आइंदा नामी डॉक्टर के नाम से या उनकी फ़ोटो के साथ भास्कर में कुछ भी छपे, उस पर विश्वास करने से पहले चेक ज़रूर कर लें. हो सकता है ज्ञान किसी और का हो और डॉक्टर साब का मात्र फ़ोटो ही हो.
भास्कर के अलग अलग शहरों के एडिशन में एक ही ज्ञान 12 अलग अलग डॉकटरो के नाम से कल छपा था:-
Five cities same article but authors changed
राहुल चौकसे-
स्वघोषित देश के सबसे विश्वसनीय व एक नम्बरी अखबार का यह कारनामा पाठकों के साथ छलावे का “अभूतपूर्व” उदाहरण कहा जाए तो गलत नहीं होगा। अलग-अलग संस्करणों में छपी एक ही खबर में डॉक्टर्स के फोटो बस बदल दिए हैं। अब आप सोचिए कि खबरों में उल्लेखित बात डॉक्टर ने कही भी या नहीं।
सम्भवतः यह कहना भी गलत नहीं होगा कि यह संपादकीय स्तर पर मार्केटिंग विभाग के साथ कूटरचित प्रकरण है। खबर की अपनी विश्वसनीयता होती है। इस विश्वसनीयता को भुनाने का यह कुत्सित प्रयास है। खबर के जरिये ब्रांडिंग करने का यह खेल है। लोग खबर में छपे वक्तव्य पर विश्वास करती है न कि विज्ञापन में। सम्भवतः यहां हर शहर के चिकित्सकों के प्रचार का मामला है। डिजिटल युग हुआ यह भंडाफोड़ और पाठक की जागरूकता सराहनीय है। पाठकों को मूर्ख समझने की नीचता के चरम पर विराजमान होती ऐसी पत्रकारिता को दुरुस्त करने के लिए ऐसी जागरूकता जरूरी है। ऐसी छलावे वाली हरकत की शिकायत नखदन्त विहीन पीसीआई को भी जानी चाहिए।
वैसे बता दें कि पीआरबी एक्ट के तहत समाचार चयन के लिए सम्पादक जिम्मेदार होता है। संस्थान शायद ही खोजे कि कौन सम्पादक जिम्मेदार। क्योंकि उसे पता ही होगा इस “खेला” का सच।
वैसे आप क्या सोचते हैं? क्या बतौर पाठक आप अपने मीडिया पर शक करते हैं? या स्वघोषणा के वशीभूत होकर सबसे ज्यादा विश्वसनीयता के शिकार हो जाते हैं?