अशोक पांडे-
बूढ़े और शक्तिहीन मुग़ल बादशाह शाहजहां को उसके बेटे औरंगजेब ने कैद कर दिया था. कैद में शाहजहां की सबसे बड़ी औलाद जहांआरा उसके साथ रही. अवनींद्रनाथ टैगोर द्वारा 1902 में बनाई गई ‘द पासिंग ऑफ़ शाहजहां’ शीर्षक इस मिनिएचर पेन्टिंग में इस मुग़ल बादशाह के आख़िरी दिनों की कैफ़ियत को दर्ज किया गया है.
कमरा तकरीबन ख़ाली है. मृत्युशैय्या पर लेटा बादशाह हसरत के साथ बरसों पहले दिवंगत हो चुकी अपनी बेग़म मुमताज महल की उस निशानी को देख रहा है जिसे बनवाने में उसने अपने जीवन का लंबा हिस्सा खपा दिया था. उसके पैरों के नज़दीक उदास बैठी राजकुमारी जहांआरा बेगम के कपड़े बेहद साधारण हैं और उसने कोई भी शाही आभूषण नहीं पहने हैं. दोनों की सेवा-टहल करने को कोई नौकर-चाकर भी नहीं हैं.
रात का दृश्य है. हरे-सलेटी आसमान पर गहराते बादलों में आधा ढंका चन्द्रमा कमरे की उदासी और बादशाह के जीवन के खालीपन का प्रतिविम्ब बना रहा है. यमुना के किनारे खड़ा ताजमहल इस पेंटिंग का इकलौता चमकीला हिस्सा है – एक लाचार बादशाह के उजाड़ हो चुके जीवन के रेगिस्तान के ऊपर किसी लाइटहाउस की तरह झिलमिल करता हुआ. अभी उसने संसार भर के लिए उम्मीद और मोहब्बत का दस्तावेज बनना बाकी है.
अमूमन मुगल मिनिएचर पेन्टिंग्स में भावनाएं व्यक्त नहीं होती थीं. राजाओं-रानियों के पोर्ट्रेट, दरबारों, युद्धों और शिकार अभियानों के दृश्य या चिड़ियों-पेड़ों का संसार जैसी बोझिल चीज़ें उनकी विषयवस्तुएं बना करती थीं. इन चित्रों में दिखाई जाने वाली चीज़ों की डीटेलिंग पर कलाकार बहुत मेहनत करते थे अलबत्ता उन्हें देख कर किसी प्रकार के भाव नहीं उमड़ते.
इस लिहाज़ से यह चित्र एक अद्वितीय मास्टरपीस है. इसे देर तक देखेंगे तो आपके भीतर घनघोर अवसाद, करुणा, प्रेम, दुःख और आनन्द के हज़ारों मिलेजुले रंगों का एक समुन्दर उमड़ना शुरू होगा. एक मीठी फांस गले में देर तक अटकी रहेगी.