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सुख-दुख

सुमंत किस संपादक को सरेआम बेहया कह रहे हैं!

Sumant Bhattacharya : बेहया संपादक का रुदन… सच में हंसी आती है जब ढकोसलों को फेसबुक पर उछाले जाते पढता हूं। अभी हिंदी के एक संपादक की पोस्ट पढ़ी, जिसमें अमेरिका में राजदीप हुए हमले की निंदा और सत्ता के असहिष्णु हो जाने को लेकर बाकायदा रुदन किया गया। यह वही संपादक हैं जिन्होंने अपनी टीम के साथ पहली मीटिॆग में कहा था, रिपोर्टर और उपसंपादक बनना तो नियति है। यह वही हैं जनाब, जो संपादकीय सहयोगियों के सामने अपने पांच हजार रुपए के जूतों की खूबिया गिनाते थे, बजाय कि किसी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर बात करे। जिन दो टकिया नेताओं के करीब जाने में हम और हमारे वरिष्ठ नाक भौं सिकोड़ते थे, उनके मंचों पर जाकर खुद बेशर्मी के साथ विराजते थे और आज भी बेशर्मी का यही आलम शवाब पर है।

<p>Sumant Bhattacharya : बेहया संपादक का रुदन... सच में हंसी आती है जब ढकोसलों को फेसबुक पर उछाले जाते पढता हूं। अभी हिंदी के एक संपादक की पोस्ट पढ़ी, जिसमें अमेरिका में राजदीप हुए हमले की निंदा और सत्ता के असहिष्णु हो जाने को लेकर बाकायदा रुदन किया गया। यह वही संपादक हैं जिन्होंने अपनी टीम के साथ पहली मीटिॆग में कहा था, रिपोर्टर और उपसंपादक बनना तो नियति है। यह वही हैं जनाब, जो संपादकीय सहयोगियों के सामने अपने पांच हजार रुपए के जूतों की खूबिया गिनाते थे, बजाय कि किसी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर बात करे। जिन दो टकिया नेताओं के करीब जाने में हम और हमारे वरिष्ठ नाक भौं सिकोड़ते थे, उनके मंचों पर जाकर खुद बेशर्मी के साथ विराजते थे और आज भी बेशर्मी का यही आलम शवाब पर है।</p>

Sumant Bhattacharya : बेहया संपादक का रुदन… सच में हंसी आती है जब ढकोसलों को फेसबुक पर उछाले जाते पढता हूं। अभी हिंदी के एक संपादक की पोस्ट पढ़ी, जिसमें अमेरिका में राजदीप हुए हमले की निंदा और सत्ता के असहिष्णु हो जाने को लेकर बाकायदा रुदन किया गया। यह वही संपादक हैं जिन्होंने अपनी टीम के साथ पहली मीटिॆग में कहा था, रिपोर्टर और उपसंपादक बनना तो नियति है। यह वही हैं जनाब, जो संपादकीय सहयोगियों के सामने अपने पांच हजार रुपए के जूतों की खूबिया गिनाते थे, बजाय कि किसी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर बात करे। जिन दो टकिया नेताओं के करीब जाने में हम और हमारे वरिष्ठ नाक भौं सिकोड़ते थे, उनके मंचों पर जाकर खुद बेशर्मी के साथ विराजते थे और आज भी बेशर्मी का यही आलम शवाब पर है।

यह वही संपादक है जो विदेश यात्रा के हर आमंत्रण पर लपक पहले से ही कतार में लग जाते हैं। बजाय कि अपने किसी सहयोगी को भेजें, जो हर नैतिक संपादक करता है। मोदी सत्ता में विदेश यात्राओं से क्या खारिज हुए.. इऩकी नजर में सारी कायनात पर खतरा मंडराने लगा, यदि इनकी मानें तो। अब यदि ऐसा संपादक कहे कि सत्ता असहिष्णु हो गई तो सत्ता को पूरा हक है कि ऐसे संपादकों को पुट्ठे पर चार लगाकर दरवाजे से बाहर कर दे, मैं चुप रहूंगा क्योंकि मेरे बोलने का कोई नैतिक आधार ना छोड़ा। पहले सोचा कि इस बेहया संपादक की पोस्ट पर चुपाई मार जाऊं, फिर लगा कि नहीं, पत्रकारिता में आने वाली नस्लों के साथ गद्दारी होगी..मेरी खामोशी अपराध होगी। और ज्यादा उकसाया तो वह कह बैठूंगा जिसे सुनने के बाद दर पर ही प्राण निकल जाएंगे…अपन हैं इलाहाबादी, जिसको जो बिगाड़ते बने ..बिगाड़ ले। जहां चाहें, फरिया लें। ठोक कर दोस्ती करते हैं और ठोक कर दुश्मनी भी,. दोनों ही सोलह आना चोखा।

