डॉ अबरार मुल्तानी-
बदल रहे हैं पिता… आज से कुछ साल पीछे जाएं या एक दो पीढ़ी पीछे के लोगों से ही पूछा जाए तो उनके लिए पिता अनुशासन, भय और सम्मान का मिला-जुला व्यक्तित्व था या है। लेकिन अब पिता का व्यवहार बदला है और प्रतिक्रिया स्वरूप बच्चों का व्यवहार भी उनके प्रति बदल गया है।
अब पिता पहले से ज्यादा अपना प्रेम प्रदर्शित करने लगे हैं। मैं अपने क्लीनिक पर आए पिताओं को देखता हूँ तो वे पहले के पिताओं से भिन्न हैं।
पहले के पिता अपने बच्चों से एक दूरी बनाकर रखते थे, उन्हें प्रेम से गोद में उठाकर नहीं लाते थे, उनकी समस्याओं को सुनाते हुए भावुक नहीं होते थे और न ही उनकी समस्याओं को सुनाते हुए रोने लगते थे …लेकिन अब यह बदल गया है।
आदिमविकास के दौरान पिता का काम परिवार की सुरक्षा और भोजन की व्यवस्था करना था और माँ का काम भोजन को पकाना और बच्चों की परवरिश करना। बच्चों की देखभाल और प्रेम माँ का काम था। यह दोनों ही अपने काम अच्छी तरह निभा रहे थे। यह विकासक्रम लाखों सालों तक चला लेकिन औद्योगिक क्रांति और फिर संचार क्रांति ने सब कुछ बदल दिया।
अब पिता के साथ साथ माँ भी कमाने लगी है और पुरुषों के एकक्षत्र प्रभाव वाले क्षेत्रों में महिलाओं ने भी धमाकेदार प्रवेश कर लिया है। अब वे भी अच्छी खासी तनख्वाह पा रही हैं कई महिलाओं की तनख्वाह तो पतियों से भी ज्यादा है। इसलिए घर का माहौल बदला है।
इस बदलाव को कई पुरुषों ने स्वीकार करके स्वयं को बदल दिया है और जो नहीं बदल रहे हैं वे बच्चों की निगाह में विलेन बनते जा रहे हैं, एक ऐसा पिता जिसे बच्चों से प्रेम नहीं है और जो बहुत खड़ूस है, उनके मित्रों के पिताओं से अलग।
पुरुषों के भावनात्मक बदलाव की वजह एक यह भी है कि उनमें अपने पूर्वजों के मुक़ाबले टेस्टोस्टेरोन (पुरूष और पौरुष हार्मोन) का स्तर घटा है और संतान प्रेम के लिए जिम्मेदार ऑक्सिटोसिन हार्मोन (वात्सल्य हॉर्मोन) का स्तर बढ़ा है।
विकासक्रम के चलते अब भी संतान अपने दबंग पिता को पसंद करती हैं जिसका समाज में रुतबा, सम्मान और शान हो लेकिन उन्हें घर के हिटलर अब पसंद नहीं है। वे पिता में अब माँ के कुछ गुण देखना चाहते हैं। एक प्रेम करने वाला मज़बूत पिता।
प्रिय और सम्मानीय पुरुषों क्या आप चाहते हैं कि आपकी संतान आपसे असीम प्रेम करें… तो थोड़ा सा माँ बन जाइये।