Rituparna : मालूम नहीं कि कहना चाहिए या नहीं लेकिन मैं इससे रिलेट कर पाई. मेरी एक परिचिता की बेटी ने जिनके यहाँ बाबा नागार्जुन अक्सर ठहरते थे, उसने तीसेक बरस पहले मुझे ऐसा ही कुछ बताया था. यह बात उसने अपनी माँ से भी नहीं बताई क्योंकि उसे लगता था कि बाबा की जो छवि है उसकी वजह से उसके कहन पर शायद कोई आसानी से विश्वास नहीं करेगा. इस घटना के बाद उस लड़की के मन में साहित्य से जुड़े लोगों के प्रति जो नापसंदगी थी, मैं उससे भी वाकिफ़ थी.
Manika Mohini : नागार्जुन पर आरोपों / बचाव का सिलसिला जारी है, इसी संदर्भ में मुझे एक ऐसी ही अप्रिय घटना याद आई है जिसका ज़िक्र पहली बार कर रही हूँ। मैं भी शायद 7-8 साल की रही होऊँगी। पुरानी दिल्ली में पिता का घर था, अभी भी है। हमारे घर के सामने एक पुजारी जी रहते थे। वे अच्छी तरह चल फिर नहीं सकते थे। बहुत बूढ़े थे। उनकी उम्र निश्चित नब्बे साल की होगी क्योंकि कुछ साल बाद उनके देहांत पर सुना कि सौ साल के थे। उनका कमरा नीचे के खन में गली में खुलता था। एक दिन हम बच्चे गली में खेल रहे थे। मैं उस समय फ्रॉक पहनती थी। उन्होंने मुझे अंदर बुलाया, मैं चली गई। उन्होंने अपने मंजे पर बैठने के लिए कहा, मैं बैठ गई। फिर मेरे आगे खड़े होकर (वो ठीक से खड़े नहीं हो पा रहे थे) बोले, ‘अपना जांघिया उतार, मैं तुझे एक खेल दिखाता हूँ।’ मैं तुरंत उनके घेरे से निकली और बाहर गली में आ गई। शायद लड़कियों में यह समझ स्वतः होती है कि यह बात सही नहीं, क्योंकि मुझे पहले कभी वैसी स्थिति नहीं आई थी, न माँ-बाप ने कभी समझाया था कि ऐसा होने पर ऐसा करना। यह एक तरह का सेक्सुअल असॉल्ट ही था ना? अपराधी बनने के लिए पूरा सेक्स करना आवश्यक नहीं है। इतने मात्र से व्यक्ति अपराधी हैं। यह किस्सा मैंने रीस में नहीं सुनाया कि उसने बताया तो मैं भी बताऊँ। नहीं। असल में गुनगुन की पोस्ट की सचाई पर सवाल उठ रहे हैं कि सच था तो अब तक क्यों नहीं बताया? और 80 वर्ष का पुरुष कामुक नहीं होता। अजी जनाब, कामुकता, लम्पटता, desire, चाहना, इन सब के लिए कोई उम्र तय नहीं है। मैं उस पोस्ट की सचाई को, जो पोस्ट मैंने भी शेयर की है, स्वीकार करती हूँ। कोई लड़की स्वयं को बेवजह अनावृत नहीं करती। Not to be shared.
Samar Anarya : ये लीजिए! नागार्जुन की ‘लफ़ंगई’ पर किसी का 2 साल पहले लिखा लेख मिल गया! बच्चियों को ‘जबरन’ चूम अपनी बूढ़ी हड्डियों में जान ले आने वाले नागार्जुन का! अब जबरन चूमना यौन उत्पीड़न नहीं तो क्या है?
‘महिलाएं और लड़कियां उनके लिए एक विचित्र खिंचाव का सबब थीं! उनके प्रति उनका व्यवहार संतई और थोड़ी-थोड़ी लफंगई दोनों ही तरह का होता था!’।
‘यह बात स्वयं बाबा ने ही कुछ वाचाल लड़कों के बीच बतायी है। उनकी एक सुंदर बेटी है जिसे बाबा खूब दुलार करते हैं। बाबा कभी-कभार उसके गालों को चूमते भी हैं। बाबा ने बताया कि इस तरह उनके बुढ़ापे की हड्डी में थोड़ी जान आ जाती है।’
जी, दो साल पहले!
