अखबार इनका सच क्यों नहीं बता रहे हैं?
संजय कुमार सिंह-
असंवैधानिक व्यवस्था को बहाल रखने की कोशिश करते लोग
देश जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक बताये गये इलेक्टोरल बांड के प्रति गंभीर नहीं है, देश के सबसे बड़े बैंक ने जब आवश्यक जानकारी देने के लिए समय मांग लिया और फिर डांट पड़ने पर सौंप भी दिया तो आज की खबर यह होनी थी कि माजरा क्या है। एसबीआई को जानकारी सार्वजनिक करने में क्या दिक्कत है या उसकी दिक्कत का कारण क्या है। जो जानकारी उसने अब दी है वह क्या है और पहले यही जानकारी क्यों नहीं दे रहा था और जो दिया वह क्या है, उससे क्या होगा। सुप्रीम कोर्ट क्या सार्वजनिक करना चाहता है और सरकार या एसबीआई क्या छिपाना चाहती है, और क्यों?
आज के अखबारों में यह सब तो नहीं ही है, आज की बड़ी खबरों में एक खबर है, डॉक्टरों को उपहार नहीं दे पायेंगी दवा कंपनियां (अमर उजाला)। इलेक्टोरल बांड के आगे यह खबर कितनी पिद्दी सी है सो आप समझ सकते हैं। इसके अलावा, आज की खबरों में सरकार ने विदेश सचिव को छह माह का सेवा विस्तार दिया है। उधर, घाटी में लोगों ने चुनाव साथ-साथ कराने की भी मांग की है। कश्मीर में पिछले चुनाव 10 साल पहले हुए थे और लोकसभा चुनाव की घोषणा से ऐन पहले चुनाव आयुक्तों के भी पद खाली हैं। चुनाव होने हैं, तीन लोगों का चुनाव आयोग है। एक के रिटायरमेंट के बाद से विकल्प नहीं मिला है (या ढूंढ़ा गया है)। दूसरे ने अचानक इस्तीफा दे दिया। अनिल मसीह जैसे लोग इस्तीफा नहीं देते हैं, किसी तरह अपने उम्मीदवार को जिता सकते हैं और फिर भी नियम है कि जो नियुक्त करेगा वह भी चुनाव लड़ेगा।
चुनाव से याद आया
कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश के अपने पूर्व मुख्यमंत्रियों, अशोक गहलौत और कमलनाथ के बेटों को उम्मीदवार बनाया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रमुख अदीश सी अग्रवाल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर मांग की है कि इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करें। उनका कहना है कि दान देने वाले कॉरपोरेट के नाम सार्वजनिक होने से उन्हें परेशान किया जा सकेगा। आरोप यह है कि लोगों को परेशान करके चंदा लिया गया है। नाम अगर गुप्त हैं तो सुप्रीम कोर्ट ने उनका खुलासा करने के लिए कहा ही नहीं है। वो तो देखा यह जाना है कि नाम गुप्त हैं कि नहीं और जो गुप्त बताये जा रहे हैं वो सरकार को मालूम हैं या हो सकते हैं कि नहीं। डाटा सार्वजनिक होने का लाभ मेरी नजर में यही है।
ऐसे में आज के अखबारों में जब यह खबर होनी थी कि इलेक्टोरल बांड से संबंधित जानकारी देने के लिए समय मांगने वाले एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग को डाटा सौंप दिया है तो आज खबर है कि भाजपा ने हरियाणा का मुख्यमंत्री बदल दिया। प्रस्तुति का अंदाज और संभव है तथ्य भी अलग हो पर मुख्य बात यह है कि सीएए कानून लागू होने के बाद नागरिकता पाने के लिए आवेदन करने के लिए एक पोर्टल भी लांच हुआ है और चुनाव से पहले सरकार अगर नागरिकता के लिए आवेदन ले रही है और देश की आबादी का एक बड़ा वर्ग सिर्फ धर्म के आधार पर आवेदन करने के योग्य नहीं है तो चुनाव पर उसका असर पड़ सकता है कि नहीं और नहीं भी पड़ता हो तो क्या यह समय ऐसे पोर्टल के लिए सही है? कौन तय करेगा?
