विश्वेश्वर कुमार-
जी हां हमलोग अमर उजाला के तेजस्वी निदेशक श्री अतुल माहेश्वरी जी को अतुल भाई साहब ही कहते रहे। आज उनकी पुण्यतिथि है। मैं उन सौभाग्यशाली पत्रकारों में हूं जिनको उनके मार्गदर्शन और सानिध्य में काम करने का सौभाग्य मिला है। अतुल भाई साहब अखबार के मालिक से बढ़कर सही अर्थों में संपादक थे। मालिक ऐसे कि प्रेस में अखबार का बंडल बांधने वाले सहकर्मी को भी वे नाम से जानते थे। कोई भी सामने दिख जाय, नाम से बुलाकर जरूर कुशल क्षेम पूछते थे।
पहला साक्षात्कार:
तारीख याद नहीं, 1986-87 की बात है। तब मैं दैनिक जागरण मेरठ में सीनियर रिपोर्टर था। राजेंद्र त्रिपाठी से गाढ़ी मित्रता के नाते कभी कभी अमर उजाला आना जाना होता था। एक रात दैनिक जागरण की आई टेक मशीनें खराब हो गई। तब अखबारी दुनिया में हैंड कंपोजिंग से उठ कर कंप्यूटर का नवीन प्रयोग शुरू हुआ था। कंप्यूटर रूम में सबको जाने की अनुमति नहीं होती थी, नियम था जो लोग अंदर काम करते थे वे जूते उतार कर अंदर जाते थे। उस जमाने में एसी सिर्फ कंप्यूटर रूम में होता था। जागरण में आई टेक मशीनें बंद हो गईं तो दिल्ली खबर दी गई, वहां से सूचना मिली की इंजीनियर दूसरे दिन ही आ सकेगा। संकट यह कि अब अखबार कैसे निकले। हैंड कंपोजिंग की व्यवस्था पूरी तरह खत्म हो गई थी। इलेक्ट्रिक टाइप मशीनें बाजार से मंगवाई गईं, कुछ राष्ट्रीय खबरें उसपर टाइप की जाने लगीं। हमारे एक साथी नौनिहाल थे जो अपनी सुंदर बारीक लिखावट के लिए प्रसिद्ध थे। सीधे पेज पर उन्होंने हाथ से खबरें लिखनी शुरू की। प्रयास था कि किसी तरह छह पेज भी बन जाय।
बड़ा संकट सिटी पेज को लेकर था। रात में 12.30 बजे मैं अमर उजाला के मोहकमपुर प्रेस पहुंचा। राजेंद्र त्रिपाठी सिटी के पेज बनवा रहे थे। प्रोसेसिंग विभाग में दो लड़के थे जो पहले जागरण में काम कर चुके थे। पुरानी पहचान के बदौलत अमर उजाला से दो सिटी न्यूज के दो पेज (निगेटिव बन जाने के बाद) छिपाकर ले आया। तय हुआ कि फोलियो बदलकर सीधे वही पेज छाप दिए जाएं, हां जितनी खबरों में अमर उजाला ब्यूरो और बाई लाइन है उसे खुरच कर साफ कर दिया जाय। हमलोग राहत में थे कि इज्जत बची, अखबार छप जाएगा। सुबह अखबार छपा, कोई शिकायत नहीं कि खबरें कई तरह के अक्षरों में थीं। लेकिन चोरी पकड़ी गई, दो तीन खबरों में अमर उजाला ब्यूरो ही छप गया।
ठीक 9.00 बजे के करीब लैंड लाइन पर अतुल भाई साहब का फोन आया। नाराजगी का एक भी शब्द नहीं। पूछने लगे रात में क्या मशीन खराब हो गई थी। मैंने बताया कि हां कंपोजिंग की मशीनें बंद हो गईं थीं। फिर मैंने चोरी छिपे पेज ले जाने की बात भी खुद ही स्वीकार कर ली, बोले कोई बात नहीं। मशीन खराब थी तो क्या हुआ, बता दिए होते हमारे यहां से कंपोजिंग करवा लेते। कभी हमारी मशीनें भी खराब हो सकती हैं। ऐसे थे अतुल भाई साहब…। सीधे जागरण के मालिक धीरेंद्र मोहन से भी शिकायत कर सकते थे लेकिन नहीं उन्होंने मुझे अहसास कराया।
कानपुर की यादें:
2002 की बात है। लखनऊ में मायावती की बड़ी रैली थी, वापसी में चार बाग स्टेशन पर भगदड़ मच गई जिसमे 28 – 30 लोगों के मारे जाने की खबर थी। मैं लखनऊ एडिशन का पहला पेज बनवा रहा था। अतुल भाई साहब का फोन आया… खबर कैसे लगा रहे हो। बताया कि चार कालम फोटो के साथ आठ कालम में दे रहा हूं। बोले फोटो पांच या छह कालम में कर सकते हो क्या। और फोटो के साथ दो साइड स्टोरी भी पेज वन पर लगाओ, ह्यूमन स्टोरी। कल यही पढ़ा जायेगा। हमने पेज पर जगह कम होने की बात बताई। नीचे हाफ पेज से थोड़ा बड़ा 25 बाई 8 का विज्ञापन लगा था। बोले कहां का एड है, मैंने बताया कि डिटर्जेंट का विज्ञापन है। सीधे बोले हटा दो विज्ञापन, डेट वैल्यू नहीं है, कल भी छप जाएगा। विज्ञापन हटवा दिया मैंने। खबरें छपी… लखनऊ के लोकल अखबारों में भी उतना दमदार पेज 1 नहीं बना था। सुबह तारीफ तो खूब हुई लेकिन विज्ञापन मैनेजर मुझसे चिढ़ गए। यूनिट हेड कमलेश दीक्षित (अब दुनिया में नहीं हैं) ने बात घुमाकर कही, मित्र विज्ञापन हटवाने से पहले एक बार श्रीश जी ( विज्ञापन प्रबंधक ) से बात कर लिया करो। आज वे राजुल माहेश्वरी को बताने जा रहे। मैंने बताया कि रात में पेज बनाते समय अतुल भाई साहब ने विज्ञापन हटाने को कहा था। दीक्षित जी चुप हो गए, बोले तब कोई बात नहीं।
आज सोचता हूं भगदड़ जैसी निगेटिव खबर छापने के लिए विज्ञापन हटाने की बात कोई सोच भी नहीं सकता। एक दो नहीं, अतुल भाई साहब की अनगिनत यादें आज भी ताजी हैं। वे मालिक से कहीं बढ़कर सच्चे अर्थों में पत्रकार और संपादक थे। उनकी मीटिंग से पहले हमलोग आपस में कहते थे, जहां गलती होगी वहीं उनकी नजर जाती है। … नमन