Rangnath Singh : हिन्दी साहित्य के लिए कल एक काला दिन था। कल हिन्दी और मैथिली के अग्रणी प्रगतिशील कवि नागार्जुन पर सात साल की बच्ची का रेप करने का आरोप लगा। आरोप पीड़िता ने ख़ुद लगाया है जिनकी उम्र अभी करीब 35 वर्ष है। कुल मिलाकर नागार्जुन एक पिडोफाइल थे। विकट संयोग है कि पिछले कुछ हफ्तों से मैं रोज एक अग्रणी प्रकाशन से आयी नागार्जुन की जीवनी पढ़कर रिव्यू करने के लिए दिन नियत कर रहा था। अब शायद वो किताब मुझसे न पढ़ी जा सके। नागार्जुन जीवित नहीं हैं लेकिन उनकी कविताओं-किताबों की स्मृतियाँ मेरे अंदर जुगुप्सा जगा रही हैं। एक लाइन में कहूँ तो मैं नागार्जुन को लेकर बेहद शर्मिंदगी और अपराधबोध से भर गया हूँ।
Ravindra Tripathy : सदमे की हालत में हूं। जब से नागार्जुन के कुकृत्य के बारे में पढ़ा है। अब शायद कभी उनकी कविता पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाऊंगा। उन्होंने हिन्दी कविता और साहित्य को जबरदस्त क्षति पहुंचाई है। अपना सारा लिखा उन्होंने खुद नष्ट कर दिया और उन सबके वजूद के बड़े हिस्से को भी जो उनके लिखे के कायल और प्रशंसक थे। इससे अधिक कुछ लिखना अभी संभव नहीं।
Kanupriya : कवि नागार्जुन के ख़िलाफ़ जो कल पीड़िता की पोस्ट आई है उसमें timng को लेकर सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि ये समय ठीक नही था, इसका विपरीत पक्ष फ़ायदा उठा सकता है. मेरा कहना है कि ऐसे मामलों में हर समय ठीक है, ये समय भी. किस बात का डर है? यही कि हमारे नायकों के भरम टूट रहे हैं? टूटने दीजिये. Celebritism इस दोषपूर्ण व्यवस्था का ही एक अंग है. दीपिका पादुकोण के बाहर निकल आने से बहुत से लोगों की आवाज़ को बल मिलेगा ठीक बात है, मगर वो निकल कर आई क्योकि जनता पहले ही से मज़बूती से अपना पाँव जमाए खड़ी थी. ये जनता का बल था कि CAA के पक्ष में वोट करके आईं पर्टियाँ अपने अपने राज्यो में उसे लागू करने के लिये मुकर गईं. बहुत से तथाकथित सेलिब्रिटी अपने अपने खोलो में मुँह छुपाए बैठे हैं, खुलकर बोलने की हिम्मत तक नही है. Celebritism के मिथ टूट रहे हैं, नायकों के बुत टूट रहे हैं, लीडर्स की कायरता दिख रही है, दिखने दीजिये, जनता अब उधार के नायकों पर आश्रित नही रही, वो खड़ी हो रही है अपने हक़ के लिये आवाज़ उठा रही है, यही महत्वपूर्ण है, क्योकि असली नायक कोई है तो जनता ही है.
Samar Anarya : नागार्जुन का बचाव करने उतरे Anil Janvijay का कुल बचाव ये था कि “लेकिन 1991 में तो नागार्जुन घूमना-फिरना बन्द कर चुके थे और बढ़े हुए अण्डकोष की बीमारी की वजह से चलने-फिरने से लाचार हो चुके थे। वे घर पर चारपाई पर पड़े रहते थे।” इसलिए उन पर दुष्कर्म का आरोप झूठा है!
उनके दोस्त ने याद दिलाया कि 1993 में आधार प्रकाशन की किताबों का लोकार्पण करने आये थे। मतलब चल फिर सकते थे।
राजीव मित्तल ने जोड़ा- नहीं अनिल..बाबा 1995 की जनवरी में मंडी हाउस में हिमा कौल कि मूर्ति कला की प्रदर्शनी में मिले थे.. जानकारी के लिए।
प्रतिमा सिंह ने आगे बताया- हमारी को गाइड नागार्जुन को पढ़ाते हुए बताई थी कि उनके कॉलेज में (कोलकाता में) वो 1997 में आए थे और शायद उनके किसी परिचित के घर रुके भी थे। बाद में उसी कॉलेज में किसी काम से गयी थी तो दीवार पर उनकी तस्वीर लगी थी 1997 की टीप के साथ।। अब या तो वो तस्वीर और मैंम की याद झूठी होगी या ये महाशय !!
अभी जेएनयू के अज़ीज़ सीनियर (ज़रा सा- रहा दोस्ताना ही)
Zahidul Haque ने जोड़ा-
94-96 के दरमियान बाबा JNU आते थे, हमलोगों के एक सीनियर जो मेरे बड़े भाई हैं उनके रूम में रुके थे, ऐसा मुझे मेरे बड़े भाई ने ही बताया जो अभी देश की एक बड़ी ही अच्छी यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्रोफेसर हैं.
जेएनयू में सीनियर- माने कम से कम सेकंड फ़्लोर- माने सीढ़ियाँ चढ़कर!
और ये सब तब जब बलात्कार और यौन उत्पीड़न का फ़र्क़ नहीं समझ रहे ये संभाव्य बलात्कारी- पोटेंशियल रेपिस्ट!
यौन कुंठितों की सबसे बड़ी पहचान है ‘अन्य’ स्त्रियों का हाँका करते हुए ‘अपनी’ स्त्रियों को सात दीवालों के अंदर क़ैद करके रखना!
आप उनकी तस्वीरें अन्य स्त्रियों के साथ देखेंगे- ‘उनकी’ स्त्रियों की तस्वीर कहीं नहीं देखेंगे!
आप उनको अन्य स्त्रियों को चरित्र प्रमाणपत्र देते हुए देखेंगे- ‘उनकी’ स्त्रियों को किसी के साथ नहीं- उनके बाबा नागार्जुन के साथ भी नहीं!
इस आदतन यौन अपराधी Anil Janvijay की दीवाल छान मारिए- और स्त्रियों के साथ कहकहे लगाते हुए मिलेगा, इसके घर की कोई स्त्री दिख जाय तो बताइएगा!
और ये आदमी प्रगतिशील की पूँछ बनता है- इसके आगे वो शब्द जोड़ लीजिएगा जो तमाम वरिष्ठों साथियों कनिष्ठों सबने न लिखने का आदेश दिया/आग्रह किया है!
सौजन्य : फेसबुक
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