कई सालों तक ना-ना करने के बाद आखिरकार भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) सरकार के सामने झुकते हुए राष्ट्रीय डोपिंग निरोधक एजेंसी (नाडा) के दायरे में आने को तैयार हो गया है। अब सभी क्रिकेटरों का डोप टेस्ट नाडा करेगी। जुलाई में खेल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों और बीसीसीआई के बीच बैठक हुई थी। मंत्रालय ने बैठक में स्पष्ट कर दिया था कि बीसीसीआई को नाडा के नियम मानने होंगे और उनके साथ कोई विशेष करार नहीं किया जाएगा। सरकार ने बोर्ड को विशेषतौर पर बताया था कि कि एंटी डोपिंग नियम सभी खिलाड़ियों की ही तरह क्रिकेटरों पर भी लागू होते हैं।
खेल सचिव राधेश्याम जुलानिया ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी। बीसीसीआई सीईओ राहुज जोहरी से शुक्रवार को मुलाकात के बाद जुलानिया ने कहा कि बोर्ड ने लिखित में दिया है कि वो नाडा की डोपिंग निरोधक नीति का पालन करेगा।उन्होंने कहा कि अब सभी क्रिकेटरों का टेस्ट नाडा करेगी। उन्होंने कहा कि बीसीसीआई ने हमारे सामने तीन मसले रखे जिसमें डोप टेस्ट किट्स की गुणवत्ता, पैथालॉजिस्ट की काबिलियत और नमूने इकट्ठे करने की प्रक्रिया शामिल थी। उन्होंने कहा कि हमने उन्हें आश्वस्त किया कि उन्हें उनकी जरूरत के मुताबिक सुविधाएं दी जाएंगी लेकिन उसका कुछ शुल्क लगेगा। बीसीसीआई दूसरों से अलग नहीं है।’
अब तक बीसीसीआई नाडा के दायरे में आने से इनकार करता आया है। उसका दावा रहा है कि वो स्वायत्त ईकाई है, कोई राष्ट्रीय खेल महासंघ नहीं और सरकार से फंडिंग नहीं लेता। खेल मंत्रालय लगातार कहता आया है कि उसे नाडा के अंतर्गत आना होगा। हाल ही में उसने दक्षिण अफ्रीका ए और महिला टीमों के दौरों को मंजूरी रोक दी थी जिसके बाद अटकलें लगाई जा रही थी कि बीसीसीआई पर नाडा के दायरे में आने के लिये दबाव बनाने के मकसद से ऐसा किया गया।
दरअसल क्रिकेटर पृथ्वी शॉ का डोपिंग टेस्ट में पॉजिटिव रहने और उनपर आठ महीनों के प्रतिबंध लगाने के फैसले के कुछ ही दिन बाद अब सरकार और बीसीसीआई के बीच डोपिंग के मुद्दे पर मतभेद एक बार फिर सामने आ गए थे। इस मुद्दे पर बीसीसीआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राहुल जोहरी को लिखे पत्र में खेल मंत्रालय ने कड़े शब्दों में कहा था कि बोर्ड का एंटी डोपिंग प्रोग्राम मजबूत नहीं है। साथ ही हितों में टकराव की ओर इशारा करते हुए कहा कि बीसीसीआई स्वयं ही परीक्षण और फैसला करता है।
मंत्रालय ने डोपिंग के मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए बीते महीने 26 जून को पत्र लिखा था, जिसमें मंत्रालय ने कहा था कि बीसीसीआई खिलाड़ियों का डोप टेस्ट करने के लिए सराकर और वाडा द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, ऐसे में उसके पास डोप टेस्ट करने का अधिकार नहीं हैं। पत्र में कहा गया था कि वाडा नियमों के अनुच्छेद 5.2 में खिलाड़ियों के डोप टेस्ट का अधिकार एंटी डोपिंग संगठन को दिया गया है। बीसीसीआई वाडा कोड के तहत परीक्षण प्राधिकरण के साथ एंटी डोपिंग संगठन नहीं है और ना ही वो ये दर्जा प्राप्त कर सकता है।
बीसीसीआई काफी वर्षों से राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) के अंतर्गत आने से इनकार करता रहा है, जिसके कारण डोपिंग के मुद्दे पर दोनों के आपसी रिश्ते तल्ख रहे हैं।बोर्ड इसके पीछे परीक्षण प्राधिकरण की प्रक्रिया में खामी को जिम्मेदार ठहराता रहा है।साथ ही बीसीसीआई का कहना था कि बोर्ड सरकारी पैसों से संचालित नेशनल फेडरेशन नहीं है, ऐसे में बोर्ड नाडा के नियमों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।बोर्ड का कहना था कि क्रिकेट के क्षेत्र में डोपिंग पर नियंत्रण रखने के लिए उसके पास अपना मजबूत तंत्र है।
खेल मंत्रालय ने बोर्ड के दावों को नहीं माना था। खेल मंत्रालय का कहना था कि मजबूत तंत्र और क्रिकेट डोपिंग से मुक्त है जैसे बोर्ड के दावे तथ्यात्मक तौर पर गलत हैं। 2018 में बीसीसीआई ने राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला को 215 सैंपल भेजे थे।इनमें से पांच टेस्ट पॉजिटिव पाए गए थे।इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि पॉजिटिव पाए गए खिलाड़ियों के संबंध में क्या कदम उठाए गए। नाडा द्वारा अपनाए गए वाडा के नियमों के अनुसार इन मामलों पर फैसला लेने के लिए स्वतंत्र पैनल का गठन किया जाता है, जो खिलाड़ियों या संगठन से सीधे तौर पर नहीं जुड़े होते।जबकि क्रिकेट में ऐसा नहीं है। बीसीसीआई सुनवाई से लिए स्वयं पैनल का गठन करता है।जो न्याय के सिद्धांतों के विरूद्ध है।