-शंभूनाथ शुक्ल-
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्य नाथ सरकार ने प्रदेश के मान्यता प्राप्त पत्रकारों के लिए पाँच लाख का स्वास्थ्य बीमा शुरू किया है। यह एक अच्छी और स्वागत-योग्य पहल है। किंतु मान्यता प्राप्त पत्रकार को ही इस दायरे में लाना उन असंख्य श्रमजीवी पत्रकारों और स्ट्रिंगर्स की अनदेखी है, जो इस कोरोना काल में भी ख़बरें लाने के लिए जी-ज़ान से जुटे रहते हैं। क्योंकि एक लाख से अधिक बिक्री वाले अख़बार में अधिकतम पाँच या छह पत्रकार ही मान्यता पाने के अधिकारी होते हैं। किंतु इस प्रसार संख्या वाले किसी भी अख़बार में कम से कम 60 पत्रकार तो काम करते ही होंगे। सब एडिटर्स से लेकर न्यूज़ एडिटर तक।
इनके अलावा सारे रिपोर्टर भी मान्यता नहीं पा पाते। फिर उन असंख्य पत्रकारों की तो गिनती ही नहीं है, जो अनुबंध के तहत रखे जाते हैं। और रिमोट एरिया के वे पत्रकार जिन्हें सात-आठ सौ रुपए ही वेतन मिलता है, उन्हें स्ट्रिंगर कहते हैं। जबकि सबसे अधिक जोखिम में ये स्ट्रिंगर ही होते हैं। इन्हें भी कोई मान्यता नहीं होती। ऐसी विकट स्थिति में गिनती के पत्रकारों को यह सुविधा ऊँट के मुँह में जीरा जैसा है।
उत्तर प्रदेश में पहले से ही किसी भी अख़बार के हर पत्रकार को यह सुविधा रही है, कि वह और उस पर आश्रित उसका परिवार सरकारी अस्पतालों में मुफ़्त इलाज करा सकता है। उसे अस्पताल के प्राइवेट रूम का कोई खर्च नहीं देना पड़ता था। बस संपादक को यह लिख कर देना होता है, कि यह पत्रकार हमारे अख़बार में डेस्क या रिपोर्टिंग में कार्यरत है। किंतु कोई भी संपादक अब यह लिख कर नहीं देता। दूसरे सरकारी अस्पताल ख़ुद भी राम भरोसे चल रहे हैं।
लखनऊ के पीजीआई में भी यह व्यवस्था हुई, जबकि वहाँ इलाज कराने में काफ़ी खर्च आता है। इसके लिए सूचना विभाग लिख कर देता था, जो खर्च सरकार से रिइम्बर्स हो जाता था। पर सूचना विभाग उन्हीं को पत्रकार मानता है, जो मान्यता-प्राप्त हैं।
लेकिन यह एक खुला हुआ तथ्य है, कि उत्तर प्रदेश में अधिकांश मान्यता प्राप्त वे लोग हैं, जो ठेकेदारी करते हैं, दलाली करते हैं, दूध-दही बेचने का धंधा करते हैं। वे मान्यता प्राप्त करने के लिए ज़िला सूचना अधिकारियों से लेकर एलआईयू वालों को पटाए रखते हैं। वे लिखने-पढ़ने का काम करने के सिवाय सारा काम करते हैं। और लाभ उठाते हैं, मान्यता प्राप्त पत्रकारों को मिलने वाली सुविधाओं का।
कल जनादेश पर इसी विषय पर एक लाइव डिबेट रखी गई थी जिसमें बीबीसी के संवाददाता रहे वरिष्ठ पत्रकार श्री Ram Dutt Tripathi ने काफ़ी उपयोगी सुझाव दिए। Ambrish Kumar और राजेंद्र तिवारी ने कई चौंकाने वाली बातें बताईं।
मैंने भी ऑनलाइन और डिजिटल मीडिया तथा छोटे व मंझोले अख़बारों की दुर्दशा की बात रखी। उम्मीद है, कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार इस पर विचार करेगी।
कई अखबारों के संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल की एफबी वॉल से।