उन्हें अदृश्य प्रधानमंत्री कहते हैं। शाह मोदी की छाया है, निष्ठावान हमलावर, प्रवक्ता और अभियान के रणनीतिकार। वे अब गृहमंत्री हैं जो केंद्रीय मंत्रिमंडल के सबसे प्रभावशाली पदों में एक है।

54 साल के शाह 90 के दशक से मोदी के प्रति निष्ठावान हैं। इसकी शुरुआत गुजरात में नरेन्द्र मोदी के शुरुआती दिनों से हुई थी जब मोदी पार्टी के महासचिव होकर संतुष्ट नहीं थे — वे सत्ता चाहते थे। कुछ समय बाद, 2001 में, मोदी शाह की सहायता से गुजरात के मुख्यमंत्री बने। मोदी के मंत्रिमंडल में शाह ने एक युवा मंत्री के रूप में काम किया। उनके पास कई प्रभार थे। शाह का मिशन मोदी के मार्ग की सभी बाधाओं को खत्म करना था। ऐसा कि उनके कार्यालय को मुख्यमंत्री के “डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट” का कुख्यात तमगा मिला।

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इसके बाद से शाह शक्तिशाली होते चले आए हैं। वे भारत में सबसे विभाजक और द्वेषपूर्ण राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने श्रोताओं से कहा है कि भाजपा के खिलाफ वोट पर पाकिस्तान में खुशी मनाई जाएगी। उन्होंने मुस्लिम प्रवासियों को “दीमक” कहा है जिन्हें बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया जाना चाहिए। मुसलमानों को छोड़कर पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने वाला विधेयक पेश करने का आईडिया उनका था।

इससे भी ज्यादा तकलीफदेह यह है कि मानवाधिकारों को लेकर उनका इतिहास ज्यादा दागदार / संदिग्ध या बदलने वाला है। उनपर आतंकवादी करार दिए गए मुसलमानों की असाधारण हत्या (गैर न्यायिक) हत्या का आरोप है।

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2010 में मैंने इन हत्याओं की रिपोर्टिंग की थी। मैंने शाह के कॉल रिकॉर्ड और गुजरात राज्य की खुफिया एजेंसी की एक आंतरिक टिप्पणी पेश की थी जिसमें कहा गया था कि वे उन अधिकारियों से बात कर रहे थे जो पीड़ित को मारने के लिए ले गए थे। मेरी खोजी रिपोर्ट प्रकाशित होने के दो सप्ताह बाद शाह को गिरफ्तार कर लिया गया (उन्होंने आरोपों से इनकार किया और कहा कि वे “फर्जी तथा राजनीति से प्रेरित थे”)।

सीबीआई एक मुस्लिम, शोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी, कौसर बी की हत्या के सिलसिले में शाह की भूमिका की जांच कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई ने शाह को इस हत्या में मुख्य रूप से संदिग्ध और साजिशकर्ता माना था। साथ ही उनपर एक वसूली रैकेट चलाने वालों का मुखिया होने का भी आरोप था जिसमें अंडरवर्ल्ड के लुटेरे और राजनीतिज्ञ शामिल थे। ये आरोप इतने गंभीर थे कि सुप्रीम कोर्ट ने शाह को अपने ही प्रदेश में घुसने से प्रतिबंधित (तड़ीपार) कर दिया ताकि वे गवाहों को प्रभावित या धमका न सकें। इशरत जहां नाम की एक 19 साल की महिला के अपहरण और हत्या में भी शाह के खिलाफ जांच हुई थी। इसे अवैध रूप से रोका (कब्जे में रखा) गया था।

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शाह ज्यादा समय जेल में नहीं रहे — वे जल्दी ही जमानत पर बाहर आ गए। अनुमान था कि शाह के सितारे गर्दिश में जाने से मोदी भी नीचे आ जाएंगे। पर 2013 में मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। शाह को भाजपा का अध्यक्ष बना दिया गया। वे इस पद पर रहने वाले पार्टी के पहले नेता थे जिनपर आपराधिक मामले थे। मोदी सरकार जब सत्ता में आई तो गवाह मुकरने लगे, जजों ने सुनवाई करने से मना कर दिया (बचने लगे) और कुछ ही महीनों में शाह सभी आपराधिक आरोपों से बरी कर दिए गए।

2013 में शाह पर एक महिला की अवैध जासूसी का भी आरोप था। पत्राकारिता से जुड़े दो संगठनों ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से बात चीत का टेप पेश किया, जिसमें वे निगरानी रखने का निर्देश देते सुने गए। भाजपा का स्पष्टीकरण था कि लड़की के पिता ने सुरक्षा का आग्रह किया था पर पुलिस कोई आधिकारिक आग्रह या अधिकारपत्र पेश नहीं कर पाई।

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अपने विवादास्पद इतिहास के बावजूद शाह ने अब अपनी भूमिका मोदी के विश्वासपात्र की बना ली है। प्रधानमंत्री की मंजूरी के बिना वे नीतिगत निर्णय ले सकते हैं। 2014 में जब कांग्रेस पार्टी ने अपनी चुनावी संभावनाओं को लेकर हार मान ली तो शाह ने 2019 की तैयारियां शुरू कर दी थीं। भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए उन्होंने एक जोरदार सदस्यता अभियान की जोरदार शुरुआत की। दो साल की अवधि में भाजपा के वेरीफायड सदस्यों की संख्या 35 मिलियन (3.5 करोड़) से बढ़कर 110 मिलियन (11 करोड़) हो गई। शाह ने देश भर में राजनीतिक गठजोड़ बनाए हैं और हाल के चुनाव में भारी जनादेश हासिल करने में उसे इसकी सहायता मिली है।

कुछ लोगों का अनुमान है कि उनकी नजर 2024 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने पर है। फिलहाल, भारतीय संसदीय प्रणाली में सबसे महत्वपूर्ण विभाग, गृहमंत्रालय के मुखिया के रूप में वे न्याय किए जाने पर नजर रखेंगे और देश में शांति व सद्भाव बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होंगे।

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पर स्पष्ट रूप से वे सत्ता के दुरुपयोग के लिए पूरी तरह तैयार हैं। भारत में इस समय सबसे पोलराइज्ड (ध्रुवीकृत) राजनीतिक और सामाजिक क्षण हैं। देश को कुछ राहत देने की आवश्यकता है। पर मोदी और शाह केवल सत्ता हथियाना जानते हैं भले ही इसका मतलब संस्थाओं को कमजोर करना, मानवाधिकारों का उल्लंघन और कानून के नियम में विश्वास कम करना हो। भारत इससे ज्यादा खतरनाक हाथों में नहीं हो सकता था।

अनुवाद : संजय कुमार सिंह

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