सरकार ने संसद में कहा है, लोकसभा न्यायिक समीक्षा से मुक्त है। इसपर मैं पहले लिख चुका हूं। आज द टेलीग्राफ में इसपर फिर खबर है और अगर लोकसभा की स्वतंत्रता की बात करूं तो वहां बहुमत की चलती है और बहुमत ने डेढ़ सौ सांसदों को निलंबित करके कानून पास करा लिया है और इसमें एक कानून चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के नियम का भी है। अभी स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री चुनाव आयु्क्तों की नियुक्ति करेंगे और वही चुनाव करायेंगे। प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि वही जीतेंगे। ऐसे में क्या कैसे हो रहा है, समझना मुश्किल है, अखबार बताते नहीं हैं या कहिये नागरिकों की चिन्ता को ठीक से महत्व नहीं देते हैं और अखबारों में भी वही हो रहा है जो सरकार चाहती है।
सरकार लोकसभा में मनमानी करती है, मनमाने कानून बनाती है और चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट उसके अनुपालन से ज्यादा कुछ न करे। वह किसी तरह चुनाव जीत जाये ताकि जो कर रही है वह निर्बाध जारी रहे और इसमें प्रचारक व समर्थक कह रहे हैं कि बहुमत पूरा चाहिये ताकि संविधान बदला जा सके और संविधान बदलना क्यों जरूरी है। वैसे तो समझना मुश्किल है कि ऐसी सरकार को लोग समर्थन क्यों दे रहे हैं या दे भी रहे हैं कि नहीं और जीत का प्रधानमंत्री का भरोसा सच है या दिखावा पर जिस ढंग से भाजपा से जुड़े छोटे-बड़े नेता और उनके रिश्तेदारों के नाम भिन्न किस्म के अपराधों में आते हैं और जिस तरह दबाव और लालच में लोग दलबदल करते नजर आ रहे हैं उसमें कुछ भी सामान्य नहीं रह गया है।
इन सबके साथ तथ्य यह भी है कि सरकार न सिर्फ आर्थिक मोर्चे पर कमजोर है बल्कि एक तरफ महंगाई बढ़ रही है तो दूसरी ओर महंगी ट्रेन चल रही है, महंगी सड़कें बन रही हैं, रोजगार नहीं है लेकिन आंकड़े दुरुस्त बताये जाते हैं और सरकार किसी भी मोर्चे पर ढंग से सफलतापूर्व काम करती नजर नहीं आती है। आम जन के संपर्क में नहीं है और शिकायतों पर सुनवाई, कार्रवाई के मामले नहीं हैं तब भी हर तरह के भ्रष्टाचार और अपराध न सिर्फ जारी हैं बल्कि जिन्हें पकड़ा जाता है और जिनर शक होता है उनका संपर्क पार्टी के नेता (नेताओं) से होता है। ईडी सीबीआई विपक्षी नेताओं के मामले में कार्रवाई करती है, भाजपा के नेता उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हैं तथा भाजपा नेताओं के मामले में कोई फॉलो अप सुनने में नहीं आता है। यह महीनों, वर्षों से चल रहा है। फिर भी सब ठीक दिखाया-बताया जा रहा है।
2019 का चौकीदार
इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी एक खबर के अनुसार, छात्र वीजा पर लोगों को रूस युद्ध में भेजे जाने के मामले में मध्य प्रदेश की एक महिला निगम पार्षद अनिता मुकुट के बेटे सुयश मुकुट का नाम आ रहा है। अनिता पहली बार कॉरपोरेटर बनी हैं और धार नगर पालिका की सदस्य हैं। अखबार ने लिखा है कि संबंधित लोगों का पक्ष लेने की कोशिशें कामयाब नहीं हुईं और सुयश मुकुट के कथित सहयोगी तनुकांत शर्मा का ट्वीटर पर 2019 से खाता है और इसमें नाम से पहले ‘चौकीदार’ लगा है।