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वरिष्ठ पत्रकार सुमंत भट्टाचार्या के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ चुनिंदा कमेंट्स इस प्रकार हैं…

Shailendra Dhar सटीक. और ये वही श्रीमान है जो चुनाव के ऐन पहले एक कोई पुरानी भड़काऊ विडिओ बाँट रहे थे. इनको समाज में शांति व्यवस्था का हवाला देते हुए मैंने याद भी दिल़ाया था ऐसा कर वे कि PCI और NBA के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे है.

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Rohit Pandey Ramwapuri संपादको की आत्मा मर जाएगी और ये मालिक के गुलाम बनकर रह जायेंगे । वो संपादक जिन्हें बिना कुछ किये ही ये कुर्शी मिल जाती है वो ऐसे ही बयान बाजी करता है…

Arun Kumar Singh पत्रकार मित्र तो आसानी से समझ जायेंगे कि इस पोस्ट का “नेपथ्य नायक” कौन है? ज़रा हम भी तो जाने “भाट महराज” को।

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Pramod Shukla ….. सुना एक बार लिफ्ट में बंद होने पर इन्हीं का काफी स्वागत सत्कार हुआ था….. पुरवइया चलती है तो अभी भी वो लिफ्ट इन्हें याद आती है…

Kavita Ratnam शाब्बास … इतना बड़ा कलेजा …अल्लाहाबाद का पानी पी कर ही..होता है..

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Pramod Shukla पंडित… इलाहाबाद का तो लाला भी मुंबई में एंग्रीमैन बन जाता है… फिर आप तो ठहरे बाबूसाहब वाले मिजाज के पंडित…. किसी दिन अकेले में लिफ्ट में मिल जाए तो इलाहाबादी होने का परिचय जरा कायदे से दे दो…. जरा देख लेना लिफ्ट के भीतर CCTV कैमरा नहीं होना चाहिए…

Sudesh Arya Journalist सुमन्त बाबू,,,,!! सामने आएं तो बिना गिने जूते मारना शुरू कर दीजिए इस नक्कटे को ,,,,,,,,, ऐसे लोग बदनाम करते हैं पत्रकारिता जगत को,,,,, मुझे इस शख्स से शुरू से ही नफरत है,,,,,,बहुत लोग हैं ऐसे,,,, कि जिन नेताओं को हम घास भी नहीं डालते वे लोग उनके जूते सीधे करते हैं,,,,,,,सबकी अपनी अपनी तिकड़ियां चौकडियां हैं,,,,,जो उनकी परिधि में आए वही श्रेष्ठ बाकी को वे फुस्स समझते हैं,,,,,,

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नीलम महाजन मैं इन्हें नहीं जानती , पर लगता है कुछ मिस नहीं किया ना जानकार ऐसे लोग तो आजकल गली गली टके के भाव मिल जाते हैं जिनका दीन हो न इमां … सच कहने के लिए हिम्मत चाहिए होती है । जो भी दिखाए उसे सलाम

Krishna Kant संपादक महोदय आज भी सस्ती पक्षधरता के सिवा कुछ नहीं करते. बहुत बार तो नारेबाज़ कार्यकर्ता बन जाते हैं और भक्तजनों से खूब गालियाँ भी खाते हैं. खैर, आजकी आपकी पोस्ट से मन खुश हुआ. जिस हालत के लिए वे स्यापा कर रहे हैं, उसके लिए हमारे संपादक और पत्रकार गण ही ज़िम्मेदार हैं.

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Er Narendra Nohar Dhruv 16 आने सच कहा…. सम्पादकीय/पत्रकारिता के गिरते स्तर के लिए ऐसे लोग ही जिम्मेदार है, लेकिन इनके खिलाफ बोलने के लिए आप जैसे लोग भी मौजूद है ये देख के ख़ुशी और गर्व है… जब भी ऐसे महानुभव मिले तो उन्हें सबक जरूर सीखाये…

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0 Comments

  1. navin kumar rai

    November 5, 2014 at 6:51 am

    bhaiya aap ka tewar usi kalevar ke saath virajman hai . barakarar rakhiye bhai ko v aap ki yaad aati hai aksar aap ke isi bebaki ke karan

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