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देश के साथ बदल गई प्रेस कोन्फ्रेंस भी!

श्रीगंगानगर। काफी समय पहले सर्किट हाउस मेँ कांग्रेस की पीसी [प्रेस कोन्फ्रेंस] थी। मैं पहुंचा तो मीटिंग हॉल के अंदर तीनों तरफ कांग्रेस नेता बैठे थे, खचाखच के अंदाज मेँ। प्रेस के लिए बीच मेँ कुर्सियाँ। इतने नेताओं के बीच पीसी! मैंने बैठने से इंकार कर दिया और बाहर आ गया। साथी आने लगे। मुझसे पूछा गया। मैंने बता दिया कि अंदर ये स्थिति है। मुझे इस स्थित मेँ पीसी अटेण्ड नहीं करनी। तो! मैंने कहा चलो तीन पुली। सब मीडिया कर्मी तीन पुली। कांग्रेस के नेता बैठे रहे। मीडिया वाला कोई नहीं।

खैर, कुछ समय बाद अनेक कांग्रेस नेता तीन पुली आए। उसके बाद पीसी एक होटल मेँ हुई, चंद नेताओं की मौजूदगी मेँ। कुछ समय पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का आना हुआ। रात को वे सर्किट हाउस पहुंचे। मीटिंग हॉल कांग्रेस नेताओं से ठसाठस। मैंने उनसे संवाद का आग्रह किया। कई नेताओं ने मेरा परिचय दिया तो वे सहज रूप से तैयार हो गए। मुझे बैठने को कहा गया। मैंने विनम्रता से कहा कि संवाद यहां सबके के बीच नहीं अलग से होगा। कई नेता थोड़े असहज हुए। परंतु सचिन पायलट उठ के कमरे मेँ आ गए। पत्रकारों ने उनके साथ संवाद किया।

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तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया। देश लगातार बदल ही रहा है तो बीजेपी की पीसी भी नए अंदाज मेँ होना स्वाभाविक बात है। इस पीसी मेँ बीजेपी के बीस नेताओं के साथ सांसद के पीए [निजी सचिव] सीता राम बिशनोई भी बैठे। जबकि वहां मौजूद दूसरे मंत्रियों और विधायक के पीए खड़े थे। पता नहीं इतने अनुभवी सांसद निहाल चंद ने अपने पीए को इस बाबत बताया भी या नहीं कि पीए का नेताओं के साथ बैठना गरिमा के अनुकूल नहीं होता। वह भी सरकार के मंत्रियों की पीसी मेँ। पीएस [निजी सचिव] भी ऐसे नहीं बैठते जैसे निहाल चंद के पीए बैठे। पीएस हो या पीए किसी सवाल के संदर्भ मेँ अपने बॉस की हेल्प के लिए मौजूद तो जरूर रहते हैं। लेकिन अधिकार पूर्वक नेताओं के साथ बैठते नहीं, बोलना तो बहुत दूर की बात है।

वर्षों से राजनीति कर रहे रमेश राजपाल ने सोफ़े के हत्थों पर बैठ कर खुद को सबसे ऊंचा कर लिया। लिटरेरी और क्षेत्र के वरिष्ठ राजनेता के बड़े बेटे को इतना ज्ञान तो होगा ही कि तन को ऊंचा कर लेने से कोई बड़ा नहीं होता। पैरों के नीचे स्टूल रख को खुद को बड़ा बताने और बनाने वाले ना जाने कितने बड़े दही मेँ पड़ें हैं। आप बीजेपी की टिकट मांग रहे हों तो आपका व्यवहार मेँ संजीदगी होनी चाहिए। ऐसा ना हो कि दूसरे मज़ाक बनाएं। वह भी मात्र इस बात के लिए कि मीडिया मेँ फोटो छपेगी।

इस पीसी में हैरानी ये भी थी कि बीजेपी के प्रवक्ता राजकुमार सोनी एक साइड में बैठे थे। मीडिया कोआर्डिनेटर मीडिया के सामने नहीं थे। बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश पदाधिकारी रमजान अली चोपदार भी कोने मेँ थे। अध्यक्ष हरी सिंह कामरा तभी बोले जब सांसद के पीए के प्रेस नोट की बात हुई। इस पीसी मेँ सत्ता का संगठन पर कब्जा साफ़ दिखाई दिया। यूं कहें कि संगठन सत्ता की झोली मेँ खामोश बैठा हुआ था। हमारी टीम कौनसी कम थी। सीनियर जर्नलिस्ट प्रश्नों की मार्फत पीसी को लीड करने की बजाए उस पर कब्जा करने की कोशिश मेँ थे।

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जब प्रश्न समाप्त हो गए तो खड़े हो गए, पीसी खत्म करने के लिए। लेकिन सबको पता है कि पीसी तब खत्म होती है जब प्रेस को आमंत्रित करने वाला कहे, बस हो गया! या फिर पूरी प्रेस निर्णय करे कि चलो छोड़ो! मुझे मालूम है कि पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में हिंदुस्तान विश्व के मुक़ाबले बहुत निचली पायदान पर है। ताजा रिपोर्ट में हिंदुस्तान दो पायदान और नीचे उतरा है, परंतु फिर भी लिख रहा हूँ। कोई मार देगा तो कम से कम बेटे को सरकारी नौकरी तो मिल ही जाएगी और साथ में कुछ मुआवजा भी। इससे अधिक तो और अब लिखूं भी क्या! दो लाइन पढ़ो-

तुझे अमीरी का गुरुर है
मुझे फकीरी का सुरूर है।

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गोविंद गोयल राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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