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उत्तर प्रदेश

बदनाम आजम ही निकले इकलौते वफादार

जवान बेटे का जोश जब शबाब पर होता है तो बूढ़े बाप का होश-ओ-हवास खोने लगता है। दो अलग-अलग उम्रो की यही फितरत है। ये प्रकृति का नियम है-कुदरत का निजाम है। उम्र के इन तकाजो ने जवान बेटे अखिलेश यादव और 74 की उम्र के बाप मुलायम सिंह यादव के बीच कुछ दूरियाँ पैदा की..कुछ नाइत्तेफाकियाँ और कुछ मतभेद पैदा कर दिये थे।

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जवान बेटे का जोश जब शबाब पर होता है तो बूढ़े बाप का होश-ओ-हवास खोने लगता है। दो अलग-अलग उम्रो की यही फितरत है। ये प्रकृति का नियम है-कुदरत का निजाम है। उम्र के इन तकाजो ने जवान बेटे अखिलेश यादव और 74 की उम्र के बाप मुलायम सिंह यादव के बीच कुछ दूरियाँ पैदा की..कुछ नाइत्तेफाकियाँ और कुछ मतभेद पैदा कर दिये थे।

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ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी. ना ये चौकाने वाली बात थी और न इस कहानी के इन दोनों किरदारो में कोई खलनायक था।  इन्सानी फितरत और उम्र का तकाजा हर जगह लागू होता है.. आम इन्सानो का परिवार हो या बादशाहो .. हुक्मरानो.. या फिर सियासतदाओ का घराना ही क्यों न हो। बूढ़े बाप की पुरानी सोच और जवान बेटे की आधुनिक सोच मे टकराव हो ही जाता है।

 ऐसे में परिवार के वरिष्ठ और समझदार सदस्य पिता-पुत्र के ऐसे विवाद सुलझा देते हैं। क्योंकि खून के इन जज्बाती रिश्तों के आगे किसी फैसले/विचारधारा या किसी कुर्सी की कोई अहमियत नही होती। लेकिन अफसोस कि पुत्र अखिलेश और पिता मुलायम के मतभेदो को सुलझाने के लिये समाजवादी परिवार का कोई वरिष्ठ सामने नहीं आया, सिवाये आजम खान के किसी ने भी समाजवादी पार्टी और पिता-पुत्र के टूटते रिश्तों को बचाने की कोशिश ही नही की। अधिकाँश समाजवादी अखिलेश को उगता सूरज मानकर उनके खैरखा बन गये। जिन्हें अखिलेश नापसंद करते थे ऐसे चंद लोग मुलायम के हिस्से मे आ गये।

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 इस झगड़े की जड़ बने अखिलेश के रणनीतिकार रामगोपाल और मुलायम के सलाहकार अमर सिंह तो आपराधिक छवि से बदनाम अतीक अहमद से भी गये गुजरे निकले। अतीक ने इस झगड़े के दौरान साफ तौर पर कहा कि अगर पिता-पुत्र के बीच मतभेदो का एक मैं भी कारण हूँ तो मै समाजवादी पार्टी  और मुलायम-अखिलेश के टूटते रिश्तों को बचाने के लिये खुद पीछे हट जाऊँगा।

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पार्टी को बचाने की आखिरी कोशिश मे मुलायम की जिद रामगोपाल को साइड लाइन करने की थी और अखिलेश अमर को बेदखल करने की माँग पर अड़े थे। लेकिन अखिलेश रामगोपाल को हटाने पर राजी नहीं थे और मुलायम अमर को बेदखल नही कर रहे थे। ऐसे मे अगर रामगोपाल और अमर सिंह सपा और पिता-पुत्र के रिश्तों को बचाने की जरा भी चाहत रखते तो  बदनाम अतीक की तरह खुद ही पीछे हट जाने की पेशकश कर देते।

 मुलायम सिंह के सबके सब पुराने साथी और अखिलेश यादव के नये चमचे कितने अहसानफरामोश/खुदगर्ज (स्वार्थी )/ गद्दार निकले। समाजवादी पार्टी जलती रही.. टूटती रही.. और सबके सब गुटबाजी..खेमेबाजी.. चाटूकारिता…चमचागीरी की बाँसुरी बजाते रहे।  उगते सूरज अखिलेश यादव के खेमे मे आजम खान के लिये रेड कारपेट बिछा था।

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अखिलेश का खेमा आजम के लिये सिर्फ इसलिये नहीं बेहतर था कि उसका राजनीतिक भविष्य है.. इसलिये भी नही कि 85 फीसद विधायक और पार्टी पदाधिकारी/ कार्यकर्ता अखिलेश के साथ है। इसलिये भी नहीं कि अखिलेश उत्तर प्रदेश के सबसे लोकप्रिय युवा नेता हैं।  अमर सिंह को अखिलेश सबसे बड़ी फसाद की जड़ मानते है.. समाजवादी पार्टी/परिवार के झगड़े को चौराहे तक ले आने का खलनायक मानते हैं। आजम की आजम की  आँखों को अमर बरसों से खटकते हैं।

समाजवादी पार्टी की 85 प्रतिशत ताकत अमर के खिलाफ एकजुट होकर खड़ी थी। ये सच आजम की बिन माँगी मुराद जैसा था। अमर विरोधी इस ताकत की ताकत बन कर अखिलेश सरकार मे दूसरे नंबर का रुतबा हासिल कर सकते थे आजम। मुस्लिम वोटी की ठेकेदार के साथ अखिलेश सरकार में डिप्टी सीएम का रुतबा पाना आजम के लिये मामूली बात थी। लेकिन इस झगड़ा-ए-आजम में आजम  औरों की तरह किसी एक गुट में बैठने के बजाय पार्टी को बचाने के लिये बाप-बेटे के बीच सुलह की लगातार कोशिश कर रहे है..

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-नवेद शिकोह

8090180256

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