जतिन-
क्या फर्क है दोनो में?
असीम त्रिवेदी याद है किसी को?
कांग्रेस के समय के Political cartoonist थे।
इनपे 2012 में देशद्रोह लगा था, इसलिए नही की इन्होंने किसी मंत्री का कार्टून बना दिया, इसलिए क्योंकि इन्होंने “भारत माता” का 1 आपत्तिजनक कार्टून बनाया था।
जेल भी हुई और 4 हफ्ते में बेल भी। social मीडिया पे चिल्ल पों नही था ज़्यादा असीम को लेकर, लगभग सबको लगा था कि कांग्रेस गलत कर रही है। कोर्ट ने कांग्रेस को गरियाया, असीम को जमानत हुई और वो आज भी जिंदा हैं, किसी ने उनको मारा नही। कांग्रेस के समय में ऐसे कथित देशद्रोही उंगलियों पे ही थे।
अब आते हैं आज में।
यहाँ रोज़ नए नए लोगों पे देशद्रोह लगाया जा रहा है।
कार्टूनिस्ट, स्पीकर, जर्नलिस्ट, एक्टिविस्ट।
और वो देश के खिलाफ नही, 1 पार्टी के खिलाफ लिखते बोलते बनाते हैं। UAPA लगा दिया जाता है, 6-6 महीने तो फ़र्ज़ी जेल में रहते हैं, बिना FIR के।
जज क्या बोलेंगे ये भी अब जजों के नाम से पता चलता है, उनकी भी category हो गई हैं। जज भी रिटायरमेंट के बाद पार्टी जॉइन कर लेते हैं अब तो। और अब लोगों के खेमे बँट गए हैं जो आपस में लड़ते हैं कि कैसे 1 पार्टी के खिलाफ बोलने वाला देहद्रोही है या नही।
ये फर्क है।
फर्क ये भी है कि कांग्रेस का नाम लेने में हमको सोचना नही पड़ता, जबकि दूसरे का नाम लेना avoid करते हैं।
हमको वो भी गलत लगे थे और ये भी।
लेकिन अब हमको चमचा कहा जाता है और 70 साल की दुहाई दी जाती है।
किसी की सोच बदलने में कोई खास इंटरेस्ट अब है नही हमको। लेकिन इतनी समझ तो है ही की अगर के अगर कोई पूछे कि तुषार कपूर और आफताब सिवधसानी में बेटर कॉमेडी कौन करता है तो बता सकें।
अब इसका मतलब ये थोड़े न है कि हमको आफताब कॉमेडी रोल में पसंद है। लेकिन ये पता है कि कौन नही चाहिए।
कृष्णकांत-
एक नेहरू थे जिन्होंने कभी कार्टूनिस्ट शंकर से कहा था, ‘शंकर मुझे भी मत बख्शना’. एक आज के नेता हैं जो ट्विटर और फेसबुक से नोटिस भिजवाने से लेकर थानेदार से एफआईआर करा देते हैं.
मशहूर कार्टूनिस्ट शंकर और नेहरू के किस्सा आपने भी कहीं पढ़ा होगा. उस दौर के दिग्गज कार्टूनिस्ट केशव शंकर पिल्लई के कॉलम का उद्घाटन था. शंकर ने नेहरू से कहा कि वे उनके कॉलम का उद्घाटन करें. इस पर नेहरू ने कहा कि उद्घाटन तो मैं जरूर करूंगा, लेकिन एक शर्त पर कि आप हमें भी न बख्शें.
शंकर ने उनको निराश नहीं किया. द प्रिंट में छपे रशेल जॉन के एक आर्टिकल के मुताबिक, शंकर ने नेहरू पर करीब 4000 कार्टून बनाए. कहते हैं कि नेहरू अपनी बेटी इंदिरा को जो चिट्ठियां लिखते थे, उनके साथ शंकर के कार्टून भी भेजते थे. शंकर बड़ी निर्दयता से नेहरू पर कार्टून बनाते थे लेकिन नेहरू इसके लिए उनकी तारीफ करते थे. वे नेहरू की निर्दयता पूर्वक आलोचना करके भी उनकी प्रशंसा पाते रहे.
एक बार नेहरू ने कहा, “शंकर के पास एक दुर्लभ उपहार है. वे एक कलात्मक कौशल के साथ, द्वेष या दुर्भावना के बिना, सार्वजनिक मंच पर खुद को प्रदर्शित करने वालों की कमजोरियों को उभारते हैं. हमारे दंभ का पर्दा बार-बार हट जाना अच्छा है.”
बाद में शंकर के बनाए कार्टून ‘डोंट स्पेयर मी, शंकर’ शीर्षक से प्रकाशित हुए.
कार्टूनिस्ट मंजुल को कुछ दिन पहले ट्विटर का नोटिस आया कि सरकार को उनके ट्विटर अकाउंट से आपत्ति है. उधर तेलंगाना में एक कार्टूनिस्ट पर दर्ज मुकदमे में कोर्ट का फैसला आया. इन दो घटनाओं से मुझे नेहरू और शंकर के बारे में मशहूर कहानियां याद आईं.
ये वही नेहरू हैं जिन्होंने नवंबर 1957 में मॉडर्न टाइम्स में अपने ही खिलाफ एक जबर्दस्त लेख लिखा. लेखक का नाम था चाणक्य और लेख का शीर्षक था ‘द राष्ट्रपति’. इस लेख में जनता को नेहरू के तानाशाही रवैये के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा गया था कि नेहरू को इतना मजबूत न होने दो कि वो सीजर हो जाए. नाम के बाद में इसका खुलासा हुआ कि नेहरू हर तरफ अपनी तारीफ और जय-जयकार सुनकर उकता चुके थे. उन्हें महसूस हो रहा था कि बिना मजबूत विपक्ष के लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं होता. क्या आज आप ऐसी कल्पना कर सकते हैं?
देश की आजादी के लिए एक दशक तक जेल काटने वाले नेहरू को अपनी आलोचना से आपत्ति नहीं थी. आज देश के लिए नाखून कटाए बगैर देश को लूटने वालों को अपनी आलोचना से आपत्ति है. क्योंकि उन्हें लोकतंत्र नहीं चाहिए. उन्हें लगता है कि देश जनता का नहीं, उनके बाप की जागीर है.
शंकर आज जिंदा होते तो या तो मुकदमे झेल रहे होते या ट्विटर की नोटिस का जवाब दे रहे होते.
वीरेंद्र यादव-
कार्टूनिस्ट को सजा दी जारही है, कवि को लिटरेरी नक्सल का खिताब दिया जा रहा है, ‘लेफ्ट’ और ‘लिबरल’ की शत्रु छवि गढ़ी जा रही है.जेएनयू की छात्राएं देवांगना और नताशा राष्ट्रद्रोह के आरोप में तिहाड़ जेल में कैद रहकर जेल साहित्य रच रही हैं. भीमां कोरेगांव अब अंग्रेजों के समय के ‘मेरठ कांस्पिरेसी केस’ की याद दिला रहा है. इसलिए मामला ‘इज इक्वल टू’ करते हुए यह याद दिलाने का नहीं है कि पहले की सरकारें भी ऐसा करती रही हैं. पानी सिर के ऊपर होने को है. सांस की पनाह मांगिए मित्र!