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सुख-दुख

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार बद्री विशाल भी नहीं रहे

शेष नारायण सिंह-

बनारस से दिल दहला देने वाली खबर आ रही है. हमारे घनिष्ठ मित्र , बद्री विशाल नहीं रहे. बद्री का जाना मेरे लिए बहुत ही दुखद घटना है . उनसे मेरी मुलाकातें तो पहले भी थीं लेकिन दोस्ती का सिलसिला 1993 में शुरू हुआ जब हम दोनों को समय ने घसीट कर राष्ट्रीय सहारा नोयडा में बतौर नौकर पंहुचा दिया . सहारा के मालिक को एक दिन लगा कि अखबार को स्टैण्डर्ड ऊंचा किया जाना चाहिए . उसी योजना को पूरा करने के लिए उन्होंने अस्सी के दशक में रविवार के सम्पादक के रूप में ज़बरदस्त नाम कमा चुके उदयन शर्मा को अख़बार का ज़िम्मा देने का फैसला किया .

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उदयन के साथ हम भी आ गए . बद्री वहां पहले से ही जमे हुए थे . उदयन शर्मा भी उनको अच्छी तरह जानते थे क्योंकि सत्तर के दशक में दोनों ही समाजवादी युवजन सभा में रह चुके थे. पंडित जी आगरा में थे और बद्री विशाल बी एच यू में. नोयडा के सहारा अखबार के दफ्तर में पंडित जी के ऑफिस के कमरे में हम और बद्री मिले ,पंडित जी ने औपचारिक मुलाक़ात करवाई ,साथ साथ वहां से बाहर निकले ,सामने एक छोटी सी बाज़ार थी ,वहां जाकर बद्री ने एक पान दबाया और मैंने चाय पी. उसके बाद जब हम लोग वापस आये .जब वापस आये तो हम गहरे दोस्त बनने के रास्ते में चल पड़े थे . हमारी दोस्ती हुयी .जो आज तक कायम है .

बनारस में मैं जितने भी जागरूक लोगों को जानता हूँ, वह परिचय बद्री ने ही करवाया था. अभी दो साल पहले मैं उनके लक्ष्मी कुंड स्थित घर पर गया था. वहीं ठहरा . साथ साथ पैदल गंगाजी गए . सभी घाटों पर घुमाई की, विश्वनाथ जी के मंदिर के सामने वाली गली में बैठकर घंटों गपबाजी हुयी , उनके बनारस के दोस्तों के साथ जमावड़ा हुआ. वायदा करके आया था कि अगले साल फिर आउंगा लेकिन उनके घर नहीं गया .२०१९ के चुनाव में बनारस गया .

उन्होंने पूरे क्षेत्र की बारीक जानकारी दी. उन्होंने ही बताया कि नरेंद्र मोदी के सामने तो कोई नहीं टिक पा रहा है लेकिन गाजीपुर में मनोज सिन्हा और चंदौली में महेन्द्रनाथ पाण्डेय की कश्ती भंवर में है . उसकी व्याख्या भी की. पाण्डेय जी ज़मीनी कार्यकर्ताओं की भारी मेहनत से चुनाव जीतकर मंत्री बने लेकिन मनोज सिन्हा चुनाव हार गए.सच्चाई को बहुत करीब से पकड लेना बद्री की आदत का हिस्सा था . अभी जो खबर आयी है उसने दहला दिया है . बहुत याद आओगे बद्री .

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कृष्णदेव राय-

आज सुबह से ही मित्र बद्री विशाल को श्रद्धांजलि देने वालों से वाट्सएप ग्रुप और फेसबुक के संदेश भरे हुए हैं। बद्री विशाल का जाना मेरी व्यक्तिगत क्षति से ज्यादा पत्रकारिता जगत की क्षति है। बद्री एक प्रगतिशील मनोवृत्ति के सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति रहे। अहंकार रंचमात्र का नही, सहयोग के लिए हमेशा तत्पर।

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अमर उजाला में अवकाश ग्रहण करने के बाद भी दो‌ वर्षों तक अपनी सेवायें दी। विज्ञान का विद्यार्थी होने के बावजूद शुद्ध हिन्दी लिखने में महारत हासिल कर ली थी। समाचारों की समझ और पकड़ दोनो‌ गजब की। उन्होने पत्रकारिता की शुरुआत वाराणसी में ‘आज’ से की थी।

पत्रकारिता में आने के पूर्व वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में दक्षिणी नगर निकाय के अध्यक्ष रहे। जुझारू व्यक्तित्व के धनी समाजवादी नेता देवव्रत मजुमदार के अत्यन्त प्रिय। मजुमदार के एक फोन पर सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय ने उन्हे दिल्ली बुला लिया था।

बद्री की सोच प्रगतिशील तो थी, पर वे किसी वाद में खुद को बांधकर नही रखते थे। राजनीति में शिक्षा के महत्व को अहमियत देते। कर्म ही उनकी पूजा थी, पर कोई बगल में अति धार्मिक बैठा है तो है, कोई परहेज भी नही।

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कोरोना संकट के शुरू होने के पूर्व बनारस में हिन्दू विश्वविद्यालय के पास एक अखिल भारतीय धर्म संसद का आयोजन हुआ। बद्री जी किसी मित्र के दबाव में धर्म संसद की रोजाना की प्रेस विज्ञप्ति तैयार करने को राजी हो गये।

अलग अलग सत्र में अलग अलग मुद्दों पर चर्चा होती। इसी एक सत्र में धर्मान्तरण पर भी चर्चा हुई और साथी बद्री ने धर्माचार्यों के बीच एक सवाल रखा- मान लीजिए किन्ही कारणों से किसी ने या किसी के पूर्वज कभी धर्मांतरण कर दूसरे धर्म को स्वीकार लिये हों और वे पुन: हिन्दू धर्म में लौटना चाहें तो हमारी वर्ण व्यवस्था में उनकी जगह कहाॅं होगी?
सवाल अनुत्तरित रहा। बद्री बहुत ही व्यावहारिक सोच वाले कर्मयोगी थे। उन्हे समाज से जितना कुछ मिला, उससे कहीं ज्यादा उन्होने समाज को दिया।

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हंसो और हंसाओ। यही तो था मेरे साथी का मकसद। पिछले कई वर्षों से लगातार पारिवारिक दिक्कतों को झेलते हुए भी बद्री जी कभी विचलित नही हुए।

सुना था कभी हुमायूं बहुत बीमार पड़ा। हकीमों ने भी जवाब दे दिया, ऐसे में पिता बाबर ने ईश्वर से प्रार्थना की- या खुदा तूं मेरी जान ले ले, मेरे बेटे को बख्श दे।‌ हुमायूं ठीक हो गया, बाबर चला गया। बद्री जी के बेटे और छोटी बेटी दोनो संक्रमित हैं। बद्री ने शायद बच्चों का ग्रह अपने ऊपर ले लिया।‌पिता का धर्म निभा दिया। हे ईश्वर अब तूं अपना धर्म निभा और बच्चों को शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ कर। अब ये बच्चे ही तो मां का सहारा हैं। भाभी से बात करने की हिम्मत ही नही जुटा पा रहा हूं। ईश्वर मुझे ताकत दे, जिससे शोकाकुल परिवार को हिम्मत दिला सकूं